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वि० सं० ४००-४२४ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
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भूला ने
घंघा ने
ब्राह्मण
१३- नरवर के तप्ताभट्टगौ० शाह भैरा ने दीक्षा ली १४-वीरपुर के चरड़गौत्रीय १५-भुनपुर के मल्लगोत्रीय
मेहराज ने १६-चन्दोली
गागर ने १७-मराठेकोट के सुधड़गौ०
हाप्पा ने १८-त्रिभुवन के सुंगगौ०
देपाल ने १९-जोगनीपुर के कुलभन्द्रगौ
जसा ने २०-बावलपुर के करणाटगौर
नागदेव ने २१-लोद्रवापट्टन के लघु श्रेष्टिगौ०
रामा ने २२-चौवाटन के श्रष्टिगौर २३-हनुमानपुर के बलाहगौर
गेंदा ने २४-करणावती के कनोजियागौ
पाता ने २४-मांड
महादेव ने २५-अयोध्या के क्षत्रीवीर
नेतसी ने २६--पाडलीपुत्र के प्राग्वटवंशी
नोंधण ने २७-मादड़ी प्राग्वटवंशी
शांखला ने २८--सोमावा के श्रीमालवंशी
पदमा ने २९-कथोली सुघड़गोत्री०
जिनदास ने ३०-कुनणपुर
श्रेष्ठिगोत्री०
, पारस ने ३१-बीलपुर के बाप्पनागगौ० , जोगड़ा ने ३२-मथुरा के श्रेष्टिगौत्री० ,, माथुर ने १३-चंदेरी के सुचंतिगी.
, मोकल ने यह तो वंशावलियों से केवल एकेक नाम ही लिखा है पर इन एकेक भावुकों के साथ अनेक मुमुक्षुओं ने तथा कई महिलाएँ ने भी सूरिजी तथा आपके मुनिवरों के पास दीक्षा लेकर स्वपर का कल्याण किया था। यदि इन दीक्षा वालों का विवरण लिखा जाय तो एक अलग ग्रंथ बन जाता है कारण जैनों की करोड़ों की संख्या थी चौबीस वर्ष का भ्रमण में दो चारसौ दीक्षा हो गई हो तो कौन बड़ी बात है ।
प्राचार्य श्री के शासन में तीर्थों के संघादि शुभ कार्य१-सोपार पट्टन से श्रेष्टिगौत्रीय साह खेतसी ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला । २-देवगिरि से मल्लगी० शाह नाथा ने ३-भरोंच नगर से प्राग्वट पेथा ने ४-पद्यावती से मंत्री देदा ने
" " ५-नरवर से श्री श्रीमाल० सेवा ने
[ आचार्य श्री के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ
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