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विशेषामार
विशेषाभार
यों तो इस प्रन्थ को लिखने में जिन २ महानुभावों की ओर से तथा जिन २ प्रन्थों से मुझे सहायता मिली थी उनकी शुभनामावली ग्रन्थ की आदि में प्रकाशित करवादी गई थी पर जिन २ ग्रन्थों से मैंने विशेष सहायता ली है उनका विशेष उपकार मानना मेरा खास कर्त्तव्य समझ कर पुनः यहाँ नामावली लिखदी जाती है।
१-श्राचार्य श्री प्रभाचन्द्रसूरि रचित प्रभाविक चरित्र के अन्दर जिन २ प्रभाविक प्राचार्यों का जीवन लिखे हुए थे उन सबका जीवन मैंने हिन्दी भाषा भाषियों के लिये हिन्दी में लिख दिये हैं हाँ कहीं अधिक विस्तार था उनको संक्षिप्त जरूर कर दिया है।
-कलिकाल सर्वज्ञ भगवान् हेमचन्द्रसूरि के निर्माण किया परिशिष्ट पर्व तथा त्रिषष्टि सिलाग पुरुष चरित्र के अन्दर से भी बहुत कुछ मदद ली गई है।
३-आचार्य मेरूतुंगसूरि विरचित प्रबन्ध चिन्तामणि नामक ग्रन्थ से भी बहुत कुछ मसाला लिया गया है। __४-श्राचार्य विजयानन्द (आत्मारामजी) सूरिजी म० के लिखे जैनतत्व निर्णय प्रसाद जैनतत्त्वादर्श और जैन धर्म विषय प्रभोतर ग्रन्थों से भी जैन धर्म की प्राचीनता तथा चार आर्यवेदादि के विषय में भी कई लेख लिये गये।
५-आचार्य श्री विजय धर्म सूरिश्वरजी आचार्य बुद्धिसागरसूरीजी श्री जिनविजयजी और बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर के मुद्रित करवाये जैन मन्दिर मूर्तियों के शिलालेखों के अन्दर से बहुतसे शिलालेख यथा स्थान पर उद्धृत किये गये हैं।
६-पन्यामजी श्री कल्याणविजयजी म० के लिखी 'वीर निर्वाण सम्बत् और जैन कालगणना तथा श्रमण भगवान महावीर नामक पुस्तकों से सहायता ली गई है।
७-श्रीमान चन्दराजजी भंडारी द्वारा प्रकाशित भारत के हिन्दू सम्राट नामक किताब से मौर्यवंशी सम्राट चन्द्रगुप्त के विषय में कई लेख लिये गये हैं।
८-श्री महावीर प्रसादजी द्विवेदी ने भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रचार शीर्षक एक लेख सरस्वती मासिक में मुद्रित करवाया था जिसको उपयोगी समझ यहां दे दिया गया है।
-प्राचीन कलिंग और खारवेल नामक पुस्तक तथा प्राचीन जैन स्मारक (बंगालप्रान्त) और जैन साहित्य संशोधक त्रिमासिक पत्र में (पं० सुखलालजी) उड़ीसा प्रान्त से मिला हुश्रा महामेघवाहन चक्रवर्ती राजा खारवेल का प्राचीन शिलालेख हिन्दी अनुवाद के साथ मूल शिलालेख इस ग्रन्थ में दिया गया है।
१०-ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी के संग्रह किये हुए प्राचीन जैन स्मारक (बम्बई मैसूर प्रान्त) के अन्दर से जैन धर्म पर विधर्मियों के अत्याचार तथा वल्लभी राजाओं का ताम्रपत्रादि कई उपयोगी बातें ली गई है।
११-श्रीयुत त्रिभुवनदास लेहरचन्द शाह बड़ोदा वाले का लिखा 'प्राचीन भारतवर्ष नामक प्रन्थ से प्रचीन सिके एवं स्तूम्भ और कई देशों के राजाओं की वंशावलियादि।
उपरोक्त महानुभावों के अलावा भी किसी भी प्रन्थ से मैंने सहायता ली हो और वर्तमान में उनका नाम मेरी स्मृति में न भी हो तथापि हम उन्हों का आभार समझना तो भूल ही नहीं सकते हैं।
"ज्ञानसुन्दर
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