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जैन मूर्तियों पर के शिखालेख]
[भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
पुत्र अदाकेन भार्या मीमी सहितेन मातृ पितृ निमित श्री चन्द्रप्रभ बिंबं का० प्र० श्री सावदेवसूरिभिः ।
धातु प्रथम भाग नम्बर १२२४ ६७-संवत्१५३१ माघ वदि ८ दिने ऊकेश० साह कल्हा भार्या कपुरादे युः कुत्रा सलाभ्यां भ्रातृ ठाकुर भार्या अमरादे पुराइ प्र० कुटम्ब युक्तेन श्री आदिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं कोरण्टगच्छे श्री सावदेवसूरिभिः
धातु प्रथम भाग नम्बर ८११ ६८-संवत् १२२० वर्षे ज्येष्ठ बद : श्री कोरण्टकीवगच्छे श्री पद्मसिंह भार्या विल्लू पुत्र पुण्यसिंह विजयसिंह स्व पितृ श्रेयसे........"बिंबं का० प्र० सावदेवसूरिभिः धातु प्रथम भाग नम्बर १४१८
६१-सं० १५८२ वर्षे मिती मार्गशीर्ष सुद ११............श्रीकोरंटगच्छे श्रीमालवंशे सा० धुघुक भार्या रूकमाई पुत्र मोकल नारा नारायणमोकल भार्या मांगी पुत्र सहजाकेन श्री पार्श्वनाथ बिंब कारितं प्र. श्री नन्नाचार्य संताने श्री ककसूरि पट्टे सर्व देवसूरिभिः । भालोड़े वास्तव्यम् ॥
७०-सं० १४८७ वर्षे वैशाख सुदि ११ भी उसवाल वंशे बाप्पनाग गोत्रे जाघड़ा शाखायां सा. तेजपाल भार्या तेजाइ पुत्र केला पौ० जोघड़ केन मातृपितृ श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारितं प्र० श्री कोरंटकिमगच्छे श्री नन्नसूरि सन्ताने सर्वदेवसूरि पट्टे नन्नप्रभसूरिभिः। ___७१-सं० १५०६ वर्षे वैशाख सुदि ५ उकेशज्ञातौ चोपड़ा गोत्रे सा० सादाभायं रूखमी पुत्र जइता भार्या जेतलदे तत्पुत्र हेमा लादा काना मा भार्या हमादे पुत्र सदूलाकेन श्री युगादिदेव बिंबं कारितं प्रतिष्ठा श्री देवगुप्तसूरिभिः।
७२-सं० १५४१ वर्षे माप सुदि १३ प्राग्वट वंश सा० माला भार्या संवाइ पुत्र रामा नाथ जेसाढ़ सर्व कुटम्बिन सहित मातृपितृ श्रेयसे श्री मुनिसुव्रत बिंब कारापितं प्र० श्री उपकेशगच्छे श्री सिद्धसूरिभिः । आसिका दुर्ग वास्तव्य शुभम् ।।
७३-सं० १३६६ ज्येष्ट सुदी ११ दिने श्री उपकेशज्ञातौ सुंचंति गोत्र हिंगल शाखायां सा• तुल्ला भार्या तानाई पुत्र नारायण भार्या नोकी पुत्र रांणा संगण सालु पेथा केन स्व मातृपितृ श्रेयसार्थ भीअजितनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री उपकेशगच्छीय ककुंदाचार्य सन्ताने श्री ककसूरि पट्टे श्री देवगुप्तसूरिभिः ।
७४-सं० १३६१ प्रासाद सुदि १०....."दिने श्री उकेशवंशे बोहरा गोत्रे चंदलिया शाखायां सं० रूपणसी भार्या रूपाइ पुत्र करण भार्या कर्मी पुत्र रावत भीमा सहितेन श्री महावीर बिंब कारितं प्र• भी उपकेशगच्छे आचार्य सिद्धसूरिभिः ।
___ इत्यादि इन तीनों शाखाओं के और भी बहुत से शिलालेख हैं पर फिलहाल जो मुद्रित हो चुके हैं उनको ही यहाँ उद्धृत किये हैं। हमने जिन शिलालेखों के नीचे जिन जिन पुस्तकों के नम्बर अङ्क लिखा है उसमें कहीं कहीं असावधानी एवं समय के अभाव से कहीं कहीं गलती रह गई है उसको शुद्धि पत्र में निकालदी गई है कई कई शिलालेख कई अखबारों से या अन्य स्थानों से भी लिये गये हैं कि जिन्हों के नीचे नम्बर नहीं दिये गये हैं।
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उपशमच्छाचायों
की प्रतिष्ठा