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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १५०८-१५२८
महा-महोत्सव पूर्वक निर्दिष्ट समय पर सूरिजी ने द्वादश मुमुक्षुओं को भगवती जैन दीक्षा देदी और धवल का नाम दीक्षानंतर मुनि इन्द्रहंस रख दिया। इस महा महोत्सव में उदारचित्त दानवीर भैंसाशाह ने पूजा, प्रभावना व स्वधर्मी बन्धुओं को प्रभावना देने में पाँच लक्ष द्रव्य 'व्ययकर कल्याणकारी पुण्योपार्जन किया।
इधर मुनि इन्द्रहंस सूरिजी की सेवा में रहकर विनय, वैयाक्तृत्य भक्तिपूर्वक ज्ञान-सम्पादन में संलग्न होगया। आपकी बुद्धि पहिले से ही कुशाग्र थी फिर सूरिजी महाराज की पूर्ण कृपा तब तो कहना ही क्या ? श्राप स्वल्प समय में ही धुरंधर विद्वान हो गये। जैनागमों के अलावा व्याकरण, काव्य, तर्क, छन्द वगैरह के पारंगत हो गये । षट् द्रव्य एवं षट् दर्शनों के तो आप बड़े ही मर्मज्ञ थे कई वादियों के साथ राज-सभाओं में शास्त्रार्थ कर जैनधर्म की विजयपताका चारों ओर फहरा दी थी। वादियों पर आपकी इतनी धाक जमी हुई थी कि वे आपके नाम मात्र से दूर २ भागते थे।
आचार्य देवगुप्त सूरि धर्मोपदेश करते हुए एक समय जाबलीपुर नगर में पधारे । वहां के श्रीसंघ ने आपका बड़ा ही शानदार स्वागत किया। सूरिजी महाराज ने भी संघ को प्रभावशाली धर्म देशना दी जिसका जन समाज पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। श्रीसंघ के अत्याग्रह से वह चातुर्मास आपने जाबलीपुर में ही किया। श्रापश्री के विराजने से जनता का खूब उत्साह बढ़ गया। श्रेष्टि गौत्रीय शाह निम्बा ने सवालक्ष द्रव्य व्यय कर महा-प्रभावक श्रीभगवती सूत्र का महा महोत्सव किया। वरघोड़ा चढा कर शानदार जलूस के साथ हाथी पर भगवती सूत्र की स्थापना कर चातुर्मास में बांचने के लिये प्राचार्यश्री के करकमलों में समर्पण किया। सूरिजी ने भी अपने अथाह पाण्डित्य व ओजस्वी वक्तृत्वशैली से श्रवणेच्छुक भावुकों को भगवती सूत्र सुना कर जाबलीपुर में नवीन धार्मिक क्रान्ति मचा दी।
प्रसङ्गानुसार एक दिन सूरिजी ने परमपावन तीर्थाधिराज श्रीशत्रुञ्जय के महात्म्य का बड़े ही प्रभावो. त्पादक शब्दों में विवेचन किया जिससे सकल श्रोताओं की इच्छा तीर्थ यात्रा करने की होगई । बोथरा गौत्रीय शाह लाखण ने व्याख्यान में ही चतुर्विध श्रीसंघ के समक्ष तीर्थयात्रार्थ संघ निकालने की प्रार्थना की श्रीसंघ ने शाह लाखण को धन्यवाद के साथ सहर्ष संघ निकालने की अनुमति देदी । सूरिजी ने भी शाह लाखण के इस धार्मिक उत्साह की भूरि २ प्रशंसा की। श्रीसंघ से सहर्ष आदेश को प्राप्त कर शाह लाखण यात्रार्थ सामग्री एकत्रित करने में संलग्न होगया । इधर चातुर्मास समाप्त होने के पश्चात् शुभदिन यात्रार्थ प्रस्थान करने का महतं दिया। शाह लाखण ने भी उक्त महर्त के पर्व स्थान २ पर निमंत्रण पत्रिकाएं भेजी व साध साध्वियों की विनती के लिये योग्य पुरुषों को प्रेषित किये । निर्दिष्ट समय पर सब ही निर्दिष्ट स्थान पर एकत्रित होगये । आचार्य श्री के नेतृत्व व शाह लाखण के अध्यक्षत्व में विराट् संघ शत्रुञ्जय की यात्रा के लिये रवाना हुआ। मार्ग में आये हुए छोटे मोटे तीर्थों की यात्रा कर संघ जब शत्रुञ्जय के सन्निकट पहुँचा तक रत्न, मोती व जवाहिरातों से बधाया । क्रमशः शत्रुञ्जय पहुँचते ही पूजा, प्रभावना, अष्टान्हिका महोत्सव ध्वजा रोहण आदि विपुल धार्मिक कार्यों में विपुल द्रव्य व्यय कर शाह लाखण ने अनन्त पुण्योपर्जन किया।
आचार्य देव की वृद्धावस्था व शरीर की अत्यन्त कमजोर हालत को देखकर समयानुसार शाह लाखण ने प्रार्थना की-भगवन् ! आपकी वृद्धावस्था होचुकी है अतः हमारी प्रार्थना है कि शत्रुञ्जय के परम पावन स्थान पर आपके सुयोग्य व विद्वान शिष्य मुनिश्री इन्द्रहंस को आचार्य पद प्रदान किया जावे। हमारी दृष्टि से तो मुनि इन्द्रहंस सब तरह से योग्य हैं फिर आपको जैसा उचित ज्ञात हो । आचयश्री ने भी समयानुकूल की गई शाह लाखण व समस्त श्रीसंध की प्रार्थना को मान देकर शाह लाखण के महामहोत्सव पूर्वक शत्रुञ्जय के पवित्र स्थान पर शुभ दिन मुनि इंद्रहंस को सूरिपद से अलंकृत कर दिया। परम्परानुसार आपका नाम श्रीसिद्धसूरि स्थापित किया।
आचार्यश्री सिद्धसूरि के शासन में उपकेशपुर, उपकेशवंशियों का केन्द्र स्थान था। कलिकाल की प्राचार्य देवगुप्तसूरि का जाबलीपुर में पदार्पण
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