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वि० सं० ४०० - ४२४ वर्ष ]
भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
३१ - श्राचार्य श्रीरतप्रभसूरि (पष्टम् )
तातेडान्चय रत्नतुल्य महितः सूरिस्तु रत्नप्रभः । यस्य सच्चरितं विभाव्यममलं यल्लोकिकं पूजितम् ॥ ज्ञातो यः परमः सुदर्शन गणे रत्नप्रभाख्यान च । षष्ठे नैव समः स वादिजयने गोत्रा तलैऽभून् महान् ।
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चार्य रत्नप्रभसुरिश्वरजी महाराज एक अद्वितीय प्रतिभाशाली धर्म प्रचारक आचार्य प षष्टम रत्नप्रभसूरि षट्दर्शक के परम ज्ञाता थे जैसे चक्रवर्ति छः खण्ड में बैरी एवं वादियों का अन्त कर एक छत्र से अपना राज स्थापन करते हैं ! इसी प्रकार षष्टम रत्नप्रभसूरि वादियों को नत मस्तक कर सर्वत्र अपना शासन स्थापित किया था इतना ही क्यों पर आपका नाम सुनने मात्र से ही वादी दूर दूर भाग छुट यही आपकी विजय थी आपभी ने अपने शासनकाल में जैन धर्म की खूब प्रभावना और उन्नति की थी आपका जीवन परम रहस्यमय था पट्टावल्यादि ग्रन्थों में खूब विस्तार से वर्णन किया है । परन्तु में यहां संक्षिप रूप से पाठकों के सामने रख देता हूँ । घर प्रान्त में शंखपुर नाम का एक नगर था जो राजा उत्पलदेव की संतान में राव शक्ख ने आबाद किया था और वहां पर उस समय राव कानड़देव राज करता था और वह परम्परा से जैन धर्म का परम उपासक था । उसी शंखपुर में यों तो उपकेश वंशीयों बड़े बड़े व्यापारी एवं धनाढ्य लोग वसते हैं । पर उसमें तप्तभट्ट गोत्री शाह धन्ना नाम का साहूकार भी एक था और उनके गृह शृङ्गार धर्म परायणा फेंफों नाम की स्त्री थी शाह धन्ना जैसा धनाढ्य था वैसा वहु कुटम्बी भी था शाह धन्ना के १३ पुत्र जिसमें एक भीमदेव नाम का पुत्र बड़ा ही भाग्यशाली एवं होनहार था । बच्चापन से ही वह अपने मात पिता के साथ मन्दिर उपासरे जाया करता था और साधु मुनियों की सेवा उपासना कर प्रतिक्रमण जीवचारादि atara और कर्म सिद्धान्त का ज्ञान भी कर लिया था । संसार की असारता पर भी आप कभी कभी विचार किया करता था और जन्म मरण के दुखों का अनुभव करने से कभी कभी आपको वैराग्य का समागम भी होता था । एक समय आप अपने साथियों के साथ जंगल में जा रहे इक्षु रस की चरखियां चारों श्रर चल रही थी खेत वाले किसान लोगों ने उन सब को श्रामन्त्रण किया वोहराजी पधारिये यह इक्षु रस तैयार है कुँवर भीमदेव अपने साथियों के साथ इक्षु रस का पान किया ।
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शाम की टाइम होगई वे जंगल से घूम कर वापिस नगर में आ रहे थे कुछ अंधेरा पड़ रहा था भागवशात् रास्ते में एक दीर्घ काय काला सर्प पड़ा था परन्तु वे सब लोग अपनी अपनी बातों में मग्न कि किसी को भी सर्प नजर नहीं श्राया और एक दम सर्प पर किसी का पैर पड़ गया पर सर्प ने किसी को काटा नहीं सब लोग भय भ्रांत हो हो-हा करने लगे । भीमदेव ने सोचा कि यदि यह सर्प किसी को काट खाता तो काल के कबलिय बन खाली हाथ चलना पड़ता जो कि इस प्रकार की उत्तम सामग्री मिलने पर
[ शंखपुर नगर का शाह धन्ना - भीमदेव
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