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आचार्य सिद्धसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ७७०-८००
लेकर चम्पा को दे दी जब जाकर चम्पा को संतोष भाया । इस प्रकार एक मामूली बात पर नगर एवं नागरिकों को बड़ा भारी नुकसान उठाना पड़ा आर विदेशियों को सहज ही में मौका हाथ लग गया पर भवितव्यता को कौन मिटा सकता है इस प्रकार स्वर्ग सदृश वल्लभीपुरी का भंग हुआ-इस घटना का समय वि० सं० ३७५ का है जो उपरोक्त प्रमाणों से साबित होता है उस दिन से शाह रांका की संतान रांका,
और वांका की संतान बांका कहलाई । एवं ये दोनों जातियां आज विद्यमान हैं जो उपकेशपुर में आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित महाजन संघ के अठारह गोत्रों में चतुर्थ बलाहा गोत्र की शाखा रूप है उस गंका जाति के संतान परम्परा में एक धवल शाह नामक प्रसिद्ध पुरुष हुआ था वि० सं०८०२ में आचार्य शीलगुणसूरि की सहायता से वनराज चावडा ने गुजरात में अणहिल्लपट्टन बसाई थी उस समय वल्लभी से शाह धवल को सन्मानपूर्वक बुला कर पाटण का नगर सेठ बनाया था उस दिन से शाह धवल की संतान सेठ नाम से मशहूर हुए जो अद्यावधि विद्यमान हैं जैतारन पीपाड़ वगैरह में जो रांका हैं वे सेठ नाम से बतलाये जाते हैं अर्थात बलाह गोत्र राका शाखा और सेठ विरूद से सर्वत्र प्रख्यात है इन गौत्र जाति और विरूद के दान वीर नररत्नों ने जैनधर्म एवं जनोपयोगी कई चोखे और अनोखे कार्य करके अपनी उज्वल कीर्ति एवं अमरयश को इतिहास के पृष्ठों पर सुवर्ण के अक्षरों से अंकित करवा दिये थे जिसके कई उदाहरण तो हम पूर्व के प्रकरणों में लिख आये हैं और शेष आगे के प्रकरणों में लिखेंगे । पर दुःख है कि कई लोग इतिहास के अनभिज्ञ और गच्छ कदागृह के कारण इस प्रकार प्राचीन इतिहास का खून कर प्राचीन जातियों कोन्यूतन बतला कर इन जातियो के पूर्वजों के सेकड़ों वर्षों के किये हुए देश समाज एवं धार्मिक कार्यों के गौरव को मिट्टी में मिलाने की कोशिश करते हैं इतना ही क्यों पर कई इस जाति के अनभिज्ञ लोग अपनी जाति की उत्पत्ति न जानने के कारण वे स्वयं अपने को अर्वाचीन मान लेते हैं पर वे विचारे क्या करें उनके संस्कार ही ऐसे जम गये कि स्पष्ट इतिहास मिलने पर भी उन मिथ्या संस्कारों को हटाने में वे इतने निर्बल एवं कमजोर हैं कि उनके पूर्वजों को मांस मदिरा एवं व्यभिचार जैसे दुर्व्यसन छुड़ाने वाले परमोपकारी महात्माओं का नाम लेते भी शरमाते हैं इतना ही क्यों पर कई तो इतने अज्ञानी हैं कि उस उपकार का बदला अपकार से देते हैं उन पर दया भाव लाने के प्रावा हम और क्या कह सकते हैं यही कारण है कि आज उन्हों की यह दशा हो रही है कि जो कृतघ्नी लोगों की होती या होनी चाहिये
प्यारे ! बलाहगोत्री रांका जाति एवं सेठ विरूद वाले भाइयो अब भी आपके लिये समय है कि आप अपने प्राचीन इतिहास को पढ़कर उन महान् उपकारी पूज्याचार्यदेव का उपकार को याद करो और उन्होंने जो आपके पूर्वजों को शुरू से गस्ता बतलाया था उस पर श्रद्धा विश्वास रख कर चलो चल ओ कि फिर आपके लिये वे दिन आवें कि आप सब प्रकार से सुख शांति में आत्म कल्याण कर सदैव के लिये सुखी बनो इत्यादि।
rean-warn
बलाह गौत्र रांका शाखा सेठ विरूद ]
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