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वि० सं० ३७०-४०० वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
बाल समारे इस हालत चम्पा ने भी अपनी कांगसी से पाल समारने लगी और राजकन्याने चमकती हुई कांगसी चम्पा का हाथ में देखी तो उसका मन ललचा गया उसने चम्पा के हाथ से कांगसी लेकर सब सहिलियों को देखाई तो सबने मुक्तकण्ड से चम्पा की प्रशंसाकी जिसको राज कन्या सहन नही करसकी और चम्पा को कहा चम्पा । यह कांगसी मुझे देदे ? चंपा ने कहा बाईजी मेरे यह एकही कांगसी है अतः इसको तो मैं दे नही सकती हु यदि आप फरमावे तो मेरे पिता से कह कर आपके लिये भी एक कांगसी मंगा दूंगी। राजकन्या ने कहा कि चंपा यह तेरी कांगसी तो मुझे देदे तु दूसरी मंगा लेना जिसका खर्चा लगेगा वह मैं दीला दूंगी परन्तु चप्पा भी तो महाजन की लड़की थी वह अपनी कांगसी कब देने वाली थी ।राजकन्या के हाथ से कांगसी खीच ली और वह वहाँ से भाग कर अपने मकान पर आगई इससे राजकन्या को बडा भारी गुस्सा आया कुच्छ भी हो पर वह थी राज की कन्या। अपने महल में आकर अपनी माता को कहा कि चंपा के पास क गसी है वह मुझे दीलादे वरन मैं अन्न जल नहीं लुंगी । बालकों का यही तो हाल होता है जिसमें भी बाल हट, स्त्री हट, और राजहट एवंतीन हट एक स्थान मिल गया। रानीने कन्या को बहुत समझाया पर उसने एक भी नहीं सुनी इस हालत में रानी राजा को कहा और राजा ने रांका को बुला कर कहाँ कि तुमारी पुत्री के पास कांगसी है वह ला दो और उसका मूल्य हो वह ले जाओं। रांकाने सोचा कि 'समुद्र में रहना और मगरमच्छसे वैर करना ठीक नहीं है वह चल कर चंपा के पास आया और उससे कांगसी मांगी परंतु एक तो चंपा को कांगसी प्यारी थी दूसरा था बालभाव जो राजकन्या के साथ हटकर के आई थी तीसरा उस कांगसी के कारण भविष्य में एक बड़ा भारी अनर्थ होने वाला भी था इस भविव्यता को कौन मिटा सकता था, चम्पा ने हठ पकड़ लिया कि मैं मर जाऊं पर कांगसी नहीं दूंगी । लाचार होकर रांका राजा के पास जाकर कहा हजूर मैं कासीद को भेजकर आपको कांगसी शीघ्र ही मंगा दूंगा। राजा ने कहा रांका कांगसी की कोई बात नहीं है पर मेरी कन्या ने हट पकड़ रखा है अतः तू कांगसी जल्दी से ला दे। रांका ने कहा गरीपरवर ! यही हाल मेरा हो रहा है चम्पा कहती है कि मैं मरजाऊ पर कांगसी नहीं दू अब भापही बतलाइये कि इसके लिये मैं क्या करू । राजा ने कहा तुम कुछ भी करो कांगसी तुझको देनी पड़ेगी। रांका ने कहा ठीक है मैं फिर जाता हूँ। बस रांका ने अपनी पुत्री को खूब कहा पर चम्पा टस की मस तक भी नहीं हुई। रांका अपनी दुकान पर चला गया । राजकन्या ने शाम तक अन्न जल नहीं लिया अतः राजा ने अपने आदमियों को रांका के वहां भेजा और कहा कि ठीक तरह से दे तो कांगसी ले आना वरन बल जबरी से कांगसी ले आना। राजा के आदमी आकर रांका को बहुत कहा जवाब में रांका ने कहा कि जैसे राजा को अपनी पुत्री प्यारी है वैसे मुझे भी मेरी पुत्री प्यारी है यदि राजा इस प्रकार का अन्याय करेगा तो इसका नतीजा अच्छा नहीं होगा ? आखिर राजा के आदमियों ने चम्पा से जबरन कांगसी छीन कर ले गये । चम्पा खूब जोर २ से रोई पर सता के सामने उसका क्या चलने का था चम्पा का दुःख रांका से देखा नहीं गया वह था अपार लक्ष्मी का धनी। उसने चम्पा को धैर्य दिला कर अपने घर से निकल गया और म्लेच्छों के देश में जाकर उनको एक करोड़ सोनइये देने की शर्त पर वल्लभी का भंगा करवाने का निश्चय किया पर शाह रांका ने कहा कि दूसरा सब धन माल आपका है पर एक मेरी कांगसी मुझे देनी होगी म्लेच्छों ने स्वीकार कर लिया और वे असंख्य सेना लेकर वहां से रवाना हो गये क्रमशः वल्लभी पर धावा बोल दिया उन्होंने वल्लभी को खूष लूटा तथा राजमहलों में जाकर राजकन्या से कांगसी छीन कर शाह रांका को दे दी भौर रांका ने उस कांगसी को
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[शाह रांका की पुत्री चम्पा की कांगसी
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