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आचार्य देवगुप्तसरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० १५०८-१५२८
,
धर्मा ने
हुए इत्यादि विस्तार से व्याख्यान करते हुए सूरिजी ने कहा महानुभावों ! तीर्थंकरों का व्याख्यान में दो प्रकार की लक्ष्मी-विभूति होती है १-बाह्य २-अभिन्तर । जिसमें बाह्य तो अष्ट महाप्रतिहार्य होते हैं और अभिन्तर में केवलज्ञान केवलदर्शन । उन लोकोत्तर महापुरुषों की अपेक्षा यहाँ अंश मात्र भी नहीं है । धन्य है उन महानुभावों को कि जिन्होंने तीर्थकर भगवान् के समवसरण में जाकर उनका व्याख्यान सुना है इत्यादि सूरिजी के व्याख्खान का जनता पर काफी प्रभाव हुआ और सब की भावना हुई कि श्रीतीर्थकर भगवान के समवसरण में जाकर उनका व्याख्यान सुने ।
इस प्रकार प्राचार्य देवगुप्त सूरीश्वरजी महाराज ने २० वर्ष तक शासन की भति उच्च भावना से सेवा की आपने बहुत से मांस मदिरा सेवियों को उपदेश रूपी अमृत पान करवा कर जैनधर्म में दीक्षित किये बहुत मुमुक्षुओं कों श्रमण दीक्षा दी और कईएको श्रावक के व्रत दिये इनके अलावा जैनधर्म को स्थिर रखने वाले जिनालयों की प्रतिष्ठाएं करवाई तथा जन कल्याण को उज्ज्वल भावन को लक्ष में रख तीर्थों की यात्रार्थ बड़े बड़े संघ निकलवा कर भावुकों को यात्रा का लाभ दिया इत्यादि आपश्री के किये हुए उपकार को एक जिभ्या से कैसे कहा जासकता है खैर सूरिजी ने अपनी अन्तिमावस्था में योग्य मुनि को सूरि बनाकर आप अन्तिम सलेखना एवं अनसन और समाधि पूर्वक स्वर्ग पधार गये।
पूज्याचार्य श्री के शासन में मुमुक्षुओं की दीक्षाएँ १-नागपुर
चोरडिया जाति के शाह पोमा ने सूरिजी के पास दीक्षाली २-जाखोड़ी
पोकरणा ३-नन्दपुर
सगंण ने ४-कोरंटपुरी जांघड़ा
खेमा ने ५-पलडी राखेचा
गोमा ने ६-दातरडी सालेचा
खीवसी ने ७-चन्द्रावती आर्य
नोंधण ने ८-शिवपुरी छाजेड़
खुमाण ने १-ढेज़ीपुर
चमना ने १०-मालपुर
गोविन्द ने ११-राजपुर भोपाला
भूता ने १२-हापड़ विनायकिया
चूड़ा ने १३-मानपुर काग
चहाड़ ने १४-कुश्मपुर बोत्थरा
धोकल ने १५-पारिहका रांका
कुम्पा ने १६-गुंदडी
देदां ने १७-नारणपुर कुम्मट
माधु ने १८-रणथम्भोर नाटा
लाधा ने १६-नरवर संचेती
डूगर ने २०-कीराटकुंप पारख
करमा ने २१-बीरपुर
प्राग्वट २२-दान्तिपुर
मेकरण ने सूरीश्वरजी के शासन में दीक्षाएं
१४६६
सुखा भुरंट
हुल्ला ने
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