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आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १५०८-१५२८
गया पर वैराग्य रञ्जित स्वान्त चोखा पर संसार वर्धक, मोहोत्पादक वचनों का किञ्चित् भी प्रभाव नहीं पड़ा।
इधर जमाई चोखा के वैराग्य के समाचारों को चोखा के श्वसुर शा० गोसल ने सुना तो वे आश्चर्य चकित हो गये। वे नाना प्रकार के विचारसागर में गोते खाने लगे और रह रह कर उनको ये भावनाएं सताने लगी कि जमाई चोखा यदि दीक्षा के लिये उद्यत हैं तो मैं मेरी प्रिय पुत्री का विवाह इस हालत में उनके साथ कैसे कर सकता हूं ? असमंजस में पड़े हुए शा० गोसल ने उक्त सकल समाचार अपनी धर्मपत्नी से कहे, इस पर सकल कुटुम्ब परिवार में वड़ी भारी हलचल मच गई । जब श्रेष्टि सुता रोली ने सुना कि जिसके साथ मेरा भावी सम्बन्ध जोड़ा जा रहा है; वे असार संसार से विरक्त हो दीक्षा लेने को तैय्यार होगये हैं तो उसके
आश्चर्य का पारावार नहीं रहा। वह चिन्तामग्न हो विचारने लगी कि यदि यह सत्य है तो मझे क्या करना चाहिए । निदान अनेक तर्क वितर्कों के पश्चात् उसने यह निश्चय किया कि जब एक पतिदेव को मैं अपने हृदय से अपना जीवन अर्पणकर चुकी हूँ तो इस भव में वे ही मेरे जीवनाधार पति बन चुके हैं। यदि वे वैराग्य भावना से दीक्षा स्वीकार करेंगे तो बड़ी ही खुशी की बात है, मैं भी उनके साथ ही दीक्षा स्वीकार कर आत्म कल्याण के मार्ग में संलग्न हो जाऊंगी। क्या भगवान् नेमिनाथ के साथ राजुलदेवी ने दीक्षा अङ्गीकार नहीं की थी ? दी ज्ञा तो निश्चित ही आत्मोद्धार का साधन है और वह आत्म कल्याण इच्छुक भावुक व्यक्तियों से ग्राह्य भी है । इस प्रकार के सुनिश्चित विचार से उसकी आत्मा में अपूर्व आनंद का सद्भाव होने लग गया।
एक समय शा० पद्मा और गोसल की आपस में भेट हुई तो शा० पद्मा ने कहा-शाहजी ! चोखा अभी नादान है । सूरिजी के वैराग्योत्पादक व्याख्यान को श्रवण कर वह दीक्षा लेने के आग्रह पर तुला हुआ है। अभी तो मैंने उसको येनकेन प्रकारेण समझा कर रक्खा है पर अभी के वैराग्य को देख कर उसका ज्यादा समय पर्यन्त संसार में रहना कठिन ज्ञात होता है अतः विवाह कार्य जल्दी ही सम्पन्न कर देना चाहिये जिससे सांसारिक प्रपञ्चों में पड़ा हुआ उसका मन कभी भी दीक्षा के लिये उद्यत न हो सकेगा। शा०
झा के उक्त वचनों को सुन कर शा० गोसलने कहा कि विवाह जल्दी करने के लिये तो मैं भी तैय्यार है पर वे जब इस तरह वैराग्य की प्रबल भावनाओं से आकर्षित हो दीक्षा के लिये तैय्यार हैं तो फिर पुत्री को यकायक वैरागी व्यक्ति के साथ ग्रन्थित करने में जरा विचार है। इस पर शा० पद्मा ने कहा-शाहजी ! आप इस बात का जरा भी विचार मत कीजिये । वह तो बालोचित नादानी के कारण ही बाल हठ करता है पर विवाह होजाने के पश्चात् उसकी वैसी अवस्था नहीं रहेगी। मैंने उसको अच्छी तरह समझा दिया है अतः अब अविलम्ब लग्न की तैय्यारियां होने दीजिये ।।
शा० पद्मा के आश्वासनजनक वचनों को सुनकर गोसल शाह अपने घर पर आया और अपनी प्राण प्रिय पुत्री को बुलाकर उसकी माता के सामने पूछने लगा कि कुंवरजी दीक्षा लेने को तैय्यार हैं तब शा० पद्मा विवाह के लिये जल्दी कर रहे हैं । अतः तुम लोगों की इसमें क्या सम्मति है। रोली तो माता पिताओं की शर्म एवं स्वाभाविक लज्जा के कारण अपने हृदय के वास्तविक उद्गार प्रगट नहीं कर सकी पर रोली की माता ने कहा-जमाईजी जब अाज ही दीक्षा की बातें करते हैं तब ऐसे वैरागी दीक्षेच्छुकों को पुत्री देने में वह क्या सुख प्राप्तकर सकेगी ? अभी तो रोली कुंवारी है और कुंवारी के सौ घर और एक वर ऐसी लोकोक्ति भी है। अतः अगर कुंवर चोखा दीक्षा ले लेवेंगे तो रोली की सगाई दूसरे के साथ करदी जावेगी।
___ माता के अपने निश्चय से प्रतिकूल उक्त वचनों को श्रवण कर रोली से नहीं रहा गया । उसे इस समय में लज्जा रखना या अपने मानसिक भावों को दबाना अनुचित ज्ञात हुआ। वह बीच में ही बोल उठी"मां ! क्या एक कन्या के दूसरा पति भी हो सकता है ? दीक्षा लेना और न लेना तथा सुख, दुःख को प्राप्त करना तो पूर्व संचित कर्म राशि के आधार पर है. पर मैंने एक पति का नाम धारण कर लिया है । अतः अब कुँवर चोखा का वैराग्य
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