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________________ वि० सं० ११०८-११२८] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास दूसरा पति कदापि नहीं करूंगी।" गोशल शाह अपनी पुत्री के उक्त दृढ़ संकल्प को सुन कर पुत्री का लग्न शाह पद्मा के आत्मज कंवर चोखा के साथ में जल्दी से ही करने को तैय्यार होगये। उन्होंने शा० पद्मा के यशं कहला दिया कि मैं आपके आदेशानुसार जल्दी ही लग्न करने को तैय्यार हूँ और आप भी अपनी ओर से जल्दी ही तैय्यारी कीजिये । बस, दोनों ओर से विवाह की जोरदार तैय्यारियां होने लगी। चोखा की आन्तरिक इच्छा विवाह करने की नहीं थी पर माता पिता के दबाव एवं लिहाज से ही उसने ऐसा करना स्वीकार किया । क्रमशः शुभ तिथि मुहूर्त में विवाह का कार्य भी सानंद सम्पन्न होगया। जब प्रथम रात्रि में कुंवर चोखा अपनी पत्नी के महल में गया तो वहां योगीश्वर की भांति परमनिवृत्ति पूर्वक ही बैठ गया। राग, रंग एवं भोग-विलास सम्बन्धी साधनों के पूर्ण अभाव को देख कर कुंवरी रोली ने लज्जा त्याग कहा पूज्यवर ! मैंने सुना है कि आप दीक्षा लेने वाले हैं। चोखा-हां, मेरी इच्छा दीक्षा लेने की थी और अब भी उसी रूप में है। रोली-तो फिर आपने विवाह ही क्यों किया ? चोखा-विवाह करने की आन्तरिक इच्छा के न होने पर भी माता पिता के लिहाज के कारण विवश, मुझे ऐसा करना पड़ा। रोली-यह सत्य है कि आप माता पिता के लिहाज मात्र से ही इस ओर प्रेरित हुए होंगे पर इस मिथ्या लिहाज के वशीभूत हो एक बाला के जीवन को धोखे में डालना आपको शोभा देता है ? यदि आपका इष्ट किसी के लिहाज से बिना इच्छा के ही कार्य करने का है तो थोड़ी लिहाज मेरी भी रखिये मैं आपसे विनय पूर्वक प्रार्थना करती हूँ कि आप कुछ अर्से तक संसार में रह कर मेरे मनोरथ को पूर्ण कीजिये । कुछ अर्से के पश्चात् मैं भी आपके साथ दीक्षा स्वीकार कर लूंगी। चोखा-जब आपकी अन्तिम इच्छा भी दीक्षा लेने की है तब फिर थोड़े दिनों पर्यन्त संसार में रहने से क्या फायदा है ? संसार तो महान् दुःखों की खान है । सिवाय कर्म :बंध के इसमें कुछ लाभ तो है ही नहीं। दूसरा थोड़े दिनों का विश्वास भी तो नहीं किया जासकता है कारण न मालूम कालचक्र किस दिन, किस समय कण्ठ पकड़ कर अपने घर ले जायगा । अतः मेरी सलाह है कि आप भी जल्दी कीजिये जैसा कि शालिभद्रजी के बहनोई और बहिन ने किया था। रोली अपने मन में अच्छी तरह से समझ गई कि आपके हृदय में दीक्षा का पक्का रंग लगा हुआ है। किसी भी तरह वे अपने कृत निश्चय से चलविचल नहीं हो सकते हैं अतः उसने भी उनके निश्चय में सहर्ष अपनी सम्मति देदी और उनके साथ ही दीक्षा के लिये तैयार हो कहने लगी-आप अब निर्विघ्न दीक्षा स्वीकार कर सकते हैं। मैं भी आपके ही पथ का अनुसरण कर अपने आपको सौभाग्यशाली बनाऊंगी। आप मेरी ओर से सर्वथा निश्चिन्त रहें। चोखा-धन्य है आपको और आपकी माता की कुक्षि को। आपका निश्चय निश्चित ही सराहनीय एवं अनुकरणीय है । मुझे यह आशा नहीं थी कि आप सहज ही में मेरे निर्दिष्ट निश्चय में सहयोग प्रदान कर इस तरह आत्मकल्याण के मार्ग में सहसा उद्यत हो जावेंगे । मैं, आपके द्वारा कृत निश्चय का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। इस प्रकार दम्पति का एक दिल से दीक्षा लेने का निश्चय होगया । फिर तो था ही क्या ? अभी लग्न की उत्तर क्रिया तो होने की ही थी पर प्रातःकाल में सर्वत्र नगर में यह बात बिजली की भांति फैल गई कि कुंवर चोखा ने एक ही रात्रि में अपनी पत्नी को उपदेश देकर दीक्षा के लिये तैय्यार करदी । अब तो ये निकट भविष्य में ही दीक्षा स्वीकार कर लेंगे । जिन्होंने यह बात सुनी उनके आश्चर्य का पार नहीं रहा । ठीक है बात भी आश्चर्य करने काबिल थी कारण, यह तो एक दूसरा ही जम्बुकुमार निकला । १४५८ चोखा का लग्न और दम्पति की भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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