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वि० सं० १०११-१०३३]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
डेश्व
दोनों अध्यापक के पास गई उन्होंने भी गगझाया पर जामण बालक ने अपना हठ नहीं दड़ा इतना ही क्यो पर उसने शोध में आकर एक प्रतिज्ञा भ करली । विप्र पुत्र धुरि दई गाली, क्रूर करंबु तुझ कपाली। जु षउ तुं बांमण सही, नहीं तरी परइड भणिजे भई ।
____ इस पर सौधर्म ने भी गुस्सा कर के कहा कितब ते घइ बोलिउ सुधर्म, जो जे वांमण भाहरु कर्म । भूओ न मारूं तुझ प्राणिउ, नहीं तर नहीं सुघड वणियो॥
(लवण्य समयकृत यशोभद्रसूरि रास ) देवी कहती है कि उस सौधर्म को लाकर दीक्षा दो वह आपके गच्छ का भार वहन करेगा। देवी अदृश्य होगई । बाद में आचार्य ने संव से कहा और संघ के साथ चलकर आचार्य पलासी आए और गुणसुन्दरी के पास जाकर पुत्र की याचना की पर यह कब बन सकता था कि माता अपना इकलौता पुत्र वह भी बालभाव वाले को मांगा हुआ दे दे पहले तो गुणसुन्दरी खूब गुस्से हुई पर बाद में श्रीसंघ ने उसको खूब समझाई और उसको सौधर्म की दीक्षा के भावी लाभ तथा इसमें तुम्हारा ही गौरव है इत्यादि उपदेश से प्रभावित होकर गुणसुन्दरी ने अपने एक मात्र इकलौता सा पुत्र को गुरु चरणों में अर्पण कर दिया। बाद में
रि ने उस पांच छः वर्ष के होनहार बालक को दीक्षा दे दी। बाद दीक्षा के छः मास में ही वह शात्रों का पारंगत पंडित हो गया। इतना ही क्यों पर वे सूरिपद के योग्य सर्वगुण भी सम्पादित कर लिये।
तत्पश्चात् ईश्वरसूरि पुनः मुंडारा में आये बारह गौत्र के साथ बदरीदेवी की आराधना की । देवी स्वयं आकर संघ समीक्षा सौधर्म मुनि के तिलक कर गले में पुष्पों की माला डालकर सूरिपद अर्पण कर आपका नाम यशोभद्रसूरि रख कर अदृश्य हो गई । यशोभद्रसूरि विकार का पराजय करने के लिये छः विगई का त्याग रूप अंविल करना प्रारम्भ कर दिया।
यशोभद्रसूरि बिहार कर पाली श्राए श्रीसंघ ने अपूर्व महोत्सव कर नगर प्रवेश करवाया सूरिजी की अमृतमय देशना श्रवण कर श्रीसंघ ने अपने जीवन को कृतार्थ किया । एक दिन सूरिजी सूर्य के मन्दिर के पास निर्वद्य भूमि देख थडिले बैठे सूर्य ने सूरिजी की ब्यय के अनुसार विकट तपस्या जान:कर हीरा, पन्ना, मणि, मुक्ताफल डाल दिये पर सूरिजी ने तो उनके सामने देखा तक नहीं इस पर सूर्य ने सोचा कि ऐसा पवित्र सूरि मेरे मन्दिर में आये तो मैं कृतार्थ बनूं । सूर्य ने वरसात बरसाई जिसमें सूरिजी सूर्य के मन्दिर में चले गय सूय ने कपाट बन्द कर कहा कि आप कुछ मांगो ? सूरिजी ने कहा हम निन्थ है हमको कुछ भी नहीं चाहिये । सूर्य बहुत आग्रह किया तो सूरिजी ने सूक्ष्म (बहुत छोटे) जीव देखने का चूर्ण दीरावें । सूर्य ने कहा कि कल में चूर्ण लेकर आपके मकान पर अऊंगा । इत्यादि वार्तालाप कर सूरिजी अपने स्थान पर आ गये ।
सूर्य ने सुवर्णाक्षरों से अनेक विद्याओं के यंत्र एक पुस्तक में लिख कर तथा एक अंजन-कुपिका ले विप्रवेश धारण कर सूरिजी के पास आया और दोनों वस्तु सूरिजी के आगे रख कर सूर्य अदृश्य होगया सूरिजी ने अंजन आंखों में लगा कर देखा तो सब जीवों की राशी (छोटा से छोटा) भी दीखने लगा। तथा पुस्तक से विद्याएं भी सिद्ध करली। बाद में विचार किया कि पीछे के लोग ऐसी विद्याओं का दुरुपयोग न कर डालें अतः अपने शिष्य मुनि वलभद्र से कहा कि जाओ इस पुस्तक को सूर्य के मन्दिर में रख आयो । पर मार्ग में पुस्तक खोलकर पढ़ना नहीं ! मुनि बलभद्र पुस्तक लेकर जा रहा था उसके दिल में आई कि इसमें कौनसी विद्या है। अतः मार्ग में पुस्तक खोल तीन पन्ने निकाल लिये। बाद में पुस्तक को सूर्य के मन्दिर में रख कर मुनि जोर से रोने लगा इस पर सूर्य ने कहा कि हे भद्र ! रोता क्यों है ? जा मैंने तुझे तीन पन्ने दिये बस! बलभद्र मुनि स्वस्थान आगये।
___ यशोभद्रसूरि उन विद्याओं से मनिधि अष्टलिद्धि तथा आकाशगामिनी वगैरह कई विद्याओं को सिद्ध २४०२
चमत्कार
nanimoonn
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