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आचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १३५२-१४११
पृथ्वीधर (भ० पार्श्व० मन्दिर)
सोमधर
देवधर
सोमधर
गुणधर
राधर (रोली में मन्दिर बनवाया ) (धर्मशाला बनवाई )
(संघ निकाला)
सलखण आसल सामन्त घोघा
नोघड़ (शत्रुञ्जय का संघ) (मन्दिर बनवाया) १-वि० सं० १०४५ में धामा ग्राम में सोमधर के पुत्र जोधड़ ने शान्तिनाथजी का मन्दिर बनवाया।
२-वि० सं० १०८६ में सोमधर के दूसरे पुत्र प्रासल ने शत्रुञ्जय का संघ निकाल कर स्वधर्मी बन्धुओं को पहिरावणी दी व तीन स्वामी वात्सल्य किये।
३-वि० सं० ११३८ में घोघा के पुत्र दैपाल ने लोद्रवा में पार्श्वनाथ भावान का मन्दिर बनघाया। ४-वि० सं० १२२१ मादल पुर में शाह रामा ने भगवान महावीर का मन्दिर बनवाया। ५-वि० सं० १२३६ नागपुर से काग जाति के शाह वीर ने शत्रुञ्जय का संघ निकाला।
६-वि० सं० १६१५ तक की वंशावलियाँ मेरे पास में हैं उनमें काग जाति की खासी नामावाली लिखी है। वंशावलियों से पाया जाता है कि काग जाति के व्यापारी वर्ग भी व्यापार निमित्त सुदर प्रान्तों में जाकर बस गये थे। इस जाति की हंसा, जालीबाहु, कुंकड़, निशानिया, भंगिया, संघवी, कोठारी, मेहतादि कई शाखा-प्रतिशाखाएं निकली थी। इससे पाया जाता है कि एक समय यह जाति बहुत उन्नति पर थी। वर्तमान में तो काग जाति का मादलिया ग्राम में एक घर ही रह गया है ऐसा सुना जाता है। वंशालियों के आधार पर इस जाति के उदारचित्त श्रीमन्तों ने निम्न शासन प्रभावक कार्य किये
६२-मन्दिर एवं धर्मशालाएं बनवाई । २६-बार तीर्थों की यात्रा के लिये संत निकाले । ३६-बार संघ को बुलाकर संघ पूजा की। ४-वीर योद्धा इस जाति के युद्ध में काम थाये । २----वीरांगनाएं अपने मृत पति के साथ सती हुई। इत्यादि अनेक कीर्तिवर्धक कार्यों का उल्लेख वंशावलियों में इस जाति के सम्बन्ध में पाया जाता है।
एक बार आचार्यश्री ककसूरिश्वरजी महाराज अपनी शिष्य-मण्डली के साथ विहार करके पधार रहे थे। मार्ग में भयानक अरण्य को अतिक्रमण करते करते ही भगवान भास्कर अस्ताचल की ओर प्रयाण कर गये। सूर्यास्त होजाने के कारण आप चारित्र वृत्ति विषयक नियमानुसार अरण्य स्थित एक मन्दिर में ही ठहर गये । आपश्री का शिष्य समुदाय मार्ग जन्य श्रम से श्रमित होने के कारण जल्दी ही निद्रादेवी की सुखभय गोद का आश्रय लेने लग गया पर आचार्यश्री की आंखों में निद्रा का था प्रमाद का किञ्चित् मात्र भी विकार पैदा नहीं हुआ। वे ज्ञान ध्यानादि पवित्र क्रियाओं में निमग्न होकर समय को व्यतीत करने लगे। मध्य रात्रि के शून्य एवं निनाद विहीन नीरव समय में यकायक सिंह पर बैठी हुई एक देवी मन्दिर में आई। वहां पर साधुओं को सोते हुए देख देवी के क्रोध का पारावार नहीं रहा। देवी क्रोधाभिभूत हो बोल उठी-अरे साधुओं ! तुम लोग यहां क्यों पड़े हो ? यहां से शीघ्र ही प्रयाण करदो अन्यथा सब ही को अभी अपना पास सूरिजी और देवी का संवाद
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