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________________ आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ] [ओसवाल सं० १२६२-१३५२ मोडो (महावीर का मन्दिर) मानो अंबो हरिसिंह (दुकाल में दान) रामचन्द सावंतसिंह (शत्रुजय का संघ स्वर्णमुद्रि लहण में) सहसमल दलपतसिंह कल्याणमल ठाकुरसिंह (भ० महावीर मन्दिर) पुनमचन्द राजसिंह ( संघ पूजा) वोरीदास रूपो मलुकचन्द गोपीचन्द कमलसिंह खेमराज उतमचन्द बख्तावरमल करमसिंह ( दुकाल में अन्नदान) जोरावरसिंह तिलोकचन्द हंसराज धीरजमल सूरजमल पेमराज बछराज रुगनाथमल सुगालचन्द हेमराज भारमल दोलतराज रावतमल जतनमल राजमल जसराज सुखमल दुर्गाचन्द (कोसाना की शाखा) लालचन्द फोजमल समरथमल नथमल (वि० सं० १६१० तक थे) गंभीरमल यह तो क्रमशः मूल नाम लिखे हैं इनका परिवार एवं शाखें तो विस्तार से वंशावलियों में है यदि उन सबको लिखा जाय तो एक स्वतंत्र ग्रन्थ बन जाता है वे दिन इस जाति के उन्नति के दिन थे गान्धी जाति-प्राचार्य परमदेवसूरि एक समय आबंदाचल की ओर पधार रहे थे । जंगल में एक देवी के मन्दिर के पास एक ओर तो बहुत से क्षत्री लोग खड़े थे दूसरी ओर बहुत से भैंसे बकरादि निरापरधि मूक पशु बन्धे हुए थे। आचार्यश्री के दो मुनि रास्ता की भ्राति से उस देवी के मन्दिर के पास आ निकले और उन्होंने उस जघन्य कार्य को देख शीघ्र ही जाकर सूरिजी को कहा और सूरिजी चलकर वहाँ आये तथा उन लोगों को उपदेश देने लगे । पर उन घातकी लोगों पर कुछ भी असर नहीं हुआ फिर भी सरिजी हताश न होकर उनके अन्दर कुछ लोगों को अलग लेकर समझाया तो उनके समझ में आ गया कि देवी जगदम्बा है चराचर प्राणियों की माता है रक्षा करने वाली है। अतः इन भैंसा बकरादि को मुक्त कर अभयदान दिया और बहुत से क्षत्रियों ने सूरिजी के समीप अहिंसामय जैन धर्म को स्वीकार कर लिया जिसमें मुख्य राव खंगार, रावचूड़ा, रावअजड़, रावकुम्भादि थे इसका समय वंशावलियों में वि० सं०५०६ का बतलाया है । गान्धी जाति की उत्पत्ति १३६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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