SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 635
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ८६२-६५३] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास राव खगार की-सन्तान परम्परा की सातवीं पुरत में राव कल्हण हुआ । आपके नौ पुत्रों में एक सारंग नाम के पुत्र ने केसर कस्तूरी कर्पूर धूप इत्र सुगन्धी तैलादि का व्यापार करने से लोग उनको गान्धी कहने लग गये तब से वे उपकेशवंश में गान्धो नाम से प्रसिद्ध हुए। आगे चल कर शाह वस्तुपाल तेजापल के कारण जाति में दो पार्टियाँ होगई जैसे छोटाधड़ा बड़ाधड़ा अर्थात् ल्होड़ा साजन और बड़ा साजन, गान्धी जाति में भी दोनों तरह के गान्धी आज विद्यमान है। २-दूसरा राव चूड़ा की--सन्तान परम्परा में राव खेता बड़ा नामी पुरुष हुआ उस पर देवी चक्रेश्वरी की पूर्ण कृपा थी जिससे उसने अंभोर में भ० पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया तीर्थों का संघ निकाल सब यात्रा की साधर्मी भाइयों को पहरावणी दी तब से खेता की संतान उपकेशवंश में खेतसरा कदलाई। आगे चलकर खेता को परम्रा में शाह नारा ने चन्द्रावती दरबार के भण्डार का काम करने से वे खरभंडारी के नाम से प्रसिद्ध हए। ३-तीसरा राव अजड़ की सन्तान परम्परा में शाहालाधा ने बोरगत जागीरदारों को करज में रकम देन लेन का धंधा करने से वे बोहरा के नाम से मशहूर हुए। ४ चौथा रावकुम्भा की--सन्तान परम्परा की आठवीं पुश्त में शाह सवलो हुआ आपने शत्रुञ्जय गिरनार की यात्रार्थ संघ निकाला । भ० आदीश्वरजी का मन्दिर बनाया। और १४५२ गणधरों की स्थापना करवा कर संघ को वस्त्र सहित एक एक सुवर्ण मुद्रिका पहरावणी दी। उस दिन से लोग आपको गणधर नाम से पुकारने लगे। अतः आपकी सन्तान की जाति गणधर कहलाई । इत्यादि आपका वंशवृक्ष विस्तार से लिखा हुआ है। ढलडिया बोहरा-श्राचार्य सिद्धसूरि के अाज्ञावर्ती पं० राजकुशल बहुत मुनियों के परिवार से विहार करते हुए चन्द्रावती नगरी पधार रहे थे। उधर से जंगल से कई घुड़सवार आ रहे थे उन्होंने बड़ वृत के पास वापी पर विश्राम लिया। भाग्यवशात् पण्डित राजकुशल भी अपने मुनियों के साथ वटवृक्ष के नीचे विश्राम लिया । उन राजपूतों में से एक आदमी पंण्डितजी के पास आकर पूछा श्राप कौन हैं और कहाँ जा रहे हैं ? पं. जो ने कहा हम जैन श्रमण हैं और हमारे जाने का निश्चय स्थान मुकर्रर नहीं है। हम धर्म का उपदेश देते हैं जहाँ धर्म का लाम हो वहीं चले जाते हैं आदमी ने पूछा कि आप भूत भविष्य को या निमित शात्र को भी जानते हैं। यदि जानते हैं तो बतलाइये हमारे रावजी के संतान नहीं है आप ऐसा उपाय बतलायें कि हम सब लोगों की मनोकामना पूर्ण हो जाय ? पण्डितजी ने अपना निमित ज्ञान एवं स्वरोदय बल से बात जान गये कि रावजी के पुत्र तो होने वाला है । अतः श्रावने कहा कि यदि आपके रावजी के पुत्र हो जाय तो आप क्या करोगे ? श्रादमी ने कहा कि आप जो मुँह से मांगें वही हम कर सकेंगे । जो ग्राम परगना मांगें या धन मांगें ? पण्डितजी ने कहा कि हम निस्पुड़ी निर्ग्रन्थों को न तो राज की जरूरत है और न धन की यदि आप के मनोरथ सफल हो जाय तो आप अपने रावजी के साथ भवतारक परम पुनीत जैनधर्म को स्वीकार व.रले कि जिससे आपका शीघ्र कल्याण हो । आदमी ने जाकर रावजी को सब हाल कहा अतः रावजी भी पण्डितजी के पास आये और पण्डितजी ने रावजी को वासक्षेप दिया और रावजी प्रार्थना कर पण्डितजी को अपने नगर सोनगढ़ में ले आये पण्डितजी एक मास वहाँ स्थिरता की हमेशा व्याख्यान होता रहा रावजी आदि आपका सब परिवार एवं राज कर्मचारी व्याख्यान का लाभ लिया करते थे। इतना ही नहीं पर उन लोगों को श्रद्धा एवं रूची भी जैन धर्म की ओर झुक गई पर जब तक रावजी जैन धर्म स्वीकार न करें वहाँ तक दूसरे गी कैसे धारण करे । खैर एक मास के बाद पण्डितजी वहाँ से विहार कर दिया। १३६४ चार सरदारों की सन्तान चार जाति www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy