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वि० सं०८९२-६५२]
[भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
६१-बार तीर्थ यात्रार्थ संघ निकाल संघ को पहिरावणी दी। ११४-बार संघ को घर बुलाकर श्रीसंघ की पूजा की। ७-आचार्यों के पद महोत्सव किये। १६-ज्ञान भण्डारों में आगम पुस्तकादि लिखवाकर रक्खीं। ११-कूए, तालाब, बावड़ियाँ बनवाई । ८-बार दुष्काल में करोड़ों का द्रव्य व्यय कर शत्रुकार दिये । ४६-वीर पुरुष युद्ध में काम आये और १४ स्त्रियां सती हुई।
इसके सिवाय भी इस जाति के बहुत से वीरों ने राजाओं के मन्त्री, महामन्त्री, सेनापति आदि पदों पर रह कर प्रजाजनों की अमूल्य सेवा की । कई नरेशों की ओर से दिये हुए पट्टे परवाने अब भी इस जाति की सन्तान परम्परा के पास विद्यमान है।
छाजेड़ जाति का वंश वृक्ष राव आसल (सोमदेव)
कजल (महावीर का मन्दिर बनाया)
धवल
तीर्थों का संघ यात्रार्थ ] छाजू [छाजेड़ कहलाये
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उदो
धरण
खूमाण
लाल्लग
भीमसिंह
सज्जनसिंह
कुलधर अजित (अजितनाथ का मन्दिर)
सावंत सोढ़ ( तीर्थों की यात्रार्थ संघ) लाखो (पार्श्वनाथ का मन्दिर) लुंगो माडण रूंघो (८४ बुलाकर संघ पूजा)
सीमधर साहरण (पार्श्वनाथ का मन्दिर)
भाणो (शत्रुजय का संघ) भोपाल ( यहाँ तक राज किया) धोकल ( व्यापार में) देवो ( महावीर मन्दिर) तारो ( यात्रार्थ संघ) रामसिंह ( महामंत्री)
पातो
一一一一一一
कानो
हरखो
जावड़
नहारसिंह
भानो
चन्द्रभान
धरमशी ( दुकाल में द्रव्य) मोडो (महावीर का मन्दिर)
जैतसिंह (यात्रार्थ संघ) हरिसिंह (दुकाल में दान)
रामचन्द
Jain Ed९३६२
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छाजेड़ जाति की वंशावली
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