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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ोसवाल सं० १२६२-१३५२
है पर ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से विशद विवेचन नहीं किया गया है । इस जाति के लोगों को चाहिये कि वे अपनी जाति के महापुरुषों के इतिहास का संग्रह करें। __ मंडोवरा जाति-प्रतिहार देवा वगैरह क्षत्रियों को वि० सं० ६३५ में आचार्यश्री सिद्धसूरिजी ने मांस मदिरा का त्याग करवा कर जैन बनाये। आपका मूल स्थान माण्डव्यपुर होने से आप भण्डोवरा के नाम से प्रख्यात हुए । इस जाति की एक समय बहुत ही उन्नत अवस्था थी। मण्डोवरा जात्युत्पन्न महापुरुषों ने देश, समाज एवं धर्म के हित करोड़ों का द्रव्य व्ययकर अपनी उज्वल सुयश ज्योत्स्ना को चतुर्दिक में विस्तृत की । इस जाति के वीरों के नाम से रजपुर, बोहरा, कोठारी, लाखा, पातावत आदि कई शाखाएं निकली। इन शाखाओं के निकलने के कारण एवं समय का विस्तृतोल्लेख वंशावलियों में मिलता है पर ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से केवल नामावली मात्र लिख दी जाती है। मेरे पास जितनी वंशावलिये हैं उनके आधार पर मण्डोवरा जाति के श्रीमन्तों ने
१३६-जिन मन्दिर एवं धर्मशालाएं बनवाई। १३-बार तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाले । ७-कूए, तालाब एवं बावड़ी खुदवाई । १७६-सर्वधातु एवं पाषाण की मूर्तियां बनवाई । २६-बार संघ को अपने यहां बुला, श्री संघ की पूजा की। ५-बार पैतालीस २ आगम लिखवा कर ज्ञानवृद्धि की। १-एक उजमणी में तो नवलक्ष रूपये व्यय किये। इत्यादि, कई महापुरुषों ने अनेक शुभ कार्य कर स्वपर के कल्याण के साथ जैन धर्म की प्रभावना की।
मल्न जाति-खेड़ीपुर के राठौड़ रायमल्ल को वि० सं०६४६ में आचार्यश्री सिद्धसूरिजी ने प्रतिबोध देकर जैन धर्म में दीक्षित किया। आपकी सन्तान उपकेश वंश में मल्ल जाति के नाम से प्रसिद्ध हुई। मल्ल जाति का इतना अभ्युदय हुआ कि कई नामी पुरुषों के नाम पर कई शाखाएं चल पड़ी जैसे-भाला, वीतरागा कीडेचा, सोनी, सुखिया, महेता नरवरादि कई जातियें बनगई। मेरे पास की वंशावलियों से इस जाति के दानवीरों ने निम्नलिखित शुभ कार्य किये
७५- मन्दिर व धर्मशालाएं बनवाई। ३७-बार यात्रार्थ तीर्थों के संघ निकाले । ४८-चार श्रीसंघ को अपने घर पर बुलाकर संव पूजा व पहिरावणी दी। २८-वीर योद्धा युद्ध में काम आये और १२ स्त्रियां सत्ती हुई।। १-खेड़ीपुर से पूर्व दिशा में पगवावड़ी बन्धवाई जिसमें सवालक्ष रुपये व्यय हुए। ४-बार जैनागम लिख कर भण्डार में रखवाये।
इत्यादि, अनेक शुभ कार्य किये । यह तो केवल मेरे पास की वंशावलियों के आधार पर ही लिखा है पर इनके सिवाय भी बहुत से सुकृतोपार्जन के कार्य किये जो दूसरी वंशावलियों में पाये जाते हैं। __छाजड़ जाति-आचार्यश्री सिद्धसूरिजी म० एक समय विहार करते हुए शिवगढ़ पधार गये । शिवगढ़ निवासियों ने आपनी का नगर प्रवेश महोत्सव बड़े ही ठाठ से किया । सूरीश्वरजी ने भी तदुपयोगी अहिंसादि के विषयों पर अपना व्याख्यान क्रम प्रारम्भ रक्खा । जिस समय आचार्यश्री शिवगढ़ में विराजते थे उस समय शिवगढ़ नरेश राठौड़ राव आसल के पुत्र कज्जल का विवाह था। एक दिन आचार्यश्री के शिष्य थंडिल भूमिका को गये हुए एक साधु वृक्ष की अोट (श्राड़) में बैठा था कि इधर से किसी एक राजपूत मंडोवरा एवं मल्ल बाति की उत्पत्ति
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