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वि० सं० ८६२-६५२]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
सूर्य मल्ल-वि० सं० ६३३ में जैन बना था सलखण-इनके समय से बाधमार गौत्र प्रचलित हुई (भियाणीपुर में ) पुहड़-इन्होंने सम्मेत सिखरजी की यात्रा के लिये संघ निकाला। भाणु-इन्होंने श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर बनवाया। टीबा-इनके दो स्त्रिये थी। (व्यापार करने लगा)
रुक्मणि
सोनल ( महावीर मन्दिर) (उपकेशवंशीय ) (क्षत्रिय पुत्री)
वारीशाल (शत्रुञ्जय संघ) कर्मोन
मूलो जोगड़
(मन्दिर)
जावड़ डाबर पोमो
अजित
शम्भू दुजेनशाला
(दुष्काल में) खेतो जीवो
( बहुत विस्तार पूर्वक वंशावली है ) (आगरे गये ) ( मथुरा-मन्दिर )
ग्रन्थ वढ़ जाने के भय से सबकी सब वंशावलियाँ यहाँ उद्धृत नहीं की गई हैं।
इसी बाघमार जाति से कई कारण पाकर फलोदिया, हरसोणा, सिखरणीया, तेलोरा, संघवी, लडवाया, सूरवा, साचा, गोदा, ख जाञ्ची आदि कई शाखाएं निकली जिनकी महत्व पूर्व घटनाओं का उल्लेख वंशावलियों में उपलब्ध हैं। इस जाति के वीर, उदार, दानीश्वरों ने देश, समाज एवं धर्भ की बड़ी २ सेवाएं की हैं । मेरे पास वर्तमान वंशावलियों के टोटल के अनुसार बाघमार जाति के श्रीमन्तों ने
२७३ जिन मन्दिर बनवाये तथा कई मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाये । ८७ बार यात्रार्थ तीर्थों के संघ निकाले । १०१ बार श्री संघ को अपने यहां बुला कर श्रीनंघ की पूजा को । ५४२ सप्त धातु की मूर्तियां बनवाई। २६ मन्दिरों पर सोने के कल रा चढ़ाये । २६ तीन बावड़िये १६ कूए और सात तालाब खुदवाये । १५३ वीर पुरुष १३२ युद्ध में काम आये और १८ वीरांगनाएं सतियां हुई। १७ प्राचार्यों का पट महोत्सव किया तथा कई बार महोत्सव कर महा प्रभाविक श्री भगवती सूत्र
बंचवाया । सात बड़े ज्ञान भण्डार स्थापन करवाये। ७ बार दुष्कालों में करोड़ों का द्रव्य व्ययकर देश बन्धुओं की सेवा की।
उक्त ऐतिहासिक घटनाओं के सिवाय भी वंशावलियों में इनके कार्यक्रम का विस्तार से उल्लेख मिलता Jain E१३५८mational
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राव सुहड की वंशावली
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