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________________ वि० सं० ८३७-८६२ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास चातुर्मास की समाप्ति के पश्चात् एक कोड़ी - अर्थात् २० मुमुक्षु दीक्षा के लिये सन्यासीजी के साथ और तैयार होगये । बस फिर तो देरी ही क्या थी ? ठीक समय में राव सोनग ने बड़े ही समारोह पूर्वक दीक्षा का महोत्सव किया। सूरीश्वरजी ने भी चतुर्विध श्रीसंघ के समक्ष सन्यासी प्रभृति २० भावुकों को शुभ मुहूर्त एवं स्थिर लग्न में भगवती दीक्षा देकर उनकी आत्मा का कल्याण किया । दीक्षानन्तर सन्यासी का नाम ज्ञानानन्द रख दिया । दीक्षा वगैरह माङ्गलिक कार्यों के सानन्द सम्पन्न होने पर आचार्यश्री ने शीघ्र ही वहां से बिहार कर दिया। इधर राव सोनग के द्वारा बनवाये जाने वाले मन्दिर का काम भी बड़े ही जोरों से व शीघ्रता से प्रारम्भ कर दिया गया। आचार्यश्री ने भी सिन्ध प्रान्तीय उच्चकोट, मारोटकोट, रेणुकोट, मालपुर, कपाली, धारु, जाकोली, डामरेलपुर, देवपुर, सीलार, धारकोट, नागरकोट, खीणी, वेलाव रुदरी, गोसल - पुर, आपली, दीवकोट वगैरह ग्राम नगरों में फिर कर खूब ही धार्मिक क्रान्ति मचाई। चातुर्मास के समय में डामरेल नगर के श्रीसंघ के अत्याग्रह से डामरेलपुर में ही सूरिजी ने चातुर्मास कर दिया । aar के रावसोन ने जिस दिन भगवान्महावीर के मन्दिर की नींव डाली उसी दिन आपकी रानी के गर्भ रह गया । क्रमशः नव मासानन्तर आपके पुत्ररत्न का जन्म हुआ अत: जैन धर्म पर व सूरिजी पर रावजी की श्रद्धा बहुत ही बढ़ गई। जब रावजी ने सुना कि सूरिजी का चातुर्मास डामरेल नगर में हो चुका है तो दर्शनार्थ आप स्वयं जाने को तैय्यार हो गये । सारे नगर में अपने जाने के साथ ही साथ यह घोषणा करवादी कि जिस किसी को आचार्य जी के दर्शन के लिये डामरेलपुर चलना हो वह सहर्ष मेरे साथ चल सकता है । उसके सम्पूर्ण खर्चे का उत्तरदायित्व मेरे ऊपर रहेगा । राव सोनग की उक्त घोषणा को सुन बहुत से दर्शनेच्छुक भावुक डामरेल, आचार्यश्री के दर्शनार्थ जाने को तैय्यार हो गये । क्रमशः राव सोनग ने भी अपनी रानी, नवजात शिशु एवं दर्शनाभिलाषी भाबुकों के साथ डामरेलपुर की ओर प्रस्थान कर दिया डामरेल पहुंच कर सबने खुशी एवं भक्ति के साथ आचार्यश्री को वन्दन किया महात्मा ज्ञानानन्दजी मुनि भी उस समय सूरिजी के ही साथ थे। राव सोनग ने कृतज्ञता सूचक प्रसन्नता प्रकट करते हुए नवजात बालक पर आचार्यश्री के कर कमलों से वासक्षेप डलवाया। साथ ही वीरपुर पधार कर मन्दिर की प्रतिष्ठा करने के लिये विनय पूर्ण शब्दों में आग्रह भरी प्रार्थना की। सूरिजी ने वर्तमान योग - कह कर संतोष दिया। राव सोनग भी आठ दिवसपर्यन्त स्थिरता कर पूजा, प्रभावना स्वाभीवात्सल्य, अष्टान्हिका महोत्सव, और सूरिजी के पीयूषरस प्लावित उपदेश श्रवण का लाभ उठाया । पश्चात् पुनः संघ सहित अपने नगर को लौट आये । सूरिजी की सेवा में ऐसे ही एक तो यक्ष था और दूसरे मंत्र यंत्रादि नाना विद्या परायण ज्ञानसुन्दर नाम के सन्यासी शिष्य थे अतः आपने सिन्धधरा में सर्वत्र परिभ्रमन कर धर्म का खूब ही प्रचार किया। समय पर वीरपुर पधार कर शुभमुहूर्त में राव सोनग के बनवाये हुए महावीर मन्दिर की बड़ी धामधूम से प्रतिष्ठा करवाई | रावजी ने जिनालय प्रतिष्ठा की खुशाली में आगत संघ - समुदाय को भी सुवर्ण मुद्रिका की प्रभावना दी इससे अन्य लोगो पर जैनधर्म का पर्याप्त प्रभाव पड़ा । क्रमशः इधर उधर परिभ्रमन एवं धर्म प्रचार करते हुए आचार्यश्री ने तीसरा चातुर्मास गोसलपुर में किया । गोसलपुर के चातुर्मास के सानन्द सम्पन्न होने पर आपश्री ने पंजाब प्रान्त में पदार्पण किया। पंजाब प्रान्तीय इतर श्रमण मण्डली को धर्म प्रचार के मार्ग में सविशेष प्रोत्साहित एवं अग्रसर करते हुए आप श्री ने दो चातुर्मास पंजाब प्रान्त में भी कर दिये । पंजाब प्रान्त में आपश्री के आज्ञानुयायी बहुत से मुनि वर्तमान थे अतः मुनि विहीन क्षेत्र में धर्म प्रचारार्थ जाना आप को विशेष श्रेयस्कर एवं हितकर ज्ञात हुआ इसी कारण से आपने पंजाब प्रान्त में ज्यादा स्थिरता न कर पूर्व की ओर पदार्पण कर दिया । क्रमशः पूर्व प्रान्तीय तीर्थों के दर्शन करते हुए व ग्राम नगरों में धर्मोद्योत करते हुए आचार्यश्री ने पाटलीपुत्र में चातुर्मास कर दिया। वहां का चातुर्मास सानन्द सम्पन्न करके आपश्री ने कलिङ्ग की ओर पदार्पण किया । कलिङ्ग प्रान्तीय शत्रुञ्जय, गिरनार अवतार तीर्थ की यात्रा १३३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only राव सोनग द्वारा महावीर मन्दिर www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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