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प्राचार्य देवगुप्तसरि का जीवन ]
[ोसवान सं० १२३०-१२६२
(१२) मुखवत्रिका-इसका परिमाणचउरंगुल विहत्यि एवं मुहणंतगस्सउप्पमाणं । बीयं मुहप्पमाण गणण पमाणेणं इक्विकं ॥ अर्थात्-१६ अंगुल प्रमाण अपने अंगुल से तथा मुखप्रमाण मुख वत्रिका एक ही रखे । प्रयोजन
संपाइमरयरेणु पमाणहायति मुहपति । नासं मुहं च बंधह तीए वसहि पमंजतो ॥
अर्थात्-मक्खी, मच्छर, पतंगिये वगैरड् जीवों की रक्षा के लिये व रजरेणु प्रमार्जन के लिये मुखवत्रिका का विधान है तथा वसति प्रमार्जन के समय व अशुचिस्थान के कारण के समय व दोनों किनारे कान में डाल कर नाक पर्यन्त अछादन कर सकते हैं।
(उक्त १२ उपकरण जिनकल्पी मुनियों के लिये कहे गये हैं) (१३)-मात्रक- (घड़ा या तृपणी विशेष ) इस का परिमाण जो मागहो पत्था सविसेसयरं तु मत्तगपमाणं । दोसुवि दव्वगहणं वासावापासु अहिगारो ।।
भावार्थ-मागधदेश के परिमाण विशेष का पात्र बतलाया है । इसका प्रयोजनपायरिए य गिलाणे पाहुणए दुबलह सहसदाणे । संसत्तए भत्तपाणे मत्तगपरिभागणुनाउ । संसत्तभत्तपाणसु वा वि देसेसु मत्तए गहणं । पुव्वंतु मत्त पाणं सोहेउ मुहंति इयरेसु॥ अर्थ-आचार्य, गलानि, अतिथि वगैरह साधुओं के स्वागतार्थ विशेषोप्रयोग में आते हैं। (१४)-चोलपट्टा-ये कटि भाग में पहिनने के काम में आता है-इसका परिमाणदुगुणो चउराणोवा हत्थो चउरंस चोलपट्टोय । थेर जुवाणाणा सरहे थूलंमि य विभासा ।।
अर्थात्-यह वन एक हाथ के पन्ने का होता है। स्थविर और युवक के कटिबन्धानुक्रमशः दो हाथ और चार हाथ का होता है । स्थविर के सन्ह युवक के स्थुल इस प्रकार से इसका प्रयोजन
वेउव्ववाउडे वाइसे हीए खद्ध पजणणे चेव । तेसिं अणुग्गहटा लिंगुदयट्टा य पट्टो उ ॥
अर्थात्-शीतोष्णा से रक्षा करने के लिये, तथा लज्जा निवारण के लिये व लिंगाच्छादन के लिये चोलपट्ट की अावश्यकता रहती है।
( उक्त चौदह उपकरण स्थविर कल्पी मुनियों के होते हैं ) साध्वी के लिए उक्त १४ उपकरणों के सिवाय ११ उपकरण और भी है। (१५)-अवग्रहान्तक-होड़ी के थाकार वाले गुप्त स्थान को अच्छादित करने का वस्त्र विशेष ।
(१६)-पट्ट-चार अंगुल चोड़ा कमर बांधने के काम में आता है। अवग्रहांतक इसी के आधार पर रहता है।
(१७)-अोसक-कमर से आधी साथल तक पहिनने की चडी।
(१८)-चलणिका-चडी के आकार का ढीचण पर्यन्त पहिनने का वस्त्र विशेष । ये दोनों बिना सीये कसों से ही बांधे जाते हैं।
(१६)-अभ्यन्तर र्निवसनी-कमर से जंधापर्यन्त घाघरे के आकार का अन्दर पहिनने का वा ।
(२०)-बहिर्निवसनी-कमर से पैर की एटी पर्यन्त लम्बे घाघरे के आकार वाला वस्त्र । यह वस्त्र कटि भाग पर नाड़ी से बांधा जाता है । उक्त सर्व कमर के नीचे रखने के लिये साध्वियों के आवश्यक उपकरणों का विधान किया है। जैन साध्वियों के धर्मोपकरण
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