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________________ याचार्य ककसूरि का जीवन [ओसबाल सं० ११७८-१२३७ भाइयों को धन से सुखी बनाया। सर्व तीर्थों की यात्राकी सात बार न्याति घर अांगने पर बुलाकर सुवर्ण नारियल की प्रभावना दी। १३८-सात यज्ञ किये जिसमें ४९ मन हींग लगी संघपूजा कर एक-एक मुहर पहरामणी में दी। १३९-चौरासी तालाब खुदवाये ८४ यात्रीगृह और ८४ मंदिर बनवाये संघ पूजा की। । १४०-दुष्काल में एक करोड़ द्रव्य तय किया ७ तालाब खुदवाये संघ पूजा की। १४१- सर्व तीर्थों का संघ निकाला, यात्रा की, सात-सात सुवर्ण सुपारियाँ सघ में बांटी। १४२-शत्रुजय की यात्रार्थ संघ निकाला तीर्थ पर सुवर्ण ध्वजा चढ़ाई । इक्कीस प्राचार्यों को सूरिपद ४५ ४५ आगम लिखवाकर अर्पण किये संघ पूजा की। १४३-मंत्री श्रआसपाल ने विधवा कुमारदेवी से पुनर्लग्न किया था जिस कुमार देवी के चार पुत्र हुये जिसमें वस्तुपाल तेजपाल भी दो पुत्र हैं आपके ही कारण संघ में दो पार्टियां बन गई थीं वे अद्यावधि लोड़े साजन बड़े सजन के नाम से प्रसिद्ध हैं। जैनस सार में धार्मिक कार्यों में विनो भेद जितना द्रव्य वस्तुपाल तेजपाल ने व्यय किया उतना द्रव्य उनके बाद शायद ही किसी ने किया हो । जिस समय संघ में इन युगल बन्धुओं के लिये मतभेद खड़ा हुआ उस समय यदि किसी ने इनका साथ नहीं दिया होता और शायद वे जैनसघ से खिलाफ हो नुकसान पहुँचाना चाहते तो जितना धर्म का उद्योत किया उससे कई गुना अधिक नुकसान पहुँचा सकते । फिर भी जैनसघ का अहोभाग्य था कि कई लोगों ने जमाना को देख उनका साथ देकर जैनधर्म में उनको स्थिर रखे । कलिकाल की कचहरी में उन युगलवीरों को साथ देने वालों को यह इनाम मिला कि उस समय से आज पर्यन्त उनके साथ रोटी व्यवहार होते हुए भी बेटी व्यवहार नहीं किया जाता है। उस समय के बाद मांस मदिरादि दुर्व्यसन सेवी राजपूतादि की शुद्धि कर उनके साथ रोटी बेटी व्यवहार कर लिया पर अपने सदृश्य श्राचार व्यवहार वालों से अभी तक परहेज ही रक्खा जाता है । यही कारण है कि इतर लोग कहते हैं कि जैन तोड़ जानते हैं पर जोड़ नहीं जानते हैं। खैर वस्तुपाल तेजपाल ने अपने जीवन में क्या २ काम किया जिसको संक्षिप्त में कहा जाय तो ५५०४ देवभुवन के सदृश्य शिखरबन्ध जैनमंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाई । २०३०० प्राचीन जैनमंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया जिसमें पुष्कल द्रय व्यय किया। १२५००० नयी जिन प्रतिमाएं बनाई जिसमें पाषाण सर्वधातु तथा सुवर्ण रत्नों की भी शामिल हैं इस कार्य में कई १८ करोड़ रुपयों का उस समय खर्चा हुआ था। ३ नये ज्ञानभंडार स्थापन करवाये जिसमें स्व-परमत के सर्व शास्त्र संग्रह किये थे और प्राचीन ग्रन्थों को ताड़पत्र या कागजों पर सुवर्ण स्याही से भी लिखवाया था। ७०० शिल्पकला के आदर्श नमूना रूप हाथीदांत के सिंहासन । ९८८ धर्म साधन करने के लिये धर्मशालाएं एवं पौषधशालाएं बनाई । ५०५ समवसरण के लायक सलमा सितारे एवं जरी मुक्ताफल के चन्दरवे करवाये ? १८९६००००० तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय पर जिन मंदिर एवं जीर्णोद्धार करवाने में व्यय किये । १८८०००००० तीर्थ श्री गिरनारजी पर भ० नेमिनाथ का मंदिर बनवाने में तथा अन्य कार्यों में । १२८०००००० तीर्थ श्री अर्बुदाचल पर भ० नेमिनाथ का मंदिर बनवाने मेंतथा आप दोनों की पनियां ५४॥ शाहों की ख्याति १२९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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