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वि० सं० ७७८-८३७]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
ललितादेवी और अनुपादेवी ने दो गोक्ष बनाने में अष्टादश लक्ष रुपये खर्च किये जो दंगणी जेठाणी के गोखले के नाम से अद्यावधि विद्यमान हैं जिसको भारतीय ही नहीं पर
पाश्चात्य भी सैकड़ों विद्वान देखकर दंग रह जाते हैं। ३००००० सोनइयों के खर्च से बनाया हुआ एक तोरण तीर्थ श्रीशत्रुजय पर अर्पण किया ३०००.० सोनइयों के खर्च से बनाया हुआ एक तोरण तीर्थ श्रीगिरनार पर अर्पण किया ३००००० सोनइयों के खर्च से बनाया हुश्रा एक तोरण तीर्थ श्रीअर्बुदाचल पर अपण किया
२५०० घर देरासर बनाये जिनमें कई देरासरों में रत्नों की मूर्तियां भी स्थापन की २५०० भगवान की रथयात्रा के लिये सुन्दर कारीगरी के काष्ठ के रथ वनवाये
२४ भगवान की रथयात्रा के लिये सुन्दर कारीगरी के दान्त के रथ वनवाये १८००००००० रुपये व्यय कर ज्ञान भंडारों के लिये प्राचीन ग्रंथों को लिखवाया
७०० ब्राह्मण धर्म वालों के लिये सुन्दर धर्मशाएं बनवा कर उनके सुपुर्द करदी ७०० आम जनता की सुविधा के लिये नित्य चलने वाली दानशालाएं बनाई ३००४ वैष्णवों के मन्दिर बनाकर उन लोगों के सुपुर्द कर दिये ७०० तापसों के ठहरने के लिये सर्वानुकूलता सहित आश्रम बनाये ६४ मुसलमानों के लिये मसजिदें बनाकर उनको भी संतुष्ट किया ८४ पक्के घाट वन्ध सरोवर बनाकर आम जनता को आराम पहुँचाया ४८४ साधारण घाट वाले तालाक पृथक् २ स्थानों पर कि जहाँ जरूरत समझी ४६४ जनता के गमनागमन करने के मार्ग पर वावड़िया बनवा दी ४००० मुसाफिर लोगों के ठहरने के लिये मकान वनवाये जहाँ जरूरत थी ७०० पानी पिलाने के लिये सदैव चलने वाली प्याऊ बनवादी ७०० पानी के कुवे बनाकर जनता की पानी की तकलीफों को सदैव के लिये मिटा दिया
३६ राजा महाराजाओं को निर्भय बनाने के लिये बड़े २ किले बनवाये ५०० अापकी उदरता के स्वरूप हमेशा ब्राह्मणों को रसोई करवा कर तृप्त किये जाते १००० तापस सन्यासी एवं आगन्तुक लोगों को भोजन करवाया जाता था ५००० जैन श्रमण श्रमणियाँ आपके रसोड़ा से निर्वद्य आहार पानी वेहरते थे
२१ श्राचार्यों को महामहोत्सव पूर्वक सूरिपद दिलाया २००० सोनाइयों को ताबावती नगरी में सुकृत के कार्यों में व्यय किया
इनके अलावा भी अनेक सुकृत के कार्य कर अपनी उदारता का परिचय दिया उस समय तथा उसके बाद भी बहुतसों के पास लक्ष्मी आई और गई पर वे लक्ष्मी के सद्भावमें भी लक्ष्मी के प्रमाण में भी सुकृत नहीं कर सके। यह बात तो निश्चित ही है कि संसार में जन्म लेकर अमर कोई नहीं रहा पर जिन लोगों ने इस प्रकार सुकृत का कार्य किया है वह आज भी अमर ही हैं । वस्तुपाल तेजपाल और इनकी पत्नियों ने केवल लक्ष्मी से ही सुकृत किया हो ऐसा नहीं है पर उन्होंने अपने शरीर से भी प्राचार्योपाध्याय एवं मुनियों की सेवा करने में कमी नहीं रखी थी इन सब बातों को उसी समय के जैनेत्तरों ने भी लिपि बद्ध की थी। १३००
७४॥ शाहों की ख्याति
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