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________________ वि० सं० ७७८-८३७ ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास लड्डू के अन्दर पांच पांच मुहरें गुप्त रूप से सब साधर्मियों को दी। १९८-श्राप पाटणके राजा भीम के मुख्य सेनापति थे आपने अाबू के ब्राह्मणों से भूमि पर रुपये एवं सोने के पत्रे बिछवा कर भूमि प्राप्त की और उस पर भ० ऋषभदेव का मन्दिर बनाया जो अद्भुत एवं शिल्प का एक आदर्श ही है आज भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वान उन मन्दिरों के दर्शन कर मुक्तकंठ से भरि भूरि प्रशंसा कर रहे हैं विमलशाह ने कई बार तीर्थों की यात्रा कर साधर्मी भाइयों को पहरावणी दी एवं जैन शासन का उद्योत किया । और अनेकों जनोपयोगी कार्य भी किये । ११९- श्राप पहिले गरीबावस्था में थे पर जैन शासन के पक्के भक्त एवं स्तम्भ थे गुरु कृपा से छाणे (कंडे) स्वर्ण बन गये जिससे गादिया सिक्का चलाया इससे आपकी जाति चोरड़ियासे गादिया बन गई । आपने डीडवाने में एक कुत्रा तथा नगरप्रकोट बनाया गरीब भाइयों को गुप्त सहायता पहुँचाई । अापकी माता ने शत्रुजय का श्रीसंघ निकाल चतुविध संघ को यात्रा कराई पुष्कल द्रव्य शुभ कार्यों में लगाया। संघ पूजा कर संघ को पहरावणी दी । गुजराती लोगों से तैल घृत के व्यापार में कायल बना कर भैसा पर पानी लाना तथा एक लंग छुड़वाई और भी जैनधर्म का बहुत ही उद्योत किया । १२०-आप भी साधारण गृहस्थ थे पर भैंसाशाह की सहायता से आपके बहुत पुन्य बढ़ गये । आपने सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाल कर चतुर्विध श्रीसंघ को यात्रा कराई । सातवार संघ को घर आंगणे बुलवा कर भोजन करवा कर पहरावणी दी भ० महावीर का मन्दिर बना कर स्वर्णमूर्ति स्थापन की प्राचार्य श्री को ४५ आगम लिखा कर अर्पण किये और भी जैनधर्म का काफी प्रचार किया। १२१-चार यज्ञ किये संघनिकाल यात्रा कर संघ पूजा में पर्याप्त द्रव्य दिया। १२२-शत्रुजय का मंदिर बनवाकर सुवर्ण कलश चढ़ाया एक एक मुहर पहरामणी दी। १२३-चार बावनी की चार तालाब खुदाये मंदिर की प्रतिष्ठा करवाकर पहरामणी दी। १२४-देवी की कृपा से अक्षय निधान मिला जिससे धार्मिक सामाजिक काम किये । १२५-पूर्व देश के तीर्थों की यात्रा कर समुद्र तक साधर्मियों को पहरामणी दी। १२६-शत्रुजय गिरनार की यात्रार्थ संध निकाल कर पहरामणी में स्वर्ण दिया । ६२७-सात बार चौरासी अपने घर प्रांगन बुलाई वस्त्राभूषणों की पहरामणी दी। १२८--चार यज्ञ, चार मन्दिर, चार तालाब बनवाये संघ पूजा में पुष्कल द्रव्य व्यय किया । १२९-सकल तीर्थों की यात्रा करके साधर्मी भाइयों को सुवर्ण मालाओं की पहरामणी दी। १३०-दो दुष्कलों में करोड़ों रुपयों का नाज घास दिया संघ पूजा की। १३१-दुष्काल में अन्न वस्त्र और पशुओं को घास देकर देश की सेवा की। १३२- केशर की बालद खरीद कर के मंदिरों को चढ़ाई और संघ पूजा की। १३३-चित्रावल्ली से असंख्य द्रव्य पैदा कर धर्म एवं जनोपयोगी कार्यों में व्यय किया। १३४-तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाल साधर्मी भाइयों को एक-एक मुहर दी। १३५-चार बावनी बुलाई, घर पर चार वार बड़े समय यज्ञ किया, वस्त्राभूषणों की पहरामणी दी । १३६ -सर्व तीर्थों की यात्रा कर पृथ्वी प्रदक्षिणा दी एक-एक सुवर्ण मुद्रा सर्वत्र प्रभावना दी संघ पूजा की। १३७-देवी ने प्रसन्न हो अक्षय निधान बतलाया जिससे आपने साधर्मी भाइयों को ही नहीं पर देशवासी १२६८ ७४॥ शाहों की ख्याति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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