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________________ वि० सं० ७७८-८३७ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास की बड़ी २ सेवायें की जिसमें लाखों करोड़ों नहीं पर अरबों खरबों द्रव्य व्यय कर के सुयश कमाया था इससे ही वे शाह कहलाये थे । उस समय महाजनों को अपनी शाह पदवी का बड़ा ही गर्व था और वे इसमें अपना गौरव अनुभव करते थे । इस पदवी को पाने के निमित्त शाहों ने कई एक महान कार्य किये हैं जिनमें से कतिपय उदाहरण यहां दिये जाते हैं: एक समय गुर्जर भूमि (गुजरात) में महा भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा उस समय चांपानेर बादशाह र से एक सूबा ( हाकिम ) रहता था उसने एक बार महाजनसंघ के अप्रेश्वरों को बुलबा कर कहा कि बादशाह के नाम के पीछे शाह आता है परन्तु तुम्हारे नामों के पहले शाह शब्द क्यों लगाया जाता है ? उत्तर में महाजन संघ के प्रेश्वरों ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने देश और देशवासी भ्राताओं की बड़ी २ सेवायें की हैं उन्हीं से हमें शाह पदवी राजा बादशाहों ने प्रदान की है। सूबाने तर्क करके फिर कहा कि तुम्हारे पूर्वजों ने जैसे महत् कार्य किये हैं वैसे कार्य क्या आप लोग भी कर सकते हैं महाजनसंघ ने आशा चाही। सूबा ने देश की दुर्दशा बतला कर अकाल पीड़ित व्यक्तियों और पशुओं की अन्न वस्त्र और घास से सहायता करने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि मैं तभी समभूंगा कि आप सचमुच ही शाह कहलाने के योग्य हैं। वरन् आपकी शाह पदवी छीन ली जायगी । इस पर महाजनसंघ अपनी स्वाभाविक उदार वृत्ति से अकाल पीड़ितों की सहायता का वचन देकर अपने स्थान पर आये और एक वर्ष के ३६० दिन होते हैं जिसके लिये एक २ दिन के लिये मितियों का लिखना प्रारम्भ कर दिया। कुछ दिन तो चांपानेर में लिखे गये । पश्चात वे पाटण गये वहां भी कुछ दिन लिखवाये गये वहां से आगे घोळके की ओर जाते हुए रास्ते में एक हाडोला नाम का एक छोटासा ग्राम आया वहां एक ही घर महाजन का था अतः वहां ठहरना उचित न समझ कर ग्राम के बाहर शौचादि से निवृत होकर संघ के लोग प्राम बाहर से ही निकल जाना ठीक समझ कर आगे चलने लगे । जब इस बात की सूचना वहां के रहने वाले शाह खेमा को लगी तो वह उनके पीछे जाकर संघनायकों को अपने घर पर लाया । पर उसका साधारण मकान एवं घर का व्यवसाय देख कर उन संघ के अग्रेश्वरों ने सोचा कि इस निर्धन व्यक्ति को एक दिन के लिये भी क्यों कष्ट दिया जाय कारण एक दिन का व्यय भी तो लाखों रुपयों का होता है । स्नैर शाह खेमा के श्राग्रह से वे संघ के लोग वहीं बाजरी की रोटी और भैंस का दही भोजन कर प्रस्थान करने लगे तो उनसे इस प्रकार गमन करने का कारण शाह खेमा ने पूछा इस पर संघनायकों ने सारा हाल कह सुनाया और चंदा की टीप सामने रख कर कहा कि आप भी यदि चाहे तो इसमें एक दिन लिखवायें । इस पर शाह खेमा ने कहा कि मेरे पिता शाहदेदा वृद्धावस्था के कारण दूसरे मकान पर हैं मैं उन्हें पूछ कर आता हूँ | टीप की चौपड़ी लेकर खेमा अपने पिता के पास आया और सब हाल कह कर पूछा कि इसमें अपनी ओर से कितने दिन लिखाये जायें। शाह देदा ने विचार विनिमय के पश्चात् कहा कि खेमा ! ऐसा सुअवसर तुम्हें कब मिल सकता है ? और तेरे घर पर चांपानेर का संघ कब आएगा ? तथा तेरे द्रव्य के सदुपयोग का अन्य क्या अच्छा साधन होगा ? मेरी राय यह है कि तुम सारा ही वर्ष लिखादो । पिता का कथन खेमा ने बड़े ही हर्ष के साथ शिरोधार्य कर शाह खेमा संघ के पास आया और एक वर्ष अपनी ओर से कह दिया। इस पर संघ बालों को ज्ञात हुआ कि यह कोई पागल मनुष्य है कारण १२७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only दुष्काल और क्षेमा देदाणी www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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