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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० १९७८-१२३७ पर अलंकृत किये और ७३ वर्ष जिन शासन की बड़ी २ सेवायें की सं० १२२९ में आप स्वर्गवासी हुए । जैन संसार में आप साढ़े तीन करोड़ो प्रन्थ के निर्माण कर्ता कालिकाल सर्वज्ञ के नाम से बहुत प्रसिद्ध हैं । चार्य हेमचन्द्रसूरि का समय चैत्यवासियों का समय था उस समय कई चैत्यवासी शिथिलाचारी थे और कई चैrयवासी सुविहित उपविहारी भी थे श्राचार्य हेमचन्द्रसूरि के चरित्र से पाया जाता है कि आप मध्यम स्थिति के श्राचार्य थे श्राप जैसे उपाश्रय में ठहरते थे वैसे कभी २ चैत्य में भी ठहरते थे जैसे कि - श्रीवतावतारे, च तीर्थे श्रीनेमिनामतः । सार्थे माधुमतेतत्रावात्सीद वहित स्थितिः ॥ २४ ॥ अर्थात् श्राचार्य श्री खम्मात से विहार कर पहले मकाम नेमि चैत्य में किया था इससे स्पष्ट पाया जाता है कि हेमचन्द्राचार्य चैत्यवास के विरुद्ध नहीं पर सहमत्त ही थे यही कारण है कि हेमचन्द्रसूरि ने चैत्यवास के विरोध में कही पर उल्लेख नहीं किया हाँ जिस किसी ने शिथिलाचार का ही विरोध किया है । श्राचार्य हेमचन्द्रसूरि च० चन्द्रगच्छ (कुल) की शाखारूप पूर्णताल्लगच्छ के आचार्य थे आपके गुरु का नाम देवचन्द्रसूरि तथा आप प्रद्यम्नसूरि के पट्टधर थे तथा हेमचन्द्रसूरि के पट्टपर रामचन्द्रसूरि आचार्य हुए थे I प्रभाविक चरित्र के अलावा भी कहा कहीं पर श्राचार्य हेमचन्द्रसूरि और कुमारपाल के चमत्कारी जीवन के विषय उल्लेख मिलते हैं पर यहाँ पर तो संक्षिप्त ही लिखा गया है । ७४॥ शाह की पुराणी ख्यातें जैन संसार इस बात से तो पूर्णतया परिचित है कि प्राचीन समय में ७४ ॥ शाह हो गये हैं और इनके लिये यह बात सर्वत्र प्रसिद्ध है कि बन्ध लिफाफे पर ७४ ॥ का अंक अंकित किया जाता है जिसका मतलब यह है कि जिसका नाम लीफाफे पर है उसके अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति उस लिफाफे को खोल नहीं सके यदि खोल लेगा तो ७४ ॥ शाहाओं की आज्ञा का भंग करने वाला समझा जायगा । कई लोग यह भी कहा करते है कि चित्तोड़ पर मुसलमानों ने श्राक्रमण किया था और आपस में युद्ध हुआ जिसमें मरने वालों की जनेऊ ७४ ॥ मण उतरी थी इससे बन्द लिफाफे पर ७४|| का अंक लिख जाता है कि बिना मालिक के लिफाफे खोलने वाले को ७४ ॥ मण जनेऊ में मरने वालों का पाप लगेगा । पर यह कथन केवल कल्पना मात्र ही है कारण अव्वल तो जनेऊ प्रायः ब्राह्मण ही धारण करते हैं वे प्रायः युद्ध में नहीं जाया करते है यदि कभी गये भी हो तो इतने नहीं; कारण ७४ || मण जनेऊ को करीब दशलक्ष मनुष्य धारण कर सकते है अतः इतने जनेऊ धारण करने वाले युद्ध में मनुष्य ही नहीं थे तो मरना तो सर्वथा संभव ही है दूसरा जब कि उस युद्ध में मरने वालों की ही ठीक गिनती नहीं लगाई जा सकती थी तब He व्यक्तियों की जनेऊ का तोल माप कौन लगाने को निटोल बैठा था इत्यादि कारणों मात्र कल्पना रूप ही है । वद किंवदन्ति प्रस्तुत ख्यात का नाम ७४ || शाह लिखा हुआ मिलता है और इस नाम पर ही दीर्घदृष्टि से विचार किया जाय तो स्वयं ज्ञात हो सकता है कि शाह शब्द खास तौर महाजन संघ से ही उत्पन्न हु है और उस समय महाजन संघ का इतना ही प्रभाव था कि उनकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं करत था। दूसरा शाह एक महाजन संघ के लिये गौरवपूर्ण पदवी थी और उन लोगों ने देश समाज एवं धर्म ७४ || शाह की पुरांणी ख्यातें Jain Education International For Private & Personal Use Only १२७१ www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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