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आचार्य कक्कसरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ११७८-१२३७
नाम रख दिया । कुछ ही समय में मुनि शान्ति शास्त्रों का पारगामी होगया। आचार्यश्री ने भी अनुक्रम से उन्हें सूरिपद प्रदान कर श्राप अनशनाराधन में संलग्न होगये । श्रीशान्तिसूरि भी अणहिल्जपुर नरेश भीम राजा की राज-सभा में कवीन्द्र और वादि चक्री रूप में प्रसिद्ध हुए । अर्थात् राजा ने सूरिजी को दो पद्वियों एक ही साथ प्रदान कर दी।
सिद्धपारस्वत तरीके प्रसिद्ध, अवंतिका देशवासी धनपाल नाम का एक प्रख्यात कवि था। दो दिन उपरान्त के दहि में जीव बता कर श्री महेंद्रसूरि गुरु ने उसको प्रतिबोध दिया था। उसने तिलक मञ्जरी नामक कथा बनाकर पूज्यगुरुदेव से प्रार्थना की कि इस कथा का संशोधन कौन करेगा ? इस पर प्राचार्यश्री ने कहा-शान्तिसूरि तुम्हारी इस कथा का संशोधन करेगा। बस, धनपाल कवि तत्काल चलकर पाटण आया। उस समय सूरिजी उपाश्रय में सूरि मंत्र का स्मरण करते हुए ध्यान संलग्न बैठे थे। उनकी प्रतिक्षा में बाहिर बैठे हुए धनपाल कवीश्वर ने नूतन अभ्यासी शिष्य के सम्मुख एक अद्भुत श्लोक बोलाखचरागमने खचरोहृष्टः खचरेणांकित पत्र धरः । खचरवरं खचरश्वरति खचरमुखि ! खचरं पश्य ॥
हे मुनि ! आप इसका अर्थ बतला सकते हो तो बतलाओ । इस पर नूतन मुनि ने बिना किसी कष्ट के सुंदर अर्थ कह दिया धन पाल एक दम आश्चर्य विमुढ़ होगया। पश्चात् धनपालने मेघ समान प्रखर ध्वनि से वहां पर सर्वज्ञ और जीव की स्थापना रूप उपन्यास रचा। इतने में गुरु महाराज सिंहासन पर विराजमान हुए और एक प्राथमिक पाठ के पढ़ने वाले शिष्य को कहा कि-हे वत्स ! स्तम्भ के आधार पर बैठकर तुमने क्या किया ? उस शिष्य ने कहा-गुरुदेव ! कवि ने जो कुछ कहा, उसको मैंने धारण कर लिया है। गुरु ने कहा-तो सब कह कर सुना दे। आचार्यश्री के आदेश से उसने कवि कथित वचनों को कह सुनाये इस पर कवि के आश्चर्य का पारा वार नहीं रहा । कवि ने साक्षात् सरस्वती स्वरूप शिप्य को अपने साथ भेजने के लिये आचार्यश्री से प्रार्थना की पर वाचना स्खलना के भय से उन्होंने स्वीकार नहीं किया। तब आचार्यश्री को ही मालव देश में पधारने की विनती की । संघ एवं राजा की अनुमति से भीमराजा के प्रधानों सहित प्राचार्यश्री ने मालव देश की ओर पदार्पण किया। मार्ग में सरस्वती देवी ने प्रसन्नता पूर्वक आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित होकर कहा-चतुरंग सभा समक्ष जब आप अपने हाथ ऊंचे करोगे तब दर्शन निष्णात सब वादी पराजित हो जावेंगे । आचार्यश्री ने भी देवी के वचनों को सहर्ष हदयनाम कर लिये । आगे जाते हुए धारानगरी का राजा भोज सूरिजी के सम्मानार्थ पांच कोस सन्मुख आया। उसने यह घोषणा की कि हमारे वादियों को जो कोई जीतेगा उसको प्रत्येक के उपलक्ष में एक लक्ष द्रव्य इनाम में दिया जावेगा । मुझे गुजरात के श्वेताम्बर साधुओं के बल को देखना है।
पश्चात वहां राजसभा में प्रत्येक दर्शन के पृथक् ८४ वादीन्द्रों को ऊंचा हाथ कर २ के आचार्यश्री ने जीत लिया। राजाने ८४ लक्षद्रव्य देकर तुरंत सिद्ध सारस्वत कवि को बुलाया । उसके पश्चात भी बहत से वादी आये और पांच सौ वादियों की जीत में ५ करोड़ द्रव्य व्यय होने से राजा भयभीत हुआ। अब वाद विवाद के कार्य को बंद करके राजाने सूरिजी को वादीवैताल का विरुद दिया। धनपाल कृत तिलक मजरी कथा का संशोधन करके उसे शुद्ध किया ।
इधर गुर्जरेश्वर का विशेषामह होने से कवीश्वर सहित सूरिजी पुनः पाटण में पधारे। वहां पर जिन
धारा के पंडित धनपाल
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