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________________ आचार्य कक्कसरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० १९७८-१२३७ wrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr-more करवाया ! उस समय के शिलालेख में भी इस बात का उल्लेख किया हुआ मिलता है। उस शिलालेख से कुछ अंश यहां उद्धृत कर दिया जाता है। स्वस्तिश्रीगुर्जरधरित्र्यां पातासाह श्री महिमृद पट्टप्रभाकर पाताशाहश्रीमदाफारसाह पट्टोद्योत कारकपातसाह श्री श्री श्री श्री श्री बाहदर साह विजय राज्ये संवत् १५८७ वर्षे राज्य व्यापार धुरंधरषन श्री मझाद पान व्यापारे श्री शत्रुजय गिरौ श्रीचित्रकूटवास्तव्य दो० करमाकृत सप्तमोद्धारसक्ता प्रशास्तिलिख्यतेस्वस्ति श्री सौख्यदो जीयाद् युगादिजिननायकः। केवलज्ञान विमलो विमलाचलमण्डनः ॥१॥ श्रीमेदपाटे प्रकटप्रभावे भावेन भव्ये भुवनप्रसिद्ध । श्रीचित्रकूटो मुकुटोपमानो विराजमानोऽस्ति समस्त लक्ष्म्या ॥२॥ सन्नन्दनो दात सुरद्रुमश्च तुङ्गः सुवर्णोऽपि विहारसार । जिनेश्वर स्नात्रपवित्रभूमिः श्रीचित्रकूटः सुरशोल तुल्यः ॥ ३ ॥ विशालसाल क्षितिलोचनाभो रम्योनृणां लोचनचित्रकारी । विचित्रकूटो गिरिचित्रकूटो लोकस्तु यत्राखिलकूट मुक्तः ॥ ४ ॥ तत्र श्री कुम्भराजोऽभूत कुम्भोद्भवनिभोनृपः । वैरिवर्गः समद्रोहि येनपीतः क्षणात् क्षितौ ॥ ५ ॥ तत्पुत्रो राजमल्लौऽभद्राज्ञां मल्लइवोत्कटः। सुतः संग्रामसिंहोऽस्य संग्राम विजयी नृपः ॥ ६॥ तत्पभूषणमणिः सिहेन्द्रवत् पराक्रमी। रत्नसिहोऽधुना राजा राज लक्ष्म्माया विराजते ॥ ७ ॥ इतश्च गोपाहगिरौ गरिष्ठः श्रीवप्पभट्टि प्रतियोधितश्च । श्रीआम राजोऽजनि तत्स्य पत्नो काचित्वभूव व्यवहारि पुत्री॥ ८ ।। तत्कुक्षिजाताः किल राजकोष्ठागाराहगौत्रे सुकतैकमात्र । श्री ओशवंशे विशदे विशाले तस्यान्वयेऽमीपुरुषाः मसिद्धा ।। ९ ।। प्राचीन जेन लेख संग्रह भाग दूसरा पृ. ९ यह शिला लेख तीर्थ श्रीशत्रुजय का सोलहवाँ उद्धार कर्ता कर्मशाहका है कर्मशाह गढ़ चित्तोड़ का निवासी था अतः शिलालेख में चित्तोड़ रांणा के उल्लेख के पश्चात् कर्मशाह के पूर्वजों को आचार्य बप्पभट्टि सूरि ने राजा श्राम (नागभट्ट) को जैन धर्म की दीक्षा दी उनके एक राणी व्यवहारी या ( महाजन ) की पुत्री थी उसकी सन्तान को विशाद ओसवंश में शामिल करदी अर्थात् उनकी रोटी बेटो व्यवहार उपकेश वंश के साथ में होने लगा इससे पाया जाता है कि श्राचार्य बप्पभट्टि सूरि के समय उपकेशवंश विशाल संख्या में एवं विशद प्रदेश में फैल चुका था तब ही तो राजा श्राम की सन्तान को उस उपकेशवंश के शामिल कर दी आगे कर्माशाह के पूर्वजों को वंशवृक्ष की नामावली दी है जो इस प्रकार हैं १-~-सरणदेव २ तत्पुत्र रामदेव ३ तत्पुत्र लक्षमण सिंह ४ तत्पुत्र भुवनपाल ५ तत्पुत्र भोजराज ६ तत्पुत्र ठाकुरसिंह ७-तत्पुत्र क्षेत्रसिंह ८ तत्पुत्र नरसिंह ९ तत्पुत्र तोलाशाह १० तत्पुत्र कर्माशाह ११ तत्पुत्र भिखाशाह आचार्य बप्पभट्टिसूरि का समय चैत्यवासिया का साम्राज्य का समय था आचार्य बप्पमट्टिसूरि भी चैत्यवासी ही थे तब ही तो आपने हस्ति एवं ऊंट की सवारी की तथा सिंहासन पर भी विराजते थे आपके शत्रुञ्जय तीर्थ का शिलालेख १२१७ Jain Education Int o nal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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