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________________ वि० सं० ७७८-८३७ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास लोग रावण को राक्षसों की गिनती में गिनते थे । राजा रावण और राणी मंदोदरी अष्टापद तीर्थ पर जाकर तीर्थकर देव की ऐसी भक्ति की कि सितार वजाते हुए तांत टूट गई थी उसी समय अपने शरीर की नस निकाल कर सितार में जोड़ दी यही कारण है कि वह भविष्य में तीर्थकर पद धारण करेंगे । इत्यादि । ___ एक दिन फिर पश्चिम की ओर गये तो नीचे पर्वत देख राजा ने कोकास से पूछा तो उसने कहा धरा. धिप । यह पुण्य पवित्र एवं महा प्रभाविक श्रीशत्रुजय तीर्थ है यहां पर तेविस तीर्थकरों के समवसरण हुए । अजी तनाथ प्रभु ने चातुर्मास किया और अनेक महात्मा यहां पर मुक्ति को प्राप्त हुए इत्यादि इसी प्रकार गिरनार तीर्थ के लिये कहा कि यहाँ नेमिनाथ प्रभु के तीन कल्याण हुए। पुनः पूर्व की यात्रा करते हुए सम्मेतशिखर का परिचय कराते हुए कोकास ने कहा यहां वीस तीर्थंकर मोक्ष पधारे हैं। इसी प्रकार कभी पापापुरी, कभी, चम्पापुरी, कभी राजगृह, कभी अष्टापद तीर्थ आदि का हाल सुनाता रहा जिससे राजा की भावना पवित्र जैन धर्म की ओर झुकगई और कोकस के प्रयत्न से राजा ने जैनधर्म स्वीकार करके उसकी ही आराधना करने लगा। एक समय कोकास राजा को आचार्य श्रुतिबोधसूरी के पास ले गया। आचार्यश्री ने राजा को धर्मोपदेश दिया जिसमें साधुधर्म एवं गृहस्थ धर्म का विवरण किया राजा ने गृहस्थ धर्म के द्वादशव्रत धारण किये जिसमें छटा बत में चारों दिशा सौ-सौ योजन भूमि की मर्यादा की शेष यथाशक्ति में व्रतपच्चक्खान कर सूरिजी को वंदन कर अपने स्थान पर चले गये पर उनकी आकाश गमन प्रवृति उसी प्रकार चालु रही। राजा के एक यशोदा नाम की राणी थी और उसी के साथ अधिक स्नेह होने से श्राकाश गमनसमय साथ ले जाता था जिससे दूसरी विजय नाम की रानी ईर्षा करती थी । जब एक समय राजा यशोदारानी को गरुइ पर बैठा कर भाकाश गमन की तैयारी कर रहा था तो विजयारानी एक गुप्ताचर द्वारा उस गरुड़ को लौटाने की खील बदलदी जिसकी किसी को खबर नहीं पडी जब राजा रानी और कोकस गरुड़ विमान पर सवार हो कर आकाश में गमन किया तो उस समय विमान इतना तेज चला कि थोड़े ही समय में सैंकड़ो कोस चला गया इस हालत में राजा को अपने व्रत की स्मृति हुई और कोकास को पूछा, कि कोकास ! अपने नगर से कितने दर पाए हैं ? कोकास ने जबाब दिया कि एक सौ योजन से कुछ अधिक आ गये हैं राजा ने कहा कि कोकास जल्दी से गरुड़ को वापस लौटा दो कारण मेरे सौ योजन की भूमि उपरांत जाने का त्याग किया हुआ है । कोकास ने कहा कि थोड़ी दूर पर जाकर गरुड़ को लौटा दूंगा राजा ने कहा नहीं यहीं से लौटा दो । कोकास ने कहा हुजूर व्रत में अतिचार तो लग ही गया है फिर तकलीफ क्यों उठाई जाय थोड़ी दूर पर जाने से विमान सुविधा से लौटाया जा सकेगा। राजा ने कहा कोकास ! तुम जैनधर्म की जानकारी रखते हुए भी ऐसी अयोग्य बात क्यों कर रहे हो कारण अनजान पणे में भूमि उल्लंघन होने से अतिचार लगता है पर जान बूझ कर आगे जाने में अतिचार नहीं पर व्रत भंग रूप अनाचार लगता है अतः प्राण भी चला जाय पर एक कदम भी आगे बढ़ना ठीक नहीं है कोकास ने कहा राजन् ! यह कलिंग देश की भूमि है और नजदीक कांचनपुर नगर है यहां के राजा के साथ आप का चिरकाल से वैर है यहां विमान उतारने में आप को शायद कष्ट होगा अतः आप व्रत भंग की आलोचना कर प्रायश्चित करलें पर श्राग्रह न कर थोड़ा सो आगे चल कर विमान को लौटाने की आज्ञा दें। राजा ने कहा कि कितना ही कष्ट क्यों न हो पर मैं मेरा व्रत हर्गिज खंडित नहीं करूगा । अतः राजा की दृढ़ता देख कोकास ने गरुड़ को लौटाने के लिये खिली वटन दाबा पर गरुड़ नहीं लौटाया । कोकास ने खिली को देखी तो अपनी खिली नहीं पाई राजा से कहा Jain Edu११९०national For Private & Personal use O राजा के व्रतों की परीक्षा का समय-mary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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