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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ११७८-१२३७ पी कि छोटे बड़े के साथ मिलने से क्या हो सकता है पर खुदराजा से ही मिलना चाहिये किन्तु बिना किसी की सहायता के राजा से मिलना हो नहीं सकता था अतः कोकास ने एक ऐसा उपाय सोचा कि उसने काष्ट के बहुतसे कबूतर बनाए उन कबूतरों के एक ऐसा वटन लगाया कि वटन दबाने से वे श्राकाश में गमन कर सके और उस वटन के ऐसे नंबर लगाये कि उतनी ही दूर जा सके जहां जावे वे ऐसे गिरे कि वहां का पदार्थ स्वयं वृतर में रखी हुई पोलार में भर जाय उस पोलार की जगह भी ऐसी रखी कि उतना वजन भर जाने पर सरा वटन स्वयं दब जाय जिससे फिर आकाश में उड़ कर सीधा कोकास के पास आजाय ऐसे एक नहीं र अनेक कबूतर बनालिये और उन कबूतरों को गजा के अनाज के कोठारों पर उड़ा दिये कबूतरों के वटनों के नंवर के अनुसार सब कबूतर राजा के अनाज के कोठार पर जा पड़े पड़ते ही उनकी उदर (पोलार) में वयं अनाज भर गया कि कबूतर उड़कर कोकास के पास आगये इस प्रकार हमेशा काष्ट कबूतरों को भेजकर राजा का अनाज मंगवाया करे । ऐसा करते-करते कई दिन बीत गये । तब अनाज के भंडार रक्षको ने सोचा के ये कबूतर किस के हैं एक दिन उन्होंने कबूतरों का पीछा किया तो वे कोकास के पास पहुँच गये । और ओकास को गुन्हगार समम राजा के पास ले आए। जब राजा ने कोकास को पूछा तो उसने काष्ट कबूतरों को तथा राजा से मिलने की सव बात सत्य-सत्य कह सुनाई । पर सत्य का कैसा प्रभाव पड़ता है । "सत्यं मित्रः पियं स्त्रीमिर लीकं मधुरं द्विषा । अनुकुलं च सत्य च वक्तव्यं स्वामिना सह ॥१॥ कोकास की सत्यता एवं कला कौशल से राजा संतुष्ट हो इतना द्रव्य एवं श्राजीविका कर दी कि उस के सव कुटुम्व का अच्छी तरह से निर्वाह हो सके । कहा है किलवण सभोनच्थीरसो, विण्णाण समोअवन्धवो नत्थी| धम्म सभो नत्थी निहि, काहे समोवेरिणो नत्थी। एक दिन राजा ने कोकास से पूछा कि तुम केवल कबूवर ही बनाना जानते हो या अन्य कई और भी शल्पविद्या जानते हो ? कोकास ने कहा हजूर आप जो आज्ञा करेंगे वही में वना दूंगा। राजा ने कहा कि रेसा गरुड़ बनाओ कि जिस पर तीन मनुष्य सवार हों आकाश में गमन कर सके । कोकास ने राजा की आज्ञा वीकार कर गरुड़ वनाना प्रारम्भकिया जो सामग्री चाहती थी वह सब राजा ने मंगवा दी। फिर तो देर ही ग्या थी कोकास ने थोड़े ही समय में एक सुन्दर गरुड़ विमान के आकार वनादिया जिसको देख कर राजा बहुत ही खुश हुत्रा । राजा राणी और कोकास ये तीनों उस गरुड़ पर सवार हो आकाश में गमन करने कों निकल ये चलते चलते जा रहे थे कि नीचे एक सुन्दर नगर श्राया । राजा ने कोकास से पूछा कि-यह कौन सा नगर है। कोकास ने कहा हे राजा ! यह भरोंच नाम का एक प्रसिद्ध नगर है यहां पर वीसवें तीर्थकर मुनि पुव्रत प्रतिष्ठित्पुर नगर से एक रात्री में साठ कोस चल कर आए थे। कारण यहां ब्राह्मणों ने एक अश्व मेघ यज्ञ करना प्रारम्भ किया था जिसमें जिस अश्वका होम (वलि) करने काउन्होंने निश्चय किया था वह अश्व तीर्थकरके पूर्व जन्म का मित्र था उसको बचाने के लिये वे आए थे उस अश्व को बचा दिया बाद वह मर कर देव हुआ उसने यहां पर तीर्थकर मुनिसुव्रत का मंदिर बनवा कर मूर्ति स्थापन की तथा एक अपनी अश्व के रूप की मुर्ति स्थापन कर इस तीर्थ का नाम अश्वबोध तीर्थ रखा था जो अद्यावधि विद्यमान है और भी इस तीर्थ के उद्धार वगैरह संबंधी सब हिस्ट्री राजा को सुनाई । किसी समय पुनः लंका नगरी के ऊपर आये तब राजा ने पुनः पूछा तो कोकास ने राजा रावण का राज सीता का हरण, रामचन्द्रजी का आना वगैरह सब हाल सुनाया तथा रावण के नौवह तो खाट के बन्धे रहते थे । और वे यज्ञ वादियों के यज्ञ का विध्वंस कर डालते थे इस लिये वे कोकास का काष्ट कबूतर बनाना ११८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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