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________________ वि० सं० ७७८-८३७] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास विचारधवल इसके लिये विचार कर रहा था पर होनहार ऐसा था कि राजा के शरीर में अकस्मात् ऐसी बिमारी हुई कि थोड़े समय में ही पंचपरमेष्टी का स्मरण करता हुआ समाधि पूर्वक देह छोड़ कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर दिया। जब राजा का देहान्त हो गया तो आने वाला राजा का सामना कौन करे ? मुशही, उमराव वगैरह एकत्र हो विचार किया कि अपने राजा के पुत्र तो है नहीं किसी दूसरे राजा को राज्य देकर आये हुए राजा के साथ युद्ध करने की अपेक्षा तो पाया हुआ राजा को ही राज्य दे कर अपना राजा क्यों नहीं बना दिया जाय ? जिससे स्वयं शांति हो जायगी। ठीक यही किया आये हुए राजाजयशत्रु को उज्जैन का राज्य दे दिया। राजा जयशत्रु चारों रत्नों को बुला कर उनकी परीक्षा की तो वे अपने-अपने कार्यों में निपुर्ण निकले जिससे राजा को बड़ा ही हर्ष हुआ और विशेष में उज्जैन का राज भी अपने हस्तगत हो गया। एक समय राजा जयशत्रु मर्दनरत्न को बुला कर अपने शरीर पर तेल की मालिश करवाई तो मर्दन रत्न ने दश कर्ष ( उस समय का तोल ) तैल को शरीर में रमाय दिया बाद में तैल वापिस निकालने को कहा तो मर्दन रत्न ने एक जंघा से पांच कर्ष तैल निकाल दिया इसपर राजा ने कहा कि एक जघां में तेल रहने दो शायद मेरी सभा में कोई दसरा मर्दन कार हो तो उसकी भी परीक्षा कर ली जाय । ठीक राजा ने राज सभा में बैठे हुए मर्दनकारों से कहा कि इस रत्न ने मेरे मालिश की है श्राधा तेल तो वापस निकाल दिया है और आधा तेल मैंने तुम लोंगों के लिये रखा है यदि तुम्हारे अंदर कुछ योग्यता हो तो मेरे शरीर से तैल निकाल दो ? मर्दनकारों ने राजा के शरीर में रहा हुआ तेल निकालने की बहुत कोशिश की पर किसी एक ने भी तैल नही निकाला इस प्रकार करने से दिन व्यतित हो कर रात्रि पड़ गई गजा सो गया सुबह तेल निकालने के लिये मर्दन रत्न को बुलाया तो उसने कहा राजा आपने भोजन कर लिया पानी पी लिया अब तैल निकालना मुश्किल है हां जिस समय मैंने तेल की मालिश कर आधा तैल निकाला था उस समय या आपने भोजन पान नहीं किया उस समय तक तैल वापिस निकल सकता था परयह तेल आपके शरीर में रह भी जावे तो आपको किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होगी। खैर, राजाने स्वीकार कर लिया पर वह तैल जंघा में रहने से जंघा का रंग काला काक ( काग) जैसा श्याम पड़ गया इस लिये लोगों ने राजा का नाम काकजंघा रख दिया। दुनिया का रखा हुआ नाम अच्छा हो या बुरा प्रचलित हो ही जाता है । फिर अच्छा के बजाय बुरा नाम शीघ्र फैल जाता है । बस, राजा जयशत्रु को सब लोग 'काकजंघ' के नाम से पुकारने लग गये। एक बार सोपारपट्टन में एक भयंकर जनसंहार दुष्काल पड़ा जिसकी भीषण मारने एक नगर में ही नहीं पर देश भर में त्राहि २ मचा दी जनता अन्न पानी बिना हाहाकार करने लग गई और अपनी मर्यादा से भी पतित होने लग गई कहा है कि मरता क्या नहीं करता जैसे "मांतं मुच्चति गौरवं, परिहरत्य पति दीनात्माताम् । लज्जा मुत्सूजति श्रयत्य दयतां नीचाचं मालंबते ।। भार्या बन्धु सुता सुतेश्वप कृर्ता नविद्याश्वेष्यते । किं किं यत्न करोति निन्दितमपि प्राणि क्षुधा पीड़ितः ॥१॥ इस भयंकर दुष्काल के कारण कोंकास अपने सब कुटुम्ब को साथ लेकर उज्जैननगरी में श्राकर अपना निवास कर दिया । पर यहां के लोगों के साथ कोकास की कोई पहचान नहीं थी कोकास की इच्छा ११८८ational For Private & Personal Use Only राजा जयशत्र www.jamelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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