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________________ आचार्य ककसूरि का जीवन ] [ओसवाल सं० ११७८-१२३७ गरीबपरवर मेरी खिली किसी ने बदल दी है अतः गरुड़ को पीछे नहीं लौटाया जा सकता है राजा ने कहा तुम विमान को यहीं उतार दो यहां से सब पैदल अपने नगर को चलेजावेंगे। कोकास ने गरुड़ को उतारने की बहुत कोशिश की जब गरुड़ को नीचे उतार रहा था तो उसकी पाखें वन्द हो गई और गरुड़ जाकर समुद्र के पानी पर पड़ गया । जिससे किसी को तकलीफ नहीं हुई। पर वे सब वालवाल बच गये जिससे राजा की जैनधर्म पर विशेष श्रद्धा दृढ़ हो गई। जब कोकास अपने गरुड़ और राजा रानी को समुद्र से पार कर किनारे पर लाया और कहा की आप दोनों गुप्त रूप से यहां विराजें। मैं जाकर नगर से दूसरी खिली बनाकर ले आता हूँ फिर सब गरुड़ पर सवार होकर अपने नगर को चले चलेंगे। पर यह मेरी बात स्मरण में रहे कि इस नगर का राजा श्राप का दुश्मन है आप न तो किसी से वार्तालाप करें और न अपना परिचय किसी से करावे । इतना कह कर कोकास नगर में गया एक सुथार के वहां जाकर औजार मांगा सुथार ने कहा आप यहां ठहरे मैं घर पर जा कर औजार ले आता हूँ। सुथार औजार लेने को गया पीछे उसका एक चक्र अधूरा पड़ा था कोकास ने उसको जितना जल्दी उतना ही सुंदर बना दिया जब सुथार औजार लेकर आया और कोकास को दिया और वह अपनी खिली बनाने लगा इधर सुथार ने अपने चक्र का काम देखा तो उसको बड़ा ही आश्चर्य हुआ उसने सोचा की हो न हो पर यह कारीगर कोकास ही होना चाहिये सुथार किसी बहाने से वहां से चल कर राजा के पास आया और कहा कि मेरी दुकान पर एक कारीगर आया है। मेरे ख्याल से वह उज्जैन के राजा का प्रसिद्ध कारीगर कोकास है । राजा ने तुरन्त सिपाहियों को भेज कर कोकास को जबरन अपने पास बुलाया और पुछा की तुम्हारा गजा काकजंघ कहां है ? कोकास कभी झूठ नहीं बोलता था उसने अपने सत्यव्रत को रक्षा करते हुए वहुत कुछ किया पर आखिर जब कोई उपाय नहीं रहा तब राजा का पता बतलाना पड़ा। बस, फिर तो था ही क्या कांचनपुर का राजा कनकप्रभ ने हाथ में आया हुआ इस अवसर को कब जाने देने वाला था । राजा एवं गनी को पकड़ मंगवाया और कोकास के साथ तीनों को कैद कर दिया इतना ही नहीं बल्कि उन तीनों का खान पान भी बन्द कर दिया जब इस अनुचित कार्य की खबर नागरिकों को मिली तो उन्होंने सोचा कि यह तो राजा का बड़ा अन्याय है जिसमें भी खान पान वन्द कर देना तो और भी विशेष है अतः नागरिक लोगो ने विविध प्रकार के पकवान बना कर आकाश में भ्रमण करने वाले पक्षियों को फैकने के बहाने उछालते २ राजा राणी एवं कोकास जिस मकान में कैद थे वहां भी फेंकने शुरू कर दिया कि उन तीनों का भी गुजाग हो सके इस प्रकार कई दिन गुजर गये । राजा गणी और कोकास बड़े ही दुःख में आपड़े। पर कहा है कि 'को इस सया सुहिओ, कस्स व लच्छी थिराइपिझइ । को मच्चणा न गहिओ, को गिद्धो नेव विसए सु॥ खैर, एक दिन राजा ने कोकास के बैर को याद कर उसको जान से मरवा डालने का विचार कर डाला पर जब इस अनुचित कार्य की खबर नगर में हुई तो कई नागरिक लोग एकत्र हो राजा के पास में जाकर अर्ज की कि "सर्वेषां बहुमाना हैः कलावान् स्वपरोऽपि वा। विशिष्य च महेशस्य मटीयो महिमाप्ति कम् ॥ १ ॥ अर्थात् विद्वान् एवं कलावान अपना हो या दूसरों का हो आदर सत्कार करने योग्य होता है। चन्द्र कोकास की चातुर्य कला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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