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वि० सं० ७७८-८३७ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
"भारत के अदभुत चमत्कार"
वर्तमान आविष्कार युग है इस युग में पाश्चात्य विद्वानों ने साइन्स (विज्ञान) और शिल्प कलाएं are free नये आविष्कार निर्माण कर संसार को आश्चर्य में मुग्ध बना दिया है। उन नये नये अविष्कारो को देख कर जनता दांतों तले अंगुली दबा कर कहने लगती है कि पाश्चात्य विद्वान मनुष्य है या देवता ? कारण वे जो-जो अविष्कार निर्माण करते हैं वह पूर्व है जिसको न तो नजरों से देखा और न कानों से सुना ही है । इत्यादि । पर जब हम हमारे देश ( भारत ) का प्राचीन साहित्य का अवलोकन करते तब हमें थोड़ा भी आश्चर्य नहीं होता है । क्योंकि आज से हजारों लाखों वर्ष पूर्व भी हमारे पूर्वज इन सब विद्या, विज्ञान, शिल्पादि से पूर्ण - रूपेण परिचित थे । श्रतः पाश्चात्य विद्वानों ने अभी तक नया कुछ भी नहीं किया है इतना ही क्यों पर पाश्चात्य विद्वानों ने यह सब हमारे देश ( भारत ) से ही सीखा है अर्थात् इस प्रकार की विद्याओं के लिए भारत सब देशों का गुरु कह दिया जाय तो भी कोई अत्युक्ति नहीं होगा कारण भारतीय साहित्य में हजारों लाखों वर्षों पूर्व के मनुष्यों को इस विषय का अच्छा ज्ञान था और भी परमाणु, पुद्गलों की ऐसी-ऐसी अचिन्त्य शक्ति का प्रतिपादन किया है कि पाश्चात्य विद्वान अभी तक वहां नहीं पहुँच सके हैं जिस शिल्प कलादि को भारतीय विद्वानों ने अपने हाथों से कर दिखाई थी वह आज के पाश्वात्य विद्वान इलेक्ट्रो सिटी ( Electri city ) से भी नहीं बतला सकते हैं हमारे भारतीय प्राचीन साहित्य में कई ऐसे भी चमत्कार पूर्ण उदाहरण मिलते है कि जिनको सुनकर संसार मंत्र मुग्ध बन जाते हैं। पाठकों की जानकारी के लिए कतिपय उदाहरण नमूने के तौर पर बतला दिये जाते हैं ।
१ - श्रीकललसूत्र में ऐसी बात लिखी है कि प्रथम सौधर्म देवलोक में ३२ लक्ष विमान है और प्रत्येक विमान में एक-एक सुघोष घंटा है जब इन्द्रों को प्रत्येक विमान में संदेश पहुँचाना हो तब अपने एक विमान की सुघोषा घंटा में शब्द कह दें एवं भरदे कि वह ३२ लक्ष घंटाओं द्वारा बत्तीस लक्ष विमानों में घोषित हो जाता है । क्या यह प्रयोग वर्तमान के रेडियो से कम है ? कदापि नहीं ।
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२ -- श्रीप्रज्ञापना सूत्र के चौतीसवें पद में ऐसा उल्लेख मिलता है कि बारहवें देवलोक में देवता स्थित है तब दूसरे लोक में देवी है बीच पांच दस सहस्र मिल नहीं पर असंख्यात क्रोड़नक्रोड़ योजन का अंतर होने पर भी देव देवांगना का मनोगत भाव मिलता है तब वहां से देवताओं के वीर्य के पुद्गल छुटते हैं. और सीधे देवी के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। क्या यह बिन तार के ( Television ) तार से कुछ कम है । नहीं! पुद्गलों की कैसी शक्ति है और संबंध है कि बीच में कई पृथ्वीखंड मकान वगैरह आते हैं पर
वे
पुद्गल बिना किसी रुकावट के सीधे देवी के शरीर में अवतीर्ण हो जाते हैं ।
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३ - कई राजकुमारों के लग्न के साथ कन्या का पिता दत्त (दायजा ) देते हैं उनमें अध्यायन्य वस्तुओं के साथ बिना वदो की गाड़िया भी दी ऐसा उलेख है क्या यह रेल, मोटर से कम है ? नहीं। रेल, मोटर तो तेल कोयले की अपेक्षा रखती है पर वे गाड़ियाँ तो वटन दबाने से ही चलती थी ।
४ - राजकुंवर अमरयशः की कथा में लिखा है कि एक जंगल की जड़ी बूटी उसके हाथ पर बांध दी जिससे वह मर्द के बदले स्त्री बन गया और जड़ी खोलने पर पुनः पुरुष बन गया था ।
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