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आचार्य ककसरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० १९७८-१२३७
५-जयविजय राज कुवर के चरित्र में उल्लेख है कि एक समुद्र के बीच टापु है वहां एक देवी का मंदिर और एक बगीचा है उस बगीचे में एक वृक्ष ऐसा है कि जिसका पुष्प सुंगने मात्र से मनुष्य गधा बन जाता है तब पुनः दूसरे वृक्ष का पुष्प सुंघते ही गधे से मनुष्य बन जाता है ।
६-मदन-चरित्र में एक ऐसी बात मिलती है कि एक राज्य महल में दो ऐसी शीशियाँ है जो चूर्ण से भरकर रखी है उनमें से एक शीशी का चूर्ण मनुष्य की आंख में डालने से वह पशु बन जाता है तब दूसरी शीशी का चूर्ण डालने से पुनः मनुष्य बन जाता है।।
७-श्रीसूत्रकृतांग सूत्र के श्राहार प्रज्ञाध्ययन में लिखा है कि त्रसकाय, अग्निकाय का आहार करे वह कैसा उष्णयोनि वाला त्रस जीव होगा कि अग्निकाय का श्राहार करने पर भी जीवित रह सके ।
८-जयविजय कुवर को एक तोते ने दो फल देकर कहा कि एक फल खाने से सात दिन में राज मिले और दूसरा फल खाने से हमेशा पांच सौ दीनार मुंह से निकलती रहे और ऐसा ही हुआ था।
९-योनि प्रभृत नामक शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि अमुक पदार्थ पानी में डालने से अमुक जाति के जीव पैदा हो जाते हैं।
१०-प्रभाविक चरित्र में सरसब विद्या से असंख्य अश्व और सवार बना लिये थे और वे युद्ध के काम में आये थे । ऐसे सैकड़ों तरह की घटनाएँ चमत्कार पूर्ण है शायद इसमें विद्या, मन्त्र और देव प्रयोग भी होगा।
११-गजसिंह कुमार के चरित्र में आता है कि एक सुथार ने काष्ट का मयूर बनाया या जिसके एक बटन ऐसा रखा था कि जिसको दबाने से वह मयूर आकाश में गमन कर जाता और उस मयूर पर मनुष्य सवारी भी कर सकता था। यह घटना केवल हाथ प्रयोग से बनाई गई थी।
१२-मदन चरित्र में एक उड़न खटोला का उल्लेख मिलता है कि जिस पर चार मनुष्य सवार हो आकाश में गमन कर सकें इसमें भी काष्ट की खीली का ही प्रयोग होता था।
१३ -अभी विक्रमीय तेरहवी शताब्दी में एक जैनाचार्य ने मृगपाक्षी नामक ग्रन्थ लिखा है जिसमें ३६ वर्ग और २२५ जानवरों की भाषा का विज्ञान लिखा है। जिसको पढ़ कर अच्छे २ पाश्चात्य विद्वान भी दात्तातले उगुली दवाने लग गये जिस प्रन्य का अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है जिसकी समालोचना सरस्वती मासिक में छप चुकी है क्या भारत के अलावा ऐसा किसी ने करके बताया है ?
१४-उपरोक्त बातें तो परोक्ष हैं पर इस समय अहमदाबाद तथा खेड़ा प्राम में एक-एक काष्ट का वृक्ष है उसकी शाखाओं पर काष्ट की पुतलियाँ हैं जिनके हाथों में मृदंग, सितार, तालादि संगीत के साधन हैं और उस वृक्ष के एक चाबी भी रखी है जब वह चाबी दी जाती है तो वे सब काष्ट पुतलियाँ वाजिंत्र बजाने लग जाति है और नाच भी करती है यह हमारे देश के कलाविज्ञों के हाथ से बनाई हुई कलाए हैं।
१५-उपदेशप्रसाद नामक ग्रंथ का प्रथम भाग के पृष्ठ १११ पर एक कथा लिखी है कि
"भारत के वक्षस्थल पर धन, धान कुवे, तालाब एवं वन वाटिका से सुशोभित कोकण नामक देश था उसकी राजधानी सोपारपट्टन में थी । वहां के राजाप्रजा जन नीति निपुण एवं समृद्धशाली थे । व्यापार का केन्द्र होने से लक्ष्मी ने भी अपना स्थिर वास कर रखा था । कला कौशल में तो वह नगर इतना बडा चडा था, कि जिसकी कीर्ति रूप सौरभ वहुत दूर दूर फैल गई थी । भ्रम की भांति दूर दूर के व्यापारी लोग व्यापारार्थ भारत के अद्भुत चमत्कार
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