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________________ आचार्य ककसरि का जीवन ] [ओसवाल सं० ११७८-१२३७ Prewww पालन कर रही है। श्रोसवाल, पोरवाड़, श्रीमाल आदि जातियों में से तो हजारों ममुष्य जैनधर्म को छोड़ अन्य धर्म में भी चले गये पर सेठिया जाति में ऐसा उदाहरण कहीं पर भी पाया नहीं जाता है । सेठिया जाति के बहुत से उदार दानीश्वरों ने आत्म कल्याण व जैनधर्म की प्रभावना के लिए पुष्कल द्रव्य व्यय किया है। जिसका वंशावलियों में विस्तार से उल्लेख मिलते हैं पर स्थानाभाव से मैं यहां पर संक्षिप्त में ही पाठकों को दिगदर्शन करा देता हूँ कि १-सेठ वल्लभजी का कमलगोत्र--कुलदेवी अम्बिकाजी वल्लभजी के पुत्र कमलसीजी हुए उसके पास पांच करोड़ का द्रव्य था सात खण्ड का मकान रहने के लिये था उसने भ० पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया । श्रीशत्रुजय, गिरनागदि तीर्थों का संघ निकाला । साधर्मी भाइयों के अलावा सब नगर को कई बार मिष्टान् भोजन जीमाकर लहाण दी तथा जैनधर्म की प्रभावना में एक करोड़ द्रव्य व्यय किया आपके परिवार में गुलजी तथा विजयचन्दजी भी महान प्रभाविक पुरुष हुए । तीर्थों का संध निकाला तब रास्ते में आते और जाते सब प्रामों में सुवर्ण मुद्रिका की प्रभावना दो थी इत्यादि धर्म के बहुत चोखे और अनोखे काम करके अखण्ड कीर्ति हासिल की थी। २-सेठ राघवजी रत्नगोत्र कुलदेवी-कालिका आपके परिवार में सेठ अमीपालजी बड़े ही नामांकित पुरुष हुए जिन्होंने भ. शांतिनाथ का मन्दिर बनवाया तीर्थों का संघ निकाल कर साधर्मी भाइयों को पहरावणी में पुष्कन द्रव्य दिया। तीन बड़े यज्ञ ( जीमणवार ) करके सब नगर वालों को जीमाये इत्यादि ऐसे कई उदार पुरुष हुये। ३-सेठ लहुजी वत्सगौत्र कुलदेवी चक्रेश्वरी आपकी संतान में सेठ जीवणजी बड़े ही धर्मात्मा पुरुष हुए आपने भ० श्रादिनाथ का मंदिर बनवाया तीर्थों का संघ निकाला जिसमें साधर्मी भाइयों की भक्ति के लिये लाखों रुपये व्यय किये याचकों को इच्छित दान दिया तथा जनोपयोगी कार्यों में भी पुष्कल द्रव्य व्यय किया । वि० सं० ११११ में भीनमाल पर मुगलों का बड़ा ही जोरदार आक्रमण हुआ युद्ध में लाखों मनुष्य मारे गये हजारों मनुष्यों को कैद कर लिया और भीनमाल के महाजनादिकों के धर लूटे जिनमें हीरा पन्ना माणक, मुक्ताफल और सुवर्ण के ऊंट के ऊंट भर कर ले गये उस समय आपकी संतान में सेठ दलाजी जालौर चले गये और सेठ गजपालजी प्रसंग होने से चित्तौड़ चले गये। गजपालजी ने वहां भ० पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया और एक बावड़ी खुदवाई । पांच पकवान कर संघ को भोजन कराया और भी पुष्कल द्रव्य व्यय किया। ४-- सेठ कमलसीजी. पद्म गोत्र कुलदेवी अन्तपूर्णा तथा आपकी संतान परम्परा में सेठ सीमधरजी बड़े ही नामी हुए आप बड़े ही उदार और धर्मात्मा थे आपके परिवार में भाणाजी हुए आपने सिरोही में भ० पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया। तीर्थों का संघ निकाला घर पर आकर उजमणा किया श्रीसंघ को स्वामी वात्सल्य देकर प्रत्येक को एक-एक सुवर्ण मुद्रिका और वस्त्र व लड्डूओं की पहरावणी दी । पुरुषों को पेंचा और स्त्रियों को चूंदड़ियां दी। आचार्यश्री को आगम लिखवाकर अर्पण किए। राजा को खुश कर जीव हिंसा बन्द कराई इत्यादि अनेक सुकृत के कार्य किये सेठ हरखाजी ने दीक्षा भी ली थी। ५- सेठ मवेरजी नंदगोत्र कुलदेवी चामुंडा आपके परिवार में सेठ हटमलजी मुगलों के उत्पात के कारण भीनमाल छोड़ कर पाटण जाकर वास किया। पाटण के राजा ने श्रापका अभूतपूर्व सत्कार जातियों की उत्पति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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