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________________ वि० सं० ७७८-८३७] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास किया । श्रापको सन्मानित एवं उच्चपद पर नियुक्त किया वहां से आप मेहता कहलाए। तथा वहां से आपने तीर्थों का संघ निकाल कर देव, गुरु, धर्म के कार्यों में लाखों रुपये खर्च किए याचकों को दान में पुष्कल द्रव्य दिया। दूसरे सेठ दानजी चित्तौड़ जाकर बस गये वहां पर आपने भ० नेमिनाथ का मंदिर बनवाया तीर्थों का संघ निकाल स्वामीवात्सल्य और पहरामणी दी। प्राचार्यश्री को चातुर्मास कराया। ज्ञान पूजा की ४५ आगम लिखाकर अर्पण किया सेठ रूपजी ने सूरिजी के पास दीक्षाली मवेरजी ने राजा का काम किया जिससे मेहता कहलाए । ६-सेठ धनाजी लक्ष्मीगोत्र और कुलदेवी भी लक्ष्मीदेवी श्राप कोटाधीश थे। आपके परिवार में नन्दकरणजी नामी पुरुष हुए। भ० श्रादिनाथ का मन्दिर बनाया। प्रतिष्ठा करवाई आस पास के सब गाँवों वालों को बुलाये । साधर्मीवासल्य पहरावणी याचकों को दान, आप गरीबों को गुप्त दान दिया करते थे। मुगलों के उत्पात के समय सेठ धन्नाजी भागकर जालौर चले गये वहां के रावजी ने श्रापका सत्कार कर राज्य के उच्च पद पर नियुक्त किये । जालौर में धान की पोटलियों का हांसल लगता था जिससे गरीब लोग दुःखी थे उसको सदैव के लिये बन्द करवा दिया। आपके परिवार में दशरथजी नामी हुए । जालौर के राज भय से निकल कर सिरोही आये वहां भी धर्म कार्य में बहुत द्रव्य व्यय कर अमर नाम किया। ७-सेठ भावजी गौतमगोत्र कुलदेवी हिंगलाजा आपके परिवार में सेठ धनाजी प्रतिष्ठित पुरुष हुए आपने भ० पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया मूर्ति के नीचे पुष्कल द्रव्य रखकर प्रतिष्ठा कराई नगर भोज और साधर्मी वाइयों को पहरावणी दी मुगलोत्पात के समय सेठ चन्द्रभाणजी भीन्नमाल को छोड़ कर सिरोही वहां पर भी बहुत से शुभ कार्य किये बाद में वहां से रूपाजी ने सादड़ी आकर वास किया । इत्यादि । ८- सेठ नानाजी अम्बागोत्र कुलदेवी अम्बिकादेवी आपकी संतान में सेठ रुपाजी नामी पुरुष हुए श्रीशत्रुजय का संघ निकाल कर तीर्थों की यात्रा की वापिस आकर स्वामीवात्सल्य कर साधर्मीभाइयों को एक एक सुवर्ण मुद्रिका की पहरावणो दी लाखों रुपया खर्च किया याचकों को पुष्कल दान, दूसरी बार शत्रुजय की तलेटी के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया मुगलोत्पात के समय भीन्नभाल से वीसाजी ने जालौर जाकर वास किया तेलियों की घाणियां छुड़ाई वहां पर शांतिनाथ का मन्दिर बनाकर प्रतिष्ठा कराई। सामी वासल्य करके प्रत्येक नर नारी को एक एक सुवर्ण की मुद्रा और वस्त्र की पइरावणी दी याचकों को इच्छित दान दिया। ९-- सेठ अविचलजी चंद्रगौत्र कुलदेवी आशापुरी। एक समय अविचलजी प्रामान्तर जा रहे थे मार्ग में रात्रि हो गई तो एक सिंह ने श्राकर आक्रमण किया उस समय कुलदेवी ने आकर बचाया और एक जोड़ा कुण्डल का दिया जिसका अंधेरे में भी प्रकाश होता था जिसके द्वारा घर पर पहुँच गये | कुडल के प्रभाव से बहुत धन हुआ जिसको सुकृत कार्यों में लगाया । आपके परिवार में सेठ जगन्नाथ जी नामी पुरुष हुए | आपने भ० नेमिनाथ का मन्दिर बनवाया प्रतिष्ठा में पुष्कल द्रव्य खर्च किया आपका लक्ष गरीबों की ओर विशेष था और गुप्त दान दिया करते थे मुगलोत्पात के समय सेठ संग्रामजी भीन्नमाल से निकल कर सिरोही जाकर बस गये । तथा गोकलजी ने वहां भ० महावीर का उतंग मन्दिर बनाया तथा शा० मुलाजी चित्तौड़ जाकर बसे वहां भी उन्होंने मन्दिर बनाकर प्रतिष्ठा में पुष्कल द्रव्य व्यय कर धर्म का उद्योत किया । १०-सेठ माधवजी निधानगोत्र कुलदेवीअंबिका । माधवजी निधन हो गये थे। सूरीजी से कहा, सेठिया जाति के दानवीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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