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________________ वि० सं० ७७८-८३७] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास महाजनसंघ रूपी कल्पवृक्ष की एक शाखा महाजनसंघ रुपी कल्पवृक्ष के बीज तो वीराब्द ७० वर्षे प्राचार्यश्री रत्नप्रभसूरि ने मरुधर देश के उपकेशपुर नगर में वोकर कल्पवृक्ष लगा दिया था तत्पश्चात् उन श्राचार्यों ने स्वयं एवं भापके पट्ट परम्परा के आचार्यों ने जल सिंचन करके पोषण किया और अनुकूल जल वायु मिलता रहने से वह कल्पवृक्ष इतना फला फूला कि जिसकी शीतल छाया में लखों नहीं पर करोड़ो मनुष्य-सुख शांति का अनुभव करने लगे। फिर तो ज्यों ज्यों समय व्यतीत होता गया त्यों त्यों उस कल्पवृक्ष की शाखाएं भी प्रसरित होती गई । जैसे श्रात्मकल्याण के लिये ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूपी तीन शाखाएं हैं वैसे ही उस कल्पवृक्ष के भी उपकेशवंश, प्राग्वटवंश, श्रीमालवंश नाम की तीन शाखएं हो गई । वाद में भी बहुत से प्राचार्यों ने जैनों को जैन बना कर उनको महाज संघ रूपी वृक्ष की शाखाएं बनाते गये जैसे सेठिया, अरुणोदिया, पीपलोदा, इत्यादि। आगे चल कर उन शाखाओं के प्रतिशाखाएं भी इतनी हो गई कि जिनकी गिनती लगाना अच्छे २ गणित वेत्ताओं के लिये भी अशक्य बन गया। जहां तक इस कल्पवृक्ष और उसकी शाखाएं आपस में प्रेम पूर्वक रही वहां तक दोनों का मान महत्व एवं गौरव से उनका सिर ऊंचा रहा और अपनी खब उन्नति भी की कारण वृक्ष की शोभा शाखाओं से ही है और शाखाओं की शोभा वृक्ष से । यदि वृक्ष बड़ा होने से वह अभिमान के गज पर सवार होकर कह दे कि मैं सब को आश्रय देता हुँ मुझे शाखाओं की क्या जरूरत है और शाखाएं कह दें कि हम भी वृक्ष के सदृश्य विस्तृत हैं फिर हमें वृक्ष की क्या परवाह है इस प्रकार वृक्ष शाखाएं को अलग कर दे या शाखाएं वृक्ष से पृथक् हो जाय । तब उन दोनों का मान महत्व कम हो जाता है यहां तक कि शाखा बिहीन वृक्ष को कष्ट समम सुथार काट कर जला देता है और वह कोलसों के काम में आता है तब वृक्ष से अलग हुई शाखाएं स्वयं सूख जाति है वे कठहरे की भारी वन कर ईधन के काम आती है अर्थात् एक दिन ऐसा आजाता है कि संस्गर में उस वृक्ष एवं शाखाए का नामोनिशान तक भी नहीं रहता है। यही हाल हमारे महाजनसंघ और उसकी शाखाओं का हुआ है जब तक वृक्ष अपनी शाखाओं को संभाल पूर्वक प्रेम के साथ अपना कर रखी एवं शाखाएं भी वृक्ष का वहुमान कर अपने आश्रयदाता समझ उसका साथ दिया वहां तक तो दोनों की वृद्धि होती रही। यहां तक कि वे उन्नति के उच्चे शिखर पर पहुंच गये । पर जब से वृक्ष ने शाखाओं की परवाह नहीं रखी और शाखाए वृक्ष से अलग हो गई उसी दिन से दोनों के पतन का श्रीगणेश होने लगा । क्रमशः वर्तमान का हाल हमारी आंखों के सामने है। महाजनसंघ रूपी कल्पवृक्ष की शाखाओं में सेठिया जाति भी एक शाखा है उसकी उत्पत्ति, व वृक्ष के साथ रहना, तथा वृक्ष से कब और क्यों अलग हुई और उसका क्या नतीजा हुआ इन सब का इतिहास आज मैं पाठकों की सेवा में रख देना चाहता हूँ। ___ मरुधर प्रदेश में बहुत से प्रसिद्ध एवं प्राचीन नगर हैं जिसमें श्रीमालनगर भी पुराण प्रसिद्ध प्राचीन नगर है और इस नगर की प्राचीनता के विषय में यत्र तत्र कई प्रमाण भी मिलते हैं पुनः यह भी कहा जाता है कि इस श्रीमालनगर को देवी महालक्ष्मी ने बसाया था और वहां पर बसने वालों को महालक्ष्मी देवी ने ११७० Jain Education International महाजन संघ की शाखाएं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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