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प्राचार्य ककसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ११५८-१२३७
प्राचार्य श्री के कई गुने अधिक गुण प्रकाशित कर दिये । वास्तव में कक्कसूरीश्वरजी जैनसमाज के आधार तम्भ है । शासन के चमकते हुए सूर्य हैं। जिन शासन हितैषी एवं शासनोद्धारक हैं । इस प्रकार प्राचार्य श्री की प्राचार्य बप्पभट्टसूरि ने भी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की पश्चात् महावीर जयध्वनि के साथ सभा विसर्जित हुई । गोपाचल के घर घर में आचार्यश्रीकक्कसूरिजी म. की खूब हो प्रशंसा होने लगी सब के हृदय में भनुपम भक्ति की अद्भुत भावनाओं का प्रादुभाव हुआ।
श्रमणसंध में परस्पर इतनी वत्सल्यता, विनय, भक्ति प्रेम एक धर्म स्नेह था कि पार्श्वनाथ परम्परा एवं वीरपरम्परा नामक दो विभिन्न गच्छों के मुनि होने पर भी किसी के हृदय में पारस्परिक विभिन्नता जन्य मावों का जन्म ही नहीं हुआ एक दूसरे का आपसी अनुरागान्वित व्यवहार देखकर किसी के हृदय में यह कल्पना भी नहीं होती थी कि अत्रस्थ श्रमण वर्ग में पृथक २ दो गच्छों के साधु वर्तमान है । स्थानीय अमण वर्ग ने तो आगन्तुक निर्ग्रन्थों की आहार पानी आदि से खब ही यावच्च की । वास्तव में इसी प्रेम ने ही जैनसमाज को उस समय उन्नति के उन्नत शिखर पर आरूढ़ कर रखा था।
दोपहर को आचार्यश्रीकक्कसूरि, एवं आचार्य बप्पभट्टसूरि ने अपने विद्वान शिष्यों के साथ एकान्त में बैठ कर वर्तमान शासनोन्नति के विषय में बहुत ही वार्तालाप किया। दोनों प्राचार्यों की प्रत्येक बात में शासन के हित एवं उद्धार की ध्वनि मलक रही थी। धर्मोत्कर्ष के उपाय चिन्तवन किये जा रहे थे । साधु समजा में आई हुई शिथिलता के निवारण के लिये नियम निर्माण किये जा रहे थे। उस समय के प्राचार्यों को शासन की उन्नति के सिवाय वर्तमान कालीन साधुओं के समान आपसी कलह, कदाग्रह एवं वितण्डाबाद में समय गुजारना आता ही नहीं था । उनके रोम २ में शासन के प्रति गौरव, मान एवं प्रेम था अतः धर्म की लघुता; वे किसी भी प्रकार से सहन कर नहीं सकते थे।
___ आचार्यश्रीकक्कसूरि ने चैत्यवासियों की शिथिलता के विषय में सवाल किया उस पर श्रीषपभट्ट सूरि ने फरमाया-सूरिजी ! आप और हम सब चैत्यवासी ही हैं। अपने पूर्वज भी सदियों से चैत्यवास के रूप में चले आरहे हैं। चैत्यवास कोई बुरी या अनादरणीय बस्तु नहीं है। भगवान महावीर के निर्वाण को करीब तैरह सौ वर्ष होगये हैं पर आज पर्यन्त किसी ने भी इस विषय का कुछ भी सवाल नहीं उठाया । जिसकी इच्छा चैत्य में ठहरने की हो वह चैत्य में ठहरे और जिसकी इच्छा पौषधशाला या उपाश्रय में रहने की हो वह पौषधशाला या उपाश्रय का आश्रय ले । इस विषय में विशेष तनातनी-खेंचातानी करना एकदम अयुक्त है कारण, वर्तमान में हम क्रान्ति मचा कर किन्ही प्रयत्नों से मुनियों का चैत्यवास छुड़वा भी दें तो अपने खातिर गृहस्थों को नये २ मकान बंधवाने पड़ेंगे। फलस्वरूप समाज के लाखोंरुपये यों ही पानी की तरह बरबाद होजायेंगे । दूसरी बात आरंभ, समारम्भ के भय व करना, करवाना और अनुभोदना के पाप से बचने के लिये तो उन्होंने चैत्यवास का आश्रय लिया या पर आज उसी को छुड़वाने में हमें उन्ही पापों का श्राश्रय लना पड़ेगा। इतनी चारित्र वृत्ति में बाधा पहुँचाने के पश्चात भी अगर भविष्य को लक्ष्य में रख कर हमने चैत्यवास को छुड़वाने का अनुचित साहस किया तो निश्चित ही आपसी खेंचातानी में दो पक्ष होजावेंगे। एक चैत्यवास का जोरदार समर्थक और एक पैत्यवास की जड़ामूल से जड़ काटनेवाला विरोधी दल । इस प्रकार के आपसी विरोधी मण्डलों के स्थापन होने से शासन की संगठित शक्ति का ह्मस हो जायगा । स्वधर्मी भाइयों का पारस्परिक प्रेम सूत्र छिनभिन्न
दोनों सूरीश्वरों के आपस में वार्तालाप
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