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________________ आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ११२४-११७८ ५-मेदनीपुर के श्रेष्टि गो० कुम्बाने शत्रुजय का संघ ६-मथुरा ,, भूरि गो० कोग्पाल ने ७-लोहाकोट , श्री श्रीमाल गौ० भैरूशाह ने सम्मेत शिखर का संघ, ८-गोसलपुर , आर्य गौ० शाहरांणा ने शत्रुजय का संघ ९- भरोंच ,, प्राग्वट" साढाशाह ने १०-सोपार ,, श्रीमाल बालाशाह ने ११-उज्जैन ,, सुचंति गो० देसल ने १२-कीराटकूप , श्रेष्टि गौ० रघुवीर ने १३-सत्यपुरी ,, भाद्र गौत्रीय मंत्री आभुने १४-चंदेरी ,, वीरहट गौ० शाह अजड़ ने १५-आभानगरी ,, आदित्य गो० शाहभौरा ने १६-हंसावली , चिंचट गो० शाही पुराने १७-शंकम्भरी ,, कुलहट गो. शाह नीबाने १८-लोद्रवपुर ,, डिडु गौत्र शाह हाप्पा ने १९ - नारदपुरी के पल्लीवाल कैसाने एक लक्ष द्रव्य व्यय कर तलाव खोदाया २०-रत्नपुर के अग्रवाल नेता ने दुष्कान में एक करोड़ द्रव्य व्यय किये २१-जंगाल के गांधी दुर्गों युद्ध में काम आया उसकी स्त्री सती हुई (छत्री) इनके अलावा भी वंशावलियों में महाजन संघ के वीर उदार नर रत्नों के अनेक देश समाज के लिये शुभ कार्यों के उल्लेख मिलते हैं पर स्थानाभाव केवल नमूना के तौर पर ही कतिपय नामोल्लेख करदिये हैं। एकचालीसवें पट्ट पारख पुरे, सिद्धसूरि संघ नायक थे। उज्जल गुण छत्तीस विराजे, सूरि पद के वे लायक थे । घूम घूम कर जैनधर्म का विजय डंका बजवाया था। जिन मन्दिरों की करी प्रतिष्ठा, संघ सकल हरखाया था । इति एक चालीसवें पट्ट पर सिद्धसूरिजी म. महान् अतिशय धारी प्राचार्य हुए। जैन कुवा तालाब भी बना सकते हैं ? ११२७ www.jainelibrary.org Jain Educ For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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