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आचार्य देवसिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ११२४-११७८
४१-प्राचार्य श्री सिद्धसरि ( अष्टम् )
सिद्धाचार्य इति स्तुतो मुनिवरश्चादित्यनागान्वये । शाखां पारखनामधेयविदिर्ता भूषासमोऽभूषयत् ॥ शत्रोर्मानविमर्दको धृतवलो जैनान् विधातुं क्षमः । देवस्थानविधानतो जिनमतस्थैर्य चकारात्मनो ॥
रम पूज्य, आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वरजी महाराज बाल ब्रह्मचारी, महान तपस्वी, सकल शास्त्र पारङ्गत, युगप्रधान कल्प, प्रत्यूषप्रार्थ्य, महा शासन प्रभावक, शास्त्रार्थ निष्णात
उपविहारी, तपोधनी, सुविहित शिरोमणि, धर्मप्रचारक, धर्मोपदेशक, श्रमणाचित साक्षात् in सिद्ध पुरुष के अनुरूप अनेक गुणालंकारालंकृत प्राचार्य प्रवर हुए । श्रापश्री के ब्रह्मचर्य र का व कठोर तपश्चर्या का अखण्ड तफ्तेज और पूर्ण प्रभाव भारत के एक छोर से दूसरे
छोर तक विस्तृत था। श्रापश्री के परोपकारमय जीवन का पट्टावलियों, वंशावलियों में सविशद वर्णन है किन्तु ग्रंथ विस्तार के भय से हम उतना विस्तृत न बनाते हुए हमारे उद्देश्यानुसार संक्षेप में आपके जीवन की मुख्य २ घटनाओं का उल्लेख करेंगे जिससे पाठकों को अच्छी तरह से ज्ञात हो जायगा कि पूर्वाचार्यों का जैन समाज पर कितना उपकार है ? उन महापुरुषों ने कितनी तरह की तकलीफें सहन करके भी अपने कर्तव्य पथ को नहीं छोड़ा। उन्होने किस तरह की कार्यकुशलता से जैनधर्म का इतना सुदूर प्रांतों तक प्रचार किया ? और उस उपकार ऋण से उऋण होने के लिये हमारा उनके प्रति क्या कर्तव्य है ? अस्तु,
... जैसे मेघादि की कलंकमय कालिमा विहीन, निर्मल एवं शुभ्र आकाश में प्रह, नक्षत्र, तारादि परिवारों की समृद्धि से समृद्धिशाली, षोडश कला परिपूर्ण कलानिधि शोभित होता है उसी तरह इस भूमण्डल पर व्यापारादि समृद्धिवर्धक साधनों की प्रबलता से, श्वेत वर्णीय प्रासाद शिखरों की उत्तंगता से, एवं महावीर भन्दिर की उच्चेशिखर के ध्वज दंड और सुपर्ण कलश सुशोभित तथा नानोपवन कूपवाटिकादि प्राकृतिक सौंदर्य से शोभायमान महाजन संघ का श्राद्योत्पादक क्षेत्र श्री उपकेशपुर नाम का चित्ताकर्षक, मनोरंजक, पाल्हादकारी, रमणीय नगर था । यों तो यह नगर छत्तीस प्रकार की कौम का श्राश्रय स्थान था किन्तु मुख्यता में उपकेशवंशियों की विशालता थी । देवी सञ्चायिका के वरदानानुसार 'उपकेशे बहुलंद्रव्यं' उपकेशपुरीय महाजन संघ जैसे तन से एवं जन से कुटुम्ब परिवार से परिपूर्ण था वैसे धन में भी कुबेर से स्पर्धा करने वाला था । उपकेशवंशियों की जैसे राज्य कर्मचारियों के मंत्री, लेनापति श्रादि पदों से विशेष सत्ता थी वैसे नागरिकों में भी नगरसेठ, पंच चौधरी आदि मानवर्धक, सम्मान बोधक पदों से प्रतिष्ठा थी। उपकेशवंशियों में आदित्यनाग नाम का प्रसिद्ध गौत्र है जो, एक आदित्यनाग नाम के महापुरुष के स्मृतिरूप ही है । इसी श्रादित्यनाग गौत्र की शाखा प्रशाखादि के रूप में इतनी वृद्धि हुई कि भारत के अधिक प्रान्तों में आदित्यनाग गौत्रीय शाखाएं ही दृष्टिगोचर होने लगी थी। इनकी शाखाओं मुख्य २ चोरलिया, गोलेचा उपकेशपुर नगर का वर्णन
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