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वि० सं० ६८० से ७२४ ]
१४- र
-- रत्नपुरा
१५ - उपशपुर
१६ - नागपुर
१७- चन्द्रावती
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कुम्मट
अदित्या०
चिंचट
११०८
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[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
गो०
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प्राग्वट
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करण ने
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१८ - उपकेशपुर के कुम्मट रावल युद्ध में काम श्राया उसकी पत्नी सती हुई । १९ - मेदनीपुर के श्रेष्ट हरदेव २० - शिवगढ़ के श्रीमाल अर्जुन २१- मुग्धपुर के प्राग्वट नारायण २२ - चरपटप्रामें बप्पनग देदा की पत्नी ने एक लक्ष द्रव्य से बावड़ी कराई । २३- क्षत्रीपुर के श्रेष्टि गोमा की पुत्री रामी ने तलाब बनाया |
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२४ - भोजपुर के प्राग्वट कुम्मा की धर्म पत्नी ने एक कुंवा बनाया ।
६५ - पारिका के पल्लीवाल काना ने दुकाल में एक कोटी द्रव्य किया ।
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जय
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दुकाल - श्राचार्य देव के शासन में महाजन संघ बड़ा ही उन्नत दशा को भोग रहा था धन धान्य एवं पुत्रादि परिवार से समृद्धशाली था वे लोग अच्छी तरह से समझते थे कि इस समृद्धशाली होने का मुख्य कारण देव गुरु और धर्म पर अटूट श्रद्धाही है अतः वे लोग गुरु महाराज के उपदेश एवं आदेश को देव वाक्य की तरह शिरोधार्य करते थे गुरु उपदेश से एक एक धर्म कार्य में लाखों करोड़ों द्रव्यं बात की बात में व्यय कर डालते थे इतना ही क्यों पर वे जनोपयोगी कार्य में भी पीछे नहीं हटते थे आचार्य श्री के शासन समय तीन बार दुकाल पड़ा था जिसमें भी महाजन संघ ने करोड़ों द्रव्य खर्च किये । उपकेशवंशकी उदारता - नागपुर के अदित्यनाग देदा के पुत्र खींवसी की जान सत्यपुरी के सुचंती रामा के वहाँ जारही थी रास्ता में भोजन के लिये शकर (खांड) की १५० बोरियां साथ में थी, जान ने एक ग्राम बाहर बावड़ी पर डेरा डाल कर रसोई बनाई जब भोजन करने को तैयारी हुई तो जान वालों को मालूम हुआ कि बावड़ी का पानी कुछ खारा है तो सब लोग कहने लगे कि क्या देदाशाह हमें खारा पानी पिलावेगा ? इस पर देदाशाह ने नौकरों को हुक्म दिया कि अपने साथ में जितनी खांड है वह सब बावड़ी दो | बस वे १५० बोरियों खोल कर सब खांड बावड़ी में डालदी और जान वालों को कहा कि आप सब सरदार मीठा पानी अरोंगो । श्रद्धा हा, लोगों ने देदाशाह की उदारता की बहुत प्रशंसा की तथा ग्राम वालों भी मिठा पानी पिया और एक कवि ने देदाशाह की उदारता का कवित्त भी बनाया । चालीसवें पट्ट देवगुप्त हुए, जिनको महिमा भारी थी ।
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आत्मबल अरू तप संयम से कीर्ति खूब विस्तारीं थी । शिथिलाचारी दूर निवारी, आप उग्र बिहारी थे ।
गुण गाते सुर गुरु भी था, शासन धर्म प्रचारी थे ॥ इति भगवान् पार्श्वनाथ के चालीसवे पट्टपर आचार्य देवगुप्त सूरि परमप्रभाविक श्राचार्य हुए |
सूरीश्वरजी का स्वर्गवास ।
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