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वि० सं० ६६०. ६८० ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
पड़ती है तथा वाग वगेवा बनाते हैं उसके अन्दर कुवा होज वगैरह भी बनवाते हैं इससे उसको कर्मादान का व्रत अतिक्रमण नहीं होता हैं
इतिहास से ज्ञात होता है कि पूर्व जमाना में बहुत से जैन उदार नर रत्नों ने असंख्य द्रव्य व्यय कर जन उपयोगी बहुत से कार्य एवं देश की सेवा कर यशः कमाया था पर श्राज उनकी संतान द्वारा उस पर पर्दा डाला जाता है इससे बड़ कर दुःख की बात ही क्या हो सकती है ।
हम जिस इतिहास को लिख रहे है इसके अन्दर बहुत जैन उदार गृहस्थों के जरिये तलाव कुवा बावडियों बनाने का एवं दुष्कालादि श्रापत्त के समय असंख्य द्रव्य व्यय कर मनुष्यों कों अन्न और पशुओं को घास पानी प्रदान कर उनके प्राण बचाये एवं अपनी उदारता का परिचय दिया । यही कारण है कि उस समय के राजा महाराजा तथा नागरिकों ने उन परमोपकारी महाजनों को जगत्सेठ नगरसेठ टीकायत, चोवटिया, शाह, पंचादि पदवियों प्रदान की गई थी जो वर्तमान में भी उनकी सन्तान के साथ मौजूद हैं वंशावलियों में उल्लेख मिलता है कि
१ - नागपुर में श्रेष्टि गुणाढ़ की पत्नी ने एक कुवा बनाया
२- खटकूप में श्री श्रीमल देवा ने एक पग वापि बनाई
३ - किराटकूप में देसरडा काना की विधवा पुत्री ने एक तलाब बनाया
४ - गागोली में बलाह- शंका माना की पत्नी सेणी ने तलाब बनाया
५ - राजपुर में जैन ब्राह्मण शंकर ने एक लक्ष द्रव्य व्यय कर एक बावड़ी बनाई ६ - चन्द्रावती का प्राग्वट नेनों युद्ध में काम श्राया उसकी स्त्री सति हुइ ( छत्री )
७ - शिवपुरो का श्रेष्टि देहल ८ - उपकेशपुर का भाद्र० सारंग," ९ - नागपुर का अदित्य० कुम्मो, १० -- क्षत्रीपुर का राव भैरो
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करुणा सागर ककसूरिजी, नौ वाड़ करते भूप चरण की सेवा,
अनेक विद्याओं से थे वे भूषित, देव सेव
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वे
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शुद्ध ब्रह्मचारी थे ।
जैन धर्म प्रचारी थे |
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नित्य करते थे
हितकारी थे सकल संघ को, वे आज्ञा शिर पर धरते थे |
इति भगवान् पार्श्वनाथ के उनचालीस वे पटधर ककसूरिजी महा प्रभाविक श्राचार्य हुए
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सूरीश्वरजी के शासन में शुभ कार्य
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