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आचाय देवगुप्तसूरि का जीवन]
[ ओसवाल सं० १०८० से ११२४ ४० प्राचार्यश्री देवगुप्त सूरि (अष्टम् )
धर्माचारविचारकः कुलहटे श्रीदेवगुप्तो व्रती वादिव्रातपराजयस्य करणे यःकोऽपि कोपेऽभवत् । तस्यैवायमिहे हितः सुदमने माने मदे नो रतः जाति स्वां शिथिला समीक्ष्य विदधे भव्यां तदीयोनतिम् ।।
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रमपूज्य आचार्यश्री देवगुप्त सूरीश्वरजी म. बाल ब्रह्मचारी, प्रखर विद्वान , महान तपस्वी,
कर्तव्यनिष्ठ, कार्यकुशल, मध्यान्ह के सूर्य के समान मिथ्यात्वान्धकारको विध्वंस करने में LPG समर्थ, धर्म प्रचारक, युगप्रवर्तक श्राचार्य हुए। श्राप मरुभूमि के चमकते सितारे थे । उस
विकट समय में भी जैनधर्म को यथावत् सुरक्षित रख, अनेकानेक अचिन्तनीय उपायों के प्रयत्नों से अनेक कठिनाईयों, परिषहों को सहन कर शासन की उत्कृष्ट मान मर्यादा बढ़ाने
का अक्षय यशः एवं अदम्य उत्साह श्राप जैसे उत्कृष्ट क्रिया पालक आचार्य देव को ही प्राप्त था। इस विषय में श्राप श्री का व आपके पूर्वाचार्यों का जितना उपकार मानें उतना ही कम है। हम किसी भी प्रकार से आपके ऋण से उऋण नहीं हो सकते । आपश्री का जीवन शान्ति, क्षमा, परोपकार श्रादि गुणों से श्रोत प्रोत था।
प्राचीनप्रन्थों, वंशावलियों, पट्टावलियों तथा गुरु परम्परा से सुनते हुए संग्रह करने वाले संग्रहकर्ताओं के द्वारा निर्मित एतद्विषयक प्रन्थों से आपश्री के जीवन का जो कुछ यत्किञ्चित् श्राभास मिलता है उसी को पाठकों के कल्याणार्थ यहां लिख दिया जाता है।
मरुधरभूमि के वक्षस्थल पर अतीव रमणीय, प्राकार परियुक्त, धनधान्य सम्पन्न, नानातरुलतो. पवनवाटिका सर कूप परिशोभित, नभस्पर्शी, श्वेत वर्ण वर्णित धवल क्रांति संयुक्त जिनप्रासाद श्रेणि से कमनीय, चित्ताकर्षक, व्यापारिक केन्द्र स्थान रूप मरुभूमि भूषण नारदपुरी नामक अवर्णनीय शोभा समन्धित नगरी थी। परम्परागत चली आई कथाओं से ज्ञात होता है कि इस नगरी को महर्षि नारदजी ने बसाई थी अतः इससे तो इस नगरी की प्राचीनता एवं सुंदरता और भी अधिक अभिवृद्धि को प्राप्त होती है । सम्राट् सम्प्रति ने भगवान पद्मप्रभस्वामी का जिनालय बनवाकर तो इस नगरी की शोभा में और भी वृद्धि कर दी। इस नगरी को अनेक महापुरुषों को पैदा करने का परम यशः सौभाग्य प्राप्त होचुका है यह पिछले प्रकरणों को मनन पूर्वक पढ़ने से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है। इन्हीं नरपुंगव नररत्नों ने जैनधर्म की जो अमूल्य सेवाएं की हैं वे इतिहासज्ञ मनीषियों से प्रच्छन्न नहीं है । जैन इतिहास में इन महापुरुषों के शासनोन्नति विषयक विशेष कार्य स्वर्णाक्षरों में अङ्कित करने योग्य हैं । "रत्नों की खान से रत्न ही निकलते हैं “इस लोक्त्य. नुसार उपकेशवंश सुचन्ति गौत्रीय, धनजन सम्पन्न, ऋद्धि समृद्धि समन्वित, क्रय विक्रय आदि वाणिज्य कला दक्ष बीजा नामके महर्द्धिवन्त श्रेष्ठिवर्य रहते थे। श्रापकी धर्मपरायणा, परमसुशीला, गृहिणी का नाम वरजू
नारदपुरी का नर रत्न पुनड़
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