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________________ वि० सं० ६३१ से ६६० ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास १६-देवपट्टन के भूरि जोग की स्त्री सतीहुई १७-वेनापुर के आदित्य सोढ़ा की स्त्री सती हुई १८-जाबलीपुर के श्रेष्टि धर्मशी की विधवा पुत्री पेमी ने नजदीक में एक सालाब बनवाया १९-वि० सं० ६३५ में एक भयंकर दुकाल पड़ा जिसमें उपझेशपुर के महाजन संघ ने अपने नगर से करीब तीन करोड़ का चन्दा किया और शेष अन्य स्थानों से सात करोड़ का चन्दा करके मनुष्यों को अन्न और पशुओं को घास पानी वगैरह की सहायता कर उस जन संहारक दुकाल कों सुकाल बना दिया यही कारण है कि साधारण जनता महजनों को मां बाप कह कर उपकार मानती है और महाजनों की इसी उदारता के कारण राजा महाराजा भी उनको मान और सम्मान किया करते थे। इसी प्रकार और भी कई छोटे बड़े दुकाल पड़ा जिसको एक एक ग्राम के महाजनों ने ही देश निकाल देकर भगा दिया था। अड़तीसवें वे पद विराजे, सिद्धसूरि अतिशय धारी थे शुद्ध संयमी और कठिन तपस्वी, आप बड़े उपकारी थे प्रचारक थे अहिंसा के, शिष्यों की संख्या बडाइ थी सिद्ध हस्त थे अपने कामों मे, अतुल सफलता पाई थी इति भगवान् पीनाथ के ३८ वें पट्ट पर प्राचार्य सिद्धसूरि बड़े ही प्रभाविक श्राचार्य हुए । १०६२ सूरीश्वरजी का स्वर्गवास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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