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________________ आचार्य ककसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० १०६०-१०८० ३६ प्राचार्य श्री कक्कसरि (अष्टम) धन्यः कक्कमुनीश्वरो बुधवरो यो दीक्षितः शैशवे निष्ठां प्राप्य च ब्रह्मचर्य चरणे वाक् सिद्धिविद्योतितः । लव्धीनां परमास्पदं समुदितः श्रीतत्पभट्टान्वये अन्यान् जैनमतावलम्बितजनानस्थापयच्छ्रेयसे । नाचार्य श्री कक्कसूरिजी महाराज बड़े ही क्रान्तिकारी एवं जबरदस्त प्रचारक आचार्य हुए। HTRP आपके मौलिक गुणों का वर्णन करने में साधारण व्यक्ति तो क्या, पर बृहस्पति भी असpa मर्थ है भारत भर में चारों ओर आपका ही लोहा थी। जैसे आपका विहार क्षेत्र विशाल ७ था वैसे आपकी श्राज्ञावर्ती श्रमण मण्डल भी विशाल था। श्रापका समय विकट परीक्षा का समय था । भयंकर दुष्काल के कर आक्रमण ने जनता त्राहि २ मचादी थी। धर्म में चारों और शिथिलता दृष्टि गोचर होने लगी थी पर, आचार्य श्रीकक्कसूरिजी महाराज की विद्यमानता में वह अपना ज्यादा प्रभाव न डाल सकी। आपके जीवन को पट्टावली निर्माताओं ने खूब विस्तार पूर्वक लिखा है । आपके जीवन वृत्त के साथ ही साथ उस समय के जैनियों की गौरव गाथा का भी स्थान २ पर उल्लेख किया है । पाठकों की जानकारी के लिये यहां आपश्री का संक्षिप्त जीवन लिख दिया जाता है। अर्बुदाचल की शीतल छाया में पद्मावती नाम की सुरम्य नगरी थी। उस समय पद्मावती एक समृद्धिशाली व्यापारिक केन्द्र स्थान को प्राप्त किये हुए सर्व प्रकार से उन्त थी । प्राचार्यश्री स्वयंप्रभसूरि के उपदेश से प्राग्वट वंश की उत्पत्ति इसी पद्मावती नगरी से हुई थी। पद्मावती उस समय चंद्रावती के अधिकार में थी और चंद्रावती के सूर्यवंशीय राजा कल्हण देव की ओर से एक भीम नामक वीर क्षत्री पद्मावती में प्रबन्ध कर्ता हाकिम के पद के तौर पर रहते थे । राव भीम परम्परा से जैन धर्म के उगसक, श्रद्धालु भावक थे। पद्मावती नगरी में तप्तभट्ट गोत्रीय शा० सलखण नाम के एक प्रतिष्ठित और लोकमान्य व्यापारी रहते थे। श्रापकी पत्नी का नाम सरजू था। सेठजी पर लक्ष्मी की पूर्ण कृपा होने पर आपके पुत्र भी नहीं था। सेठानी सरजू पुत्र के विना महान् दुखी थी। वह अपने जीवन को पुत्र के अभाव में शून्य समझती थी। संसार के सकल सुखोपभोग के साधन उसे आनंद दायक प्रतीत नहीं होते थे वास्तव में नीतिका यह कथन अपुत्रस्य गृहं शून्य' युक्ति युक्त ज्ञात हो रहा था । सेठानी हमेशा उदास रहती थी। अत: कालान्तर से सेठजी ने सेठानी को उदास रहने का कारण पूछा । सेठजी के बहुत श्राग्रह करने से सेठानी ने अपने पतिदेव को सच्ची हकीकत कह सुनाई । सेठानी की दुःखद स्थिति से सेठजी अज्ञात थे अतः कुछ हंस कर कहा- क्या आपने नहीं सुना है कि -देवताओं के पुत्र नहीं होने से वे परम सुखी रहते हैं यही नहीं मैंने तो यहां तक सुना है कि-महाविदेह क्षेत्र में कोई मनुष्य किसी का नुक्सान कर देता है तो नुक्सान करने वाले को जिसका नुक्सान हुआ वह, यह गाली देता है कि रे शठ ! तुम भारत क्षेत्र में उत्पन्न होकर बहुत परिवार वाला और बहुत धनवान होना । महाविदेह क्षेत्र वाले तो आपस में एक दूसरे का अहित इस तरह इच्छते हैं । अर्थात् पद्मावती नगरी का सलखण १०६३ www.ainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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