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________________ वि० सं०३३६-३५७ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास २ - दर्शन याराधना के तीन भेद ------ दर्शनाराधना भी तीन प्रकार की है। जैसे कि--- १ - जघन्य दर्शनाराधना - जघन्य क्षयोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति होना । २ - मध्यम दर्शनाराधना उत्कृष्ट क्षयोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति होना । ३ - उत्कृष्ट दर्शनाराधना क्षायक सम्यक्त्व की प्राप्ति होना । उद्यमापेक्षा जघन्य दर्शनाराधना देवदर्शन एवं पूजन करना गुरुदर्शन, स्वाधर्मियों से वात्सल्यता आदि जिनशासन की उन्नति के काग्र्यों में शामिल होना । मध्यम दर्शनाराधना तीर्थकरों का मंदिर बनाना मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाना, साधर्मी भाइयों को सहायता पहुँचा कर धर्म में अस्थिर होते हुए को स्थिर करनादि । उत्कृष्ट दर्शनाराधना तीथों का बड़ा संघ निकालना यत्र जैनों को जैनधर्म में दीक्षित करनादि । ३ – चारित्र आराधना के तीन भेद १ -- जघन्य चारित्र आराधना सामयिक चारित्र, देशत्रत एवं सर्वव्रत धारणकर आराधना करना। २ - मध्यम चारित्र आराधना-प्रतिहार विशुद्ध एवं सूक्ष्म संप्रराय चारित्र की आराधना । ३ - उत्कृष्ट चारित्र श्राराधना यथाख्यात चारित्र की आराधना | उद्यम की अपेक्षा चारित्रवान को उपकरण वग़ैरह सहायता पहुँचानी यह जघन्य चारित्र आराधना चारित्र का अनुमोदन करना चारित्र लेने वालों को भावों की वृद्धि करना यह मध्यम चारित्र आराधना और चारित्र लेना या चारित्र से पतित होते हुये को चारित्र में स्थिर करना यह उत्कृष्ट चारित्र आराधना है । इन ज्ञान दर्शन चारित्र की जघन्य आराधना करने वाले जीव पन्द्रह भव में अवश्य मोक्ष जाता है। तथा इन रत्नत्रय की मध्यम आराधना करने से तीन भव में तथा उत्कृष्ट आराधना करने से उसी भव मैं मोक्ष जाता है । अतएव आप लोगों को इस भव में सब सामग्री अनुकूल जिलगई है तो ज्ञान दर्शन चारित्र के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्टि जैसी बने वैसी आराधना अवश्य करनी चाहिये इत्यादि खूब विस्तार से उपदेश दिया जिसका श्रोताओं पर अच्छा प्रभाव पड़ा । और आत्मकल्याण की भावना वालों की अभिरुचि श्रार धना की ओर झुक गई। सूरिजी ने कोरंटपुर में स्थिरता कर वहाँ के श्रीसंघ में शान्ति स्थापन करदी औ उनको इस प्रकार समझाया कि उनका दिल उदार एवं विशाल बन गया ! एक समय चन्द्रावती नगरी के संघ अश्वर सूरिजी के दर्शनार्थ आये और प्रार्थना की कि प्रभो चन्द्रावती का सकल श्रीसंघ आपके दर्शनों की अभिलाषा कर रहा है अतः आप शीघ्र ही चन्द्रावती धा आपके पधारने से बहुत उपकार होगा। सूरिजी ने फरमाया कि इनको विहार तो करना ही है और इस प्रदे में आये हैं तो चन्द्रावती की स्पर्शना भी करनी ही है पर आप शीघ्रता करने को कहते हो ऐसा वहाँ क्य ला ७७० Jain Education International ? श्रावकों ने कहा यह तो आप वहाँ पधारेंगे तब मालूम हो जायगा । सूरिजी ने कहा क्या कोई दीक्ष लेने वाला है या मंदिर की प्रतिष्ठा करवानी हैं तथा तीर्थ यात्रार्थ संघ निकालना है ऐसा कौनसा लाभ है श्रावकों ने कहा कि दीक्षा श्रावक ही लेते है मंदिर श्रावक ही करवाते है और संघ भी श्रावक ही निकाल हैं। आप चंद्रावती पधारें सब होगा। सूरिजी ने कहा क्षेत्र स्पर्शन । वस, चंद्रावती के श्रावक सूरिजी वंदन करके चले दिये । तदनंतर सूरिजी कोरंटपुर से विहार करके आस पास के ग्रामों में धर्मोपदेश क For Private & Personal Use Only [ चन्द्रावती का संघ कोरंटपुर www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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