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आचार्य कक सूरि का जीवन |
[ ओसवाल संवत् ७३६-७५७
हुये चंद्रावती पधारे। श्रीसंघने बड़े ही समारोह से सूरिजी का स्वागत किया । सूरिजी महाराज ने मंगलाचरण में ही फरमाया कि जिनशासन की प्रभावनाः जिनशासन की उन्नति और मिथ्या दृष्टियों को प्रतिवोध करने से जीव तीर्थङ्कार नाम कर्मोपार्जन करता है । इस विषय में कई उदाहरण बतला कर जनता पर अच्छा प्रभाव डाला तत्पश्चात् भगवान् महावीर की जयध्वनि के साथ सभा विसर्जन हुई ।
दोपहर के समय ओकोरंटपुर आये थे वे श्रावक आये। सूरिजी को वन्दन करके श्रर्ज की कि प्रभो ! यह दुर्गा श्रीमाल है इसने भगवान शान्तिनाथ का मंदिर बनाया है इसकी इच्छा है कि प्रतिष्ठा करवा कर श्रीशत्रु जय का संघ निकाल और उस तीर्थ की शीतल छाया में दीक्षा ग्रहण करूँ इसलिये हम आपके पास विनती करने को आये थे । सूरिजी ने कहा दुर्गा बड़ा ही भाग्यशाली है । जो श्रावक करने योग्यकृत्य है उनको करके कृतार्थ होना चाहिये ! दुर्गा ने जो कार्य करने का निश्चय किया यह तो बहुत अच्छा है कल्याणकारी है पर दुर्गा के कुटुम्ब में कौन है ? उन्होंने कहा दुर्गा के औरत तो गुजर • गई तीन पुत्र और पौत्रे वगैरह हैं पर वे भी धर्मिष्ठ हैं उन्होंने कह दिया कि आप अपने कमाये द्रव्य का धर्म-कार्य में व्यय करें इसमें हमारा कोई उजर नहीं है इतना ही नहीं बल्कि जरूरत हो तो हम अपने पास से भी दे सकते हैं आप खुशी से धर्म-कार्य करावे इत्यादि । सूरिजी ने कहा कि शाल का वृक्ष के परिवार भी शाल का ही होता है पर धर्म कार्य में बिलम्ब न होना चाहिये । श्रावकों ने कहा गुरुदेव ! मन्दिर तो तैयार होगया | आप शुभ मुहूर्त निकाल दें सब सामग्री तैयार है संघ के लिये अभी तो ऋतु गरमी की है आप चतुर्मास करावे और बाद चतुर्मास के संघ निकाल कर दुर्गा दीक्षा लेने को भी तैयार है । उम्मेद है कि दुर्गा का अनुकरण करने को और भी कई भावुक तैयार होजांयगे । सूरिजी ने फरमाया कि क्षेत्र स्पर्शन सूरिजी का व्याख्यान हमेश हो रहा था श्री संघ ने चतुर्मास की विनती की और सूरिजी ने स्त्रीकार करली । सूरिजी ने आर्बुदाचलादि प्रदेश में घूम कर पुनः चन्द्रावती आकर चतुर्मास कर दिया । व्याख्यान में आगन वाचना के लिये श्रीभगवती सूत्र वाचने का निश्चय होने पर शाहदुर्गा ने रात्रि जागरणादि श्रागम पूजा का लाभ हासिल किया कारण दुगा के एक यही काम शेष रहा था । सूरिजी की कृपा से वह भी होगया चन्द्रावती नगरी के लिये यह सुवर्ण समय था कि एक तो सूरिजी का चतुर्मास और दूसरे महा प्रभाविक पंचमागम का सुनना जिसके लिये मनुष्य तो क्या पर देवता भी इच्छा करते हैं। प्रत्येक शतक ही नहीं पर प्रत्येक प्रश्न की पूजा सुवर्ण मुद्रिका से होती थी जनता को बड़ा ही आनन्द आरहा था, क्यों नहीं सूरिजी जैसे विद्वान के मुँह से श्रीभगवती सूत्र का सुनना । यों तो भगवती सूत्र ज्ञान का समुद्र ही है और इसमें सब विषयों का वर्णन आता है पर त्याग वैराग्य एवं आत्म कल्याण की और विशेष विवेचन किया जाता था जिससे कई मुमुक्षुओं के भाव संसार से विरक्त होगये थे सूरिजी के चतुर्मास से जनता को बहुत लाभ मिला, तप संयम की आराधना भी बहुत लोगों ने की । इधर शाह हुर्गा ने अपनी ओर से संघ की तैयारियें करनी शुरू करदी | बड़ी खुशी की बात है कि मन्दिर की प्रतिष्ठा और संघ प्रस्थान का मुहूर्त नजदीक २ में ही निकला कि जनता का और भी सुविधा होगई। दुर्गा ने आमंत्रण भी दूर २ प्रदेश तक भिजवा दिये थे । श्रतः चतुर्दिध श्रीसंघ बहुत गहरी संख्या में उपस्थित हुआ । सूरिजी ने शुभ मुहूर्त में मन्दिरजी की प्रतिष्ठा करवा कर शाह दुर्गा को संघपति बनाया और संघ यात्रा के लिये प्रस्थान कर दिया । रास्ते में मंदिरों के दर्शन पूजा प्रभावना ध्वजारोहण और स्वामिवात्सल्यादि कई शुभ कार्य करते हुये संघ श्रीशत्रु जय पहुँचा ।
दुर्गा श्री महल का प्रशंसनीक कार्य /
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