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________________ वि० सं०६०१-६३१] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास अप्रधारा सोना की थी जिसको देखकर महामंत्री ने सोचा की यह गरीब आदमी काष्ट की भारी लकर गुजारा करता है इसके सुवर्ण का कुहाडा क्या ? शायद कही पारस का स्पर्श तो नहीं हुआ हो ? मंत्रेश्वर ने करहारा को धमकाकर पुच्छा कि तु कष्ट की भारी कहाँ से लाया है। कटारे ने महामंत्री के शब्द सुनकर कम्पाता २ वोला अन्नदाता में गरीष श्रादमी हूँ जंगल से लकड़ी काट कर लाता हूँ उसको वेच कर धान लाता हु और बाल बच्चों का पोषण करता हूँ। इसपर मंत्रेश्वर ने कहाँ कि चल वह स्थान बतला कि जहाँ से तुं लकड़ियां काट कर लाया है ? सता के सामने विचारा वह गरीब क्या कर सकता था। उसने चल कर उस जगह को बतलाइ कि जहाँ से लकरिया काट कर लाया था मंत्रेश्वरने कटहारा को जाने की इजोजत दे दी और आप उस भूमी को ठीक तरह देखने लगा तो आपकों वहाँ पारस मिलगया जिसको लेकर अपने मकान पर आ गये और विचार करने लगा कि देव गुरु धर्म की कृपा से मुझे सहज में ही पारस मिलाया है तो मैं इसकों किसी धार्मिक एवं जनोपयोगी कार्य में लगा कर सदुपयोंग करू । मंत्रेश्वर ने उस पारस के जरियों पुष्कल लोहा का सोना बनाकर खुब धन रासी एकत्र करली बाद उन्होंने उस द्रव्य से तीर्थों की यात्रार्थ बड़े बड़े संघ निकाले चित्रकोट में भगवान महावीर का मन्दि बनाकर सुवर्णमय मूर्ति स्थापन की और साधर्मी भाइयों को खुल्ले दीलसे सहायता दी तथा गरीब निराधार मनुष्यों को गुप्त सहायता दी और चित्रकोट नगर के चारों और विशाल किल्ला बनवाया जो भारत में अपनी शान का एक ही किल्ला है और इस प्रकार अक्षय निधान ( पारस ) मिल जाने से ही ऐसा वृहद् कार्य बन सकता है न कि कमाया हुआ द्रव्य से । इस पुनित कार्य से यह भी पाया जाता है कि जैन गृहस्थ लोग प्राप्त लक्ष्मी का इस प्रकार सार्वजनिक कार्यों में सदुपयोम करते थे धन्य है उन उदारवृत्ति के नररत्न को । इत्यादि बटुप्त सद् कार्य किये पर वे सब सद्कार्य मंत्रेश्वर के ही तकदीर में लिखे थे मंत्रेश्वर परलोक गमन के साथ पारस भी परश्य हो गया था पूज्याचार्यदेव ने ३० वर्षों के शासन में मुमुक्षुओं को दीक्षाएं दी १-पानन्दपुर के भेष्टि गौत्रीय जैताने दीक्षा --उपकेशपुर के रांका नौंधणाने ३-चूडाणी "चरड़ धना ने ४-क्षत्री पुरा बपनाग साहजाने ५-मुग्धपुर भादाने ६-माडव्यपुर , चिंचट श्राबाने ७ -- पद्मावती सांगणने ८-खटकूप , आदित्य अर्जुन ने ९-रूणावती , विरहट आसलने १०-तारापुर " कुलहट रोड़ा ने ११-कोरंटपुर , चोरडिया पाहड़ ने १२-रत्नपुरा , कनोजिया रूपण ने १०४२ सूरीश्वरजी के शासन में दीक्षाएं " भाद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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