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वि० सं० ६०१-६३१ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
अरे ! मनुष्य जीवन के साथ तदनुकूल सुयोग्यसामग्री, सद्धर्मश्रवण लाभ एव शास्त्रीय वचनों को कार्यान्वित करना इस जीव के लिये महादुष्कर है । श्रनादि के मिथ्यात्व, अज्ञान, राग, द्वेष, के प्रवाह में प्रवाहित जीव इन पौद्गलिक वस्तुओं को उभययतः (इस लोक और परलोक के लिये) श्रेयस्कर समझ कर अत्यन्त कटु परिणाम वाले कर्मों का उपार्जन करता रहता है पर सम्मार्ग प्रवृत्ति की ओर उसकी अभिरुचि ही नहीं होती । पर अन्त में परिणाम स्वरूप मृत्यु के समय किंवा नारकीय यातनाओं को सहन करते हुए अपने कृत कर्तव्यों पर खेद होता है, किन्तु उस परिणाम शून्य किंवा गोलमाल रहता है क्योंकि" पाये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत "
सूरिजी के पीयूष रस समन्वित वैराग्योत्पादक उपदेश को श्रवण कर राव शोभा का वैराग्यद्विगुणित होगया एवं दीक्षा के लिये कटिवद्ध होगया, तत्काल सूरिजी को वंदन कर कुटुम्बवर्ग की समिति प्राप्त करने के लिये घर पर गया । कौटाम्बिक सकल समुदाय को एकत्रित कर राव शोभा ने कहा- मैं मेरा श्रात्मकल्याण करना चाहता हूँ ? कुटुम्बवर्ग-श्रा
- आप प्रसन्नतापूर्वक श्रात्मकल्याण करावे |
शौभा- मैं कुछ द्रव्य का सप्त क्षेत्रों में सदुपयोग करना चाहता हूँ ?
कुटुम्बवर्ग - श्रापकी इच्छा हो इस तरह आप द्रव्य का सदुपयोग कर सकते हैं ऐसे पुण्य के कार्यों में द्रव्य व्यय करना तो अपने सब का कर्तव्य है फिर आपके द्वारा उपार्जित द्रव्य पर तो हमारा अधिकार ही क्या ? कि हमे पुच्छने की आवश्यकता हो
शोभा मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ ।
कुटुम्ब वर्ग -- आपकी अवस्था दीक्षा स्वीकार करने योग्य नहीं हैं । आप घर में रह कर ही निवृत्ति में (आत्म कल्याण साधक मार्ग में) प्रवृत्ति करें, हम सब आपकी सेवा का लाभ लेने के लिये उत्सुक हैं। शोभा -- श्राचार्यश्री फरमाते हैं कि घर में रह कर आरम्भ परिग्रह एवं मोह से सर्वथा विमुक्त होना, जरा अशक्य है । अतः मेरी इच्छा दीक्षा लेने की है ।
कुटुम्ब वर्ग - आचार्य महाराज के तो यही काम है क्या लाखों करोड़ों मनुष्य दीक्षा लेकर ही आत्म कल्याण करते होंगे ? क्या घर में रह कर श्रात्म कल्याण नहीं कर सकते हैं ?
शोभा - यह कहना आप लोगों की भूल है। करोड़ों मनुष्यों में कल्याण करने की भावना वाले बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं । उनमें भी दीक्षा को स्वीकार करने वाले तो विरले ही होते हैं ।
इत्यादि प्रश्नोत्तर के पश्चात् पचास लक्ष रुपयों से माण्डव्यपुर के किल्ले में एक मंदिर तथा पास में उपाश्रय बनाने का निश्चय कर अपने मनोगत भावों को अपने पुत्रों के समक्ष प्रगट किये पिताश्राज्ञापालक पुत्रों
भी पिताश्री के आदेशानुसार काम करवाना प्रारम्भ कर दिया ।
इधर चातुर्मास के समाप्त होते ही सात भावुकों के साथ में राव शोभा ने, सूरिजी के चरण कमलों में भगवती, आत्मसाधिका दीक्षा स्वीकार करली बाद में श्रीश्राचार्यदेव भी वहां से क्रमशः विहार करते हुए, उपकेशपुर पधार गये । वहां के श्रीसंघने सूरिजी का अच्छा स्वागत किया । श्रीमान् सूरिजी ने भी भगवान् महावीर एवं आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरिकी यात्रा कर श्रीसंघ को धर्मोपदेश सुनाया ।
एक दिन रावगोपाल तथा, वहां के सकल श्रीसंघने प्रार्थना की कि भगवन् ! श्रपश्री ने सर्वत्र विहार
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राब शोभा की जैन दीक्षा
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