________________
वि० सं० ५५८ से ६०१]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
नवीन स्कीम (योजना) बनाई गई । योग्य मुनियों को पदवी प्रदान कर उनके उत्साह को बढ़ाया गया। प्रत्येक प्रान्त में सुयोग्य पदवीधरों को अलग २ विचरने की आज्ञा प्रदान की गई।
अहा हा, उन पूर्वाचार्यों के हृदय में शासन के प्रति कितनी उन्नत एवं उत्तम भावनाएं थी। शासन का थोड़ा भी अहित, अपनी आंखों से नहीं देख सकते थे। जहां कहीं भी जरासी गफलत दृष्टिगोचर होती-तुरत उसे रोकने का हर तरह से प्रयत्न किया जाता । विशेषता तो यह थी कि उस समय भी कई गच्छ, शाखा कुल एवं गण विद्यमान थे परन्तु नामादिक भेद होने पर भी शासन के हित कार्य में वे सब एक थे । एक दूसरे को हर तरह से सहायता देकर शासन के विशेष महात्म्य को बढ़ाने के लिये उनके हृदय में अपूर्व क्रान्ति की लहर विद्यमान थी। वे आपसी मतभेद खेंचातानी एवं मैं मैं, तूं तू, में अपनी संयम पोषक-शक्ति का अपव्यय नहीं करते थे । यही कारण था कि उस समय करोड़ों की संख्या में विद्यमान जैन जनता संगठन के एक हद सूत्र में बंधी हुई थी। चारों और जैन धर्म का ही पवित्र मंडा फहराता हुआ दिखाई देता था। ये सब हमारे पूर्वाचार्यों की कार्य कुशलता के सुंदर परिणाम थे।।
प्राचार्य कक्कसूरिजी जाबलीपुर से विहार करने वाले थे पर जाबलीपुर का संघ इस बात के लिये कब सहमत था १ वह घर आई पवित्र गङ्गा को पूर्ण लाभ लिये बिना कैसे जाने देता ? अतः सकल श्री संपने परमोत्साह पूर्वक चातुर्मास की विनती की। श्रीसूरिजी ने भी भविष्य के लाभालाभ का कारण जान कर भीसंघ की प्रार्थना को स्वीकार करली । अब तो श्रीसंघ का उत्साह और भी बढ़ गया। घर घर में पानंद को अपूर्व रेखा फैल गई।
सूरिजी ने चातुर्मास के पूर्व का समय सत्यपुर, भिन्न मालादि क्षेत्रों में धर्म प्रचार करने में बिताया। पुनः चातुर्मास के ठीक समय पर जाबलीपुर में पधार कर चातुर्मास कर दिया।
प्राचार्यश्री के चातुर्मास में श्रीसंघ को जो जो आशाएं थी वे सब सानंद पूर्ण हुई, सूरिजी का व्याख्यान हमेशा तात्विक, दार्शनिक, आध्यात्मिक त्याग वैराग्य पर हुआ करता था। विशेष लक्ष्य प्रारम कल्याण की ओर दिया जाता था। यही कारण था कि चातुर्मास समाप्त होते ही सात पुरुषों और ग्यारह बहिनों ने सूरिजी के कर कमलों से भगवती जैन दीक्षा स्वीकार कर पात्म श्रेय सम्पादन किया। चातुर्मा सानंतर सूरिजी ने विहार कर कोरंटपुर महावीर की यात्रा की और क्रमशः पाल्हिका को पावन बनाया। पाल्हिका में कुछ समय तक स्थिरता कर जनता को धर्मोपदेश द्वारा जागृत करते रहे। जब उपके शपुर के श्रीसंघ. को उक्त शुभ समाचार ज्ञात हुए कि- आचार्यश्री कक्क सूरिजी म० पाल्हिका में विराजमान हैं तो वहां का भीसंघ अविलम्ब भाचार्य देव के दर्शनार्थ आया और उपकेशपुर पधारने की साग्रह प्रार्थना की। सूरिजी जानते थे कि उपकेशपुर जाने पर तो चातुर्मास वहां करना ही पड़ेगा अतः चातुर्मास के पूर्व, सौजाली, वैराटपुर, शाकम्भरी, हंसावली, पद्मावती, मेदिनीपुर, फलवृद्धि, नागपुर, मुग्धपुर, खटकुप नगर, हर्षपुर वगैरह छोटे बड़े प्रामों में परिभ्रमनकर धर्म जागृति द्वारा जैन जनता में नवीन स्फूर्ति का प्रादुर्भाव करना विशेष श्रेयस्कर होगा । अतः श्रागत श्रीसंघ को तो जैसी क्षेत्र स्पर्शना-कहकर विदा किया, इधर आचार्य भी उक्त ग्राम शहरों में होते हुए जब माण्डव्यपुर पधारे तब तो उपकेशपुर श्रीसंघ ने, माण्डव्यपुर और उपकेशपुर के बीच चातुर्मास की प्रार्थना के लिये आने जाने का तांता सा बांध दिया। उपकेशपुरीय श्रीसंघ की र्थिना को मान दे सूरीश्वरजी जब उपकेशपुर पधारे तो श्रीसंघ ने आपका बड़ा ही शानदार स्वागत १०१८
जाबलीपुर में चातुर्मास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org