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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन । | ओसवाल सं० १५८ से १००१ unMAanama किया । कुमट गौत्रीय शा. भोजा ने सवालक्ष द्रव्य व्यय कर सूरिजी का नगर प्रवेश महोत्सव कराया । स्वधर्मी भाइयों को प्रभावना और याचकों को उदार वृत्ति से सन्तोष पूर्ण दान दिया। भगवान् महावीर और प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के दर्शन कर सूरिजी ने संक्षिप्त किन्तु, सारगर्भित देशना दी । सर्व श्रोतावर्गानन्दोद्रेकसे ओत प्रोत हो गये । क्रमशः सभा विसर्जन हुई पर धर्म के परम अनुरागियों के हृदय में नवीन क्रान्ति एवं स्फूर्ति दृष्टि गोचर होने लगी। संघ ने विशेष लाभ प्राप्त करने की इच्छा से भाचार्यश्री की सेवा में चातुर्मास की जोरदार विनती की। सूरिजी ने भी लाभ का कारण जान उक्त प्रार्थना को स्वीकार करली । बस फिर तो था ही क्या ? लोगों का उत्साह एवं धर्मानुराग खूब ही बढ़ गया। सूरिजी के इस चातुर्मास से उपकेशपुर और आस पास के लोगों को भी बहुत लाभ हुआ। ___ उपकेश पुर में चरड़ गोत्रीय कांकरिया शाखा के शा. थेरु के पुत्र लिंबा की विधवा नानी बहिन अपने पर में एकाएक थी । सूरिजीके वैराग्योत्पाद व्याख्यान से उसे असार संसारसे अरुचि होगई । उसने सूरिजी की सेवा में अपने मनोगत भावों को प्रदर्शित किया और नम्रता पूर्वक अर्ज की कि-भगवान् ! मेरे पास जो अवशिष्ट द्रव्य है उसके सदुपयोग का भी कोई उत्तम मार्ग बतावें । सूरिजी ने फरमाया-बहिन शास्त्रों में अत्यन्त पुन्योपार्जन साधन एवं कर्म निर्जरा के हेतुभत सात क्षेत्र दान के लिए उत्तम बताये हैं इन क्षेत्रों में जहां आवश्यकता ज्ञात हो वहां इस द्रव्य का सदुपयोग कर पुण्य सम्पादन किया जा सकता है । पर मेरे ध्यान से खो यह कार्य प्रामाणिक संघ के अप्रेश्वर को सौंप दिया जाय तो सभीचीन होगा। नानी बाई को भी सूरिजी का कहना यथार्थ प्रतीत हुआ और तरक्षण ही आदित्यनागगोत्रिय सलक्खण, श्रेष्टिगोत्रीय नागदेव, चरड़ गौत्रीय पुनड़ और सुचंति गौत्रीय निम्बा इन चार संघ के अप्रगण्य व्यक्तियों को बुलाकर करीब एक करोड रूपयों का स्टेट सुपुर्द कर किया गया। सुपुर्द करते हुए नानी बाई ने कहा कि-इन रूपयों का आपको जैसा सचित ज्ञात हो उस तरह से सदुपयोग करें। मुझे तो अब दीक्षा लेने की है। उन चारों शुभचिन्तकों ने सूरि जी से परामर्श कर उपकेशपुर में एक ज्ञान भण्डार की स्थापना करदी और वर्तमान में मौजूद आगमों को लिखाना प्रारम्भ कर दिया । कुछ द्रव्य दीक्षा महोत्सव पूजा-प्रभावना-स्वामीवात्सल्यादि कार्यों में भी व्यय किया गया। अवशिष्ट द्रव्य के सदुपयोग की सन्तोष पूर्ण व्यवस्था कर दी। नानी बाई के साथ आठ बहिनें और तीन पुरुष भी दीक्षा लेने को 'यार हो गये । चातुर्मास के पश्चात् सूरिजी ने शुभ मुहूर्त और स्थिर लग्न में उन दीक्षा के उम्मेदवारों को दीक्षा देदो । कुम्मट गौत्रीय शाह मेधा के बनवाये हुए भगवान पार्श्वनाथ के मन्दिर की भी प्रतिष्ठा करवाई । कुछ समय के पश्चात् वहां से विहार कर सूरिजी महाराज मेदपाट, अवन्ति, चेदी, बुदेलखण्ड, शौरसेन, कुरु पञ्चाल, कुनाल सिंध कच्छादि प्रदेशों में परिभ्रमण करते हुए सौराष्ट्र प्रान्त में पदार्पण कर तीर्थश्वर श्री शत्रुन्जय की यात्रा की । इस विहार के अन्तर्गत आपने कई भावुकों को दीक्षा दी, कई म स, मदिरा सेवियों को जैनधर्म की शिक्षा देकर अहिंसा धर्म के परमोपासक बनाये । महाजन संघ में सम्मिलित कर महाजन संघ की वृद्धि की । कई मन्दिर, मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवा कर जैन धर्म की नींव को सुदृढ़तम की। इस तरह आपश्री ने जैनधर्म की खूब ही प्रभावना एवं उन्नति की। जब आप स्तम्भनपुर का चातुर्मास समाप्त करके क्रमशः मरुधर में पर्यटन करते हुए चंद्रावती में पधारे उस समय आपकी वृद्धावस्था हो चुकी थी। अतः यहां के श्रीसंघ ने प्रार्थना की कि--पूज्यवर ! नानी बहिन के द्रव्य की व्यवस्था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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