________________
आचार्य सिद्धसरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ९२०-९५८
४-पुनड़-इसके पुत्र रामाने जैन दीक्षाली थी। ५-घुवद- इसने अपने राज में अमर पडहा की उद्घोषणा की। ६-बाहड़-... ७--कानड-इसने शत्रुजय पर मन्दिर बनाया। ८--कक- इसने शंखपुर में महावीर का मन्दिर बनाया। ९--जहेल-यह बडा ही वीर राजा हुआ था। १०--नाहड ( २) यह राजा विलासी था।
राव नाहड़ का राजा उपकेशपुर का राव रत्नसी ने छीन कर उसक उपकेशपुर की सीमा में मिला लिया उस समय से ही शंखपुर के गज की गणना उपकेशपुर में होने लगी-उपकेशपुर का राव रत्नसी बड़ा ही वीर राजा हुआ और वह था भी बड़ा ही विच र दक्ष उसने यह सोचा होगा कि इस समय विदेशियां के आक्रमण भारतपर हुआ करते है अतः आपस में भिन्न भिन्न शक्तियों को एकत्र कर अपना संगठन बल मजबूत करने की आवश्यकता है।
वीरपुर के राजाओं की वंशावली-- विक्रम की दूसरी शताब्दी में आचार्य रत्नप्रभसूरि ( सोलहवें पट्टधर ) ने वीरपुर में पदार्पण कर घाम मार्गियों के साथ राज सभा में शास्त्रार्थ करके उनको पराजय कर वहाँ के राजा वीरधवल राजपुत्र वीरसेनादि राजा प्रजा को जैन धर्म की दीक्षा दी थी इस शुभ कार्य में विशेष निमित कारण उपकेशपुर की राज कन्या सोनलदेवी का ही था उसने पहले से ही क्षेत्र साफ कर रखा था कि आचार्यश्री का धर्म वीज तत्काल फल दात बन गया इतना ही क्यों पर राजपुत्र वीरसेन अपने कुटुम्ब के साथ सूरीश्वरजी के चरणाविन्द में जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी राजाओं की नामावली
१ राजा वीरधवल-आपके बड़े पुत्र वीरसेन ने जैन दीक्षा ली थी २ देवसेन- इसने वीरपुर में जैन मन्दिर बना कर प्रतिष्ठा करवाई थी ३ केतुसेन-इसके पुत्र हालु ने मुनि वीरसेन के पास दीक्षा ली थी ४ गयसेन-इसने तीर्थों का संघ निकाला था। ५ धर्मसेन-इसने वीरपुर में महावीर का मन्दिर बनवाया या
६ दुर्लभसेन-दुर्लभसेन-ब्राह्मणों का परिचय से जैन धर्म को छोड वाममर्गियों के पक्ष में हो गया था वह भी यहां तक कि बिना ही कारण जैनों को तकलीफ देने में तत्पर हो गया नब इस बात का पता उपफेशपुर के नरेश को मिला तो उसने तत्काल ही बीरपुर पर चढ़ाई कर दी और युद्ध कर गव दुर्लभ को पकड़ कर उपकेशपुर ले आया और वीरपुर पर अपनी हकूमत कायम कर दी
नागपुर के राजाओं की वंशावली नागपुर--जिसको आज नागोर कहते हैं मरुधर प्रदेश में एक समय नागपुर भी स्वतंत्र राज का नगर था इस नगर को उपकेशपुर के राजा के सेनापति शिवनाग ने श्रावाद किया था। शिवनाग--श्रादित्यनाग की सन्तान परम्परा में थे श्रापकी रण कौशल्य से प्रसन्न हो राव हुला ने यह प्रदेश शिवनाग को बक्नागपुर का राजवंश
९८५
anAAAAAAp-nanMAAVARANAuuN
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org